शादाब जफर ‘शादाब’
दिलेर समाचार, दिल्ली यात्रा के दौरान मैंने जगह जगह दिल्ली के कई संगठनांे के विज्ञापनों द्वारा यह लिखा देखा ‘पत्नी सताये तो हमें बतायें’ पढ़ने के बाद लगा कि अब यह आवाज पूरी ताकत से उठने लगी है लेकिन इस आवाज और ऐसे विज्ञापनों की जरूरत दिल्ली से ज्यादा छोटे छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों को ज्यादा है।
दरअसल पिछले कुछ सालों से केबल और डिश के द्वारा घरों में पहुंच रहे टीवी सीरियलों के कारण ऐसे मामलों में लगातार गांव और कस्बों में बड़ी तादाद में इजाफा हो रहा है जिस में पुरूषों को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है।
इन घरेलू हिंसा के शिकार होने वाले पुरूषांे के लिये कुछ समाजसेवी संगठन बन रहे हैं। यह एक अच्छी पहल है क्योंकि महिलाआंे के मुकाबले पुरूष घरेलू हिंसा का सब से भयावह पहलू यह है कि पुरूषांे के खिलाफ होने वाली हिंसा की बात न तो कोई मानता है और न ही पुलिस इस की शिकायत दर्ज करती है और न ही सरकार द्वारा महिला आयोग की तरह पुरूष आयोग का गठन अभी तक किया गया है।
हंसी मजाक में पूरे प्रकरण को उड़ा दिया जाता है। समाज में कुछ लोग घरेलू हिंसा के शिकार व्यक्ति को जोरू का गुलाम, नामर्द और न जाने क्या क्या कहते हैं जिसे सुन पीडि़त पुरूष खुद को हीन महसूस करता है। इस सब से परेशान होकर बेबसी में कोई कोई पुरूष कई बार आत्महत्या जैसा गम्भीर कदम तक उठाने पर भी मजबूर हो जाता है।
पुरूषों के साथ कुछ महिलायें हिंसा ही नहीं करती, उन की मर्जी के बगैर जबरदस्ती रोज रोज उन का यौन शोषण भी करती है। इस के साथ ही घूमने फिरने व मौजमस्ती करने के लिये पैसा देने व खाना बनाने के लिये उन्हंे मजबूर किया जाता है। ऐसा न करने या मना करने पर उन के साथ मारपीट तो आम बात है लेकिन आज कोई यह मानने को तैयार ही नहीं कि पुुरूषांे का भी हमारे समाज में कुछ महिलाआंे द्वारा उत्पीड़न किया जाता है।
यदि पुरूष इस सब का विरोध करता है तो पत्नी और उस के परिवार वाले उसे दहेज के झूठे मामलों में फंसाने की धमकियां देकर उस का और उस के परिवार का उत्पीड़न करते हैं। आज समाज जिस तेजी के साथ बदल रहा है, उस की जद में निस्संदेह हमारी परंपराएं आ रही हैं। पैसा रिश्तों के मुकाबले महत्त्वपूर्ण हो गया है, पुरानी परंपराएं और मान्यताआंे के साथ साथ जीवन के अर्थ भी बदल गये हैं। फैशन के इस दौर में कुछ स्त्रिायां भी बदली हैं, उन के विचार और परिवार भी बदले हैं। यह भी सच है कि इस पुरूष प्रधान समाज में पुरूषांे के कठोर व्यवहार और दहेज लालचियों की तादाद में इन का प्रतिशत आज भी बहुत कम है पर यह भी मानना पडे़गा कि पुरूषांे के साथ हिंसा करने वाली महिलाओं का कुछ प्रतिशत समाज में जरूर बढ़ा है।
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