दिलेर समाचार, हमारी दिनचर्या का महत्वपूर्ण अंग है शयन। शयन अर्थात सोना, नींद लेना। मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे सभी शयन करते हैं। शयन किस तरह हमारे स्वास्थ्य और चेतना के लिए लाभदायी हो सकता है, इसके लिए शास्त्रों में संकेत है। शास्त्रों के अनुसार बताया जाता है कि सोते समय हमारे पैर दक्षिण दिशा की ओर फैले हुए नहीं होने चाहिए। मतलब कि हमें उत्तर दिशा की तरफ मुँह रखकर नहीं सोना चाहिए। क्योंकि इससे हमें मानसिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है। हम आपकों बताते है कि शास्त्रों ने कुछ बातें महत्वपूर्ण बताई है।
शास्त्रों में शयन का दूसरा शब्द सोना होता है। पूरे दिन हम काम करते-करते शरीर में थकान हो जाती है। जिससे हमारे शरीर की ऊर्जा शक्ति खत्म हो जाती है। जिससे शरीर को आराम कि जरूरत पड़ती है। शरीर को आराम देने के लिए हम सौते है। तथा अपनी नींद पूरी करते है। नींद के दौरान हमारे अन्दर पुन ऊर्जा इक हो जाती है, जिससे हम फिर काम करने की ताकत पा लेते हैं। शाम के समय कभी भी नहीं सोना चाहिए, सोते समय पैर दक्षिण दिशा की ओर न हों, जैसे अनेक निर्देश शास्त्रों में दिये गये हैं।
शास्त्रों के अनुसार ऐसे करें शयन
रात्रि को भोजन करने के तत्पश्चात सोना नहीं चाहिए। शयन से पहले सद्ग्रंथों का अध्ययन और भगवान का स्मरण करना चाहिए। सोने से पहले आप अगर अगले दिन के कामों की योजना बना लें तो बहुत अच्छा रहेगा। सोने से पहले भजन या मनपसंद संगीत सुनना अच्छा रहता है। इससे हमारा मन तनावरहित हो जाता है। नींद अच्छी आती है। शयन का समय भी हमारे जीवन में बहुत मायने रखता है।
सौर जगत धु्रव पर आधारित है। धु्रव के आकर्षण से दक्षिण से उत्तर दिशा की तरफ प्रगतिशील विद्युत प्रवाह हमारे सिर में प्रवेश करता है और पैरों के रास्ते निकल जाता है। ऐसा करने से भोजन आसानी से पच जाता है।
बाईं करवट सोने की धारणा के पीछे भी वैज्ञानिक आधार है। दरअसल यह प्रक्रिया स्वर विज्ञान पर आधारित है। हमारी नाक से जो श्वास बाहर निकलती और अन्दर आती है उसे स्वर कहते हैं।
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