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सरकार पर आश्रित रहना ठीक नहीं

Posted at: Mar 31 , 2018 by Dilersamachar 9878

नरेंद्र देवांगन

दिलेर समाचार, याद कीजिए, कुछ दशक पहले की बात जब केटरर्स का जमाना नहीं था। गांव-शहर में बड़े से बड़ा आयोजन लोगों के सहयोग से संपन्न हो जाता था। इस सहयोग में श्रम से लेकर संसाधनों तक को शामिल किया जाता था। अपनी सोच को कुछ और पहले ले जाएं यानी मनरेगा योजना से पहले तो पाएंगे कि ग्राम प्रधान या सरपंच पंचायत के तमाम सामूहिक काम लोगों के श्रमदान से करवा लेते थे। इसके लिए उन्हें कोई पैसा या पारिश्रमिक नहीं मिलता था। सिर्फ गांव-समाज की बेहतरी के लिए उनका यह छोटा सा प्रयास होता था। यह तो हुई सामाजिक सहभागिता।

आज हम हर बात के लिए सरकार को कोसते हैं। जनकल्याण के लिए दर्जनों योजनाएं चलाई जा रही हैं लेकिन उन योजनाओं को सिरे चढ़ाने के लिए हमारा कोई योगदान नहीं होता। हमारे जहन में पता नहीं यह क्यों घर कर गया है कि सब कुछ सरकार का काम है। हमें क्यों नहीं समझ आता कि हर समस्या सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं ठीक हो सकती। हम सबको लोकतंत्रा की कार्यप्रणाली में अपनी प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करानी होगी। दुनिया में यह जांचा-परखा इलाज है देश के विकास का और प्रमुख समस्याओं के निदान का। तो फिर सोच क्यों रहे हैं। आइए, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रा में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कराएं।

लोकतंत्रा यानी लोगों द्वारा शासन। लोकतंत्रा का मूल विचार ही यह है कि किसी देश या राज्य में लोगों के चुने हुए प्रतिनिधि सत्ता की बागडोर संभालेंगे लेकिन असली ताकत लोगों के हाथ में होगी। बिना लोगों की सहभागिता के लोकतंत्रा अपनी मूल भावना के अनुसार काम नहीं कर सकता। सहभागी लोकतंत्रा इसी पारंपरिक लोकतांत्रिक पद्धति का परिष्कृत या उन्नत स्वरूप है। यह समाज को बड़े स्तर पर लोकतंत्रा की कार्यप्रणाली में भागीदारी देने के लिए प्रेरित करता है। इसका सीधा सा अर्थ यह है कि लोगों की भूमिका सिर्फ अपना प्रतिनिधि चुन लेने से खत्म नहीं हो जाती है। वह प्रतिनिधि कैसे काम करेगा और विकास के लक्ष्यों को कैसे पूरा किया जाएगा, इसमें भी आम जन की भागीदारी होगी। इसमें शक्ति के विकेंद्रीकरण की बड़ी भूमिका है।

भारत में लोकतंत्रा की जड़ें उतनी पुरानी हैं जितनी इंसानी सभ्यता। सहभागी लोकतंत्रा को भले ही लोग आधुनिक अवधारणा मानते हों, वास्तविकता में यह वैदिक काल से भारत में मौजूद है। वैदिक काल में और उसके बाद भी राजा-महाराजा निर्णय लेने के लिए सभा और समितियों से सलाह लेते थे। इन समितियों में लोगों का चयन हर तबके से किया जाता था। यह सहभागी लोकतंत्रा का उदाहरण है। आधुनिक भारत में महात्मा गांधी सहभागी लोकतंत्रा के मुखर समर्थक थे और चाहते थे कि फैसले लेने की प्रक्रिया में आम लोगों को शामिल किया जाए। उनका ग्राम स्वराज का सिद्धांत सहभागी लोकतंत्रा के प्रति उनके विचारों को दर्शाता है।

आज देश में सहभागी लोकतंत्रा न के बराबर है। जहां एक बड़ी आबादी वोट करना भी जरूरी नहीं समझती, वहां सरकार की कार्यप्रणाली में भागीदारी देना तर्कसंगत नहीं लगता। इस मामले में सरकार की तरफ से भी लोगों को प्रोत्साहित नहीं किया जाता। सरकार की योजनाओं में शामिल होना तो दूर की बात है, लोगों को योजनाओें के लागू होने के बाद भी उनका लाभ उठाना जरूरी नहीं लगता। छोटी से छोटी समस्या के लिए भी लोग सरकार और प्राधिकरण को कोसते हैं। ऐसे में सबसे पहले लोगों को सहभागी लोकतंत्रा के बारे में प्रशिक्षित करना जरूरी है जिससे लोगांे के अंदर लोकतंत्रा के प्रति जिम्मेदारी का भाव आए और वे देश के विकास में सहभागिता दे सकें।

लोकतंत्रा, वर्ण और लिंगभेद को मिटाकर स्वस्थ समाज की नींव रखता है जहां प्रति व्यक्ति समानता और प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है। जनता की सहभागिता इस ओर भी आवश्यक है कि हर व्यक्ति निजी तौर पर एक लड़ाई शुरू कर सकता है। समाज में फैली ऐसी विसंगतियां और कुरीतियां जो लोकतंत्रा की जड़ काटती हैं, इनके खिलाफ यदि समाज लड़ाई छेड़े तो लोकतंत्रा की नींव जरूर मजबूत होगी। लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत लोगों को मिले अपने मतदान के अधिकार के इस्तेमाल के लिए यदि हर व्यक्ति अपनी दिनचर्या में से एक घंटे का समय लोकतांत्रिक व्यवस्था के माध्यम से सामाजिक बदलाव लाने में दे तो वास्तव में समाज की तस्वीर बदल सकती है।

देश की बड़ी आबादी गांवों में रहती है। ग्राम पंचायत और अन्य पंचायती राज संस्थानों के चुनावों में अब तक हम धन का इस्तेमाल, बल प्रयोग और जाति व धर्म आधारित राजनीति देख चुके हैं। ये सभी संस्थान भ्रष्टाचार की समस्या को खत्म करने और निर्णय लेने में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने में असफल रहे हैं। लिहाजा जनता इन प्रणालियों में विश्वास खो चुकी है। ऐसे पद अब सिर्फ शक्ति का परिचायक बनकर रह गए हैं। लोगों को इनसे समाज सेवा और जवाबदेही की उम्मीद नहीं रह गई है।

सहभागी लोकतंत्रा देश के हर नागरिक को यह अधिकार देता है कि वह शासन के अहम फैसलों में अपना पक्ष रख सके। इसका एक बड़ा उद्देश्य यह भी है कि अधिक से अधिक लोगों को इस सहभागिता का मौका मिल सके। सहभागिता के इस विचार को गुड गवर्नेंस यानी सुशासन से जोड़कर देखा जाता है। सहभागी लोकतंत्रा से शासन को अधिक पारदर्शी, उत्तरदायी और प्रभावी बनाया जा सकता है। बजट बनाने में सहभागिता, सिटीजन काउंसिल, पब्लिक कंसल्टेशन, सहभागी नियोजन जैसी प्रथाओं के जरिए दुनिया के कई देश अपने नागरिकों को लोकतंत्रा में सहभागी बनने का अवसर देते हैं। इसमें लोगों को अपनी गली, मोहल्ले, कस्बे से जुड़े मुद्दों पर निर्णय लेने की जिम्मेदारी लेनी होती है। जब लोग अपने क्षेत्रा के प्रति जिम्मेदार हो जाएंगे तो देश अपने आप विकास करेगा

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