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कुंडली से जानिए कब और कितनी बार होगी आपकी शादी?

Posted at: Dec 11 , 2017 by Dilersamachar 10076

दिलेर समाचार,लखनऊ। मनु स्मृति में लिखा है अकेला पुरूष कभी भी एक सम्पूर्ण इन्सान नहीं होता है बल्कि विवाह होने के पश्चात ही पुरूष एक सम्पूर्ण इन्सान बनता है। बिना विवाह के हम प्रकृति की सृष्टि रचना में सहायक नहीं हो पाते है, इसलिए विवाह के बन्धन में बॅधना जरूरी है। कुण्डली में विवाह के कारक स्थान द्वितीया व सप्तम स्थान होते है। इन दोनों भावों में बैठे ग्रहों एवं भावों की स्थितियों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि आपके जीवन में कितने विवाह योग बन रहें।

सप्तम स्थान में गुरू और बुध के होने पर जातक की एक स्त्री होती है। सप्तम मंगल व सूर्य हो तो भी व्यक्ति की एक स्त्री होती है।लग्नेश और सप्तमेश इन दोनों के ही लग्न या सप्तम में रहने से दो स्त्रियों का योग होता है। यदि लग्नेश और सप्तमेश दोनों ही स्वगृही हों तो जातक का एक विवाह होता है। सप्तमेश और द्वितीेयेश शुक्र के साथ हो अथवा पापग्रह के साथ होकर 6, 8 व 12वें भाव में हो तो एक स्त्री की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह होता है।यदि सप्तम या अष्टम स्थान में पापग्रह और मंगल द्वादश भाव में हो तथा द्वादशेश अदृश्य चक्रार्ध में हो तो जातक का दूसरा विवाह अवश्य होता है।लग्न, सप्तम स्थान और चन्द्र लग्न-ये तीनों द्विस्भाव राशि में हो तो जातक के दो विवाह होते है।लग्नेश, सप्तमेश और राशीश द्विस्वभाव राशि में हो तो दो विवाह होते है।

लग्नेश द्वादश भाव में और द्वितीयेश पापग्रह के साथ कहीं भी हो तथा सप्तम स्थान में पापग्रह बैठा हो तो जातक की स्त्रियां होती है।शुक्र पापग्रह के साथ हो अथवा नीच का हो तो जातक के दो विवाह होते है।धन स्थान में अनेक पापग्रह हों और धनेश भी पाग्रहों के दृष्ट हो तो जातक के तीन विवाह होने की सम्भावना रहती है।बलवान चन्द्र और शुक्र एक साथ हों, बली शुक्र सप्तम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो, लग्नेश उच्च का हो या लग्न भाव में उच्च का ग्रह एवं लग्नेश, द्वितीयेश और षष्ठेश ये 11-तीनों ग्रह पापग्रहों से युक्त होकर सप्तम भाव में स्थित हों तो जातक अनेक स्त्रियों के साथ मौज-मस्ती करने में अपना समय गुजारता है।

गुरू से दृष्ट हो या सप्तमेश से तीसरे, सातवें भाव में चन्द्रमा

सप्तमेश से तीसरे स्थान में चन्द्रमा, गुरू से दृष्ट हो या सप्तमेश से तीसरे, सातवें भाव में चन्द्रमा हो, सप्तमेश शनि हो, सप्तमेश और नवमेश बली होकर पंचम व नवम भाव में स्थित हो एवं दशमेश से दृष्ट एवं सप्मेश 1, 4, 5, 7, 9, 10वें भाव में स्थित हो तो जातक अनेक स्त्रियों के साथ भोग करता है।सातवें या बारहवें भाव में बुध हो तो जताक वेश्यागामी होता है।
सप्तम भाव में बहुत सारे पापग्रह हो तथा सप्तमेश पापग्रहों से युक्त हो तो जातक के कम से तीन विवाह हो सकते है।

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