दिलेर समाचार, 6 जनवरी, 2018, नई दिल्ली: नवीनतम जनगणना के अनुसार, भारत में 1.36 मिलियन लोग तलाकशुदा हैं, जो हमारे देश की कुल विवाहित आबादी का 0.24% के बराबर है। हमारे देश में तलाक की दर 1980 में 5% से बढ़कर हाल के वर्षों में 14% हो गई है। हमारे देश में सालानाघरेलू हिंसा के औसतन 50,000 मामले पंजीकृत होते हैं, जबकि 100 में से केवल 2 अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (जो विवाहित महिलाओं के साथ क्रूरता से संबंधित है) के अंतर्गत दोषी ठहराया जाता है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत पक्षों को व्यभिचार,क्रूरता, तर्क-वितर्क, परिवर्तित विश्वास, कुष्ठरोग आदि जैसे निर्दिष्ट आधार पर धारा 13 के अंतर्गत तलाक दर्ज करने का अधिकार है।
इस विषय पर व्यापक रूप से अधिक प्रकाश डालने के लिए हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी में "मिराज या मैरिज: नसीब से विवाह और पूर्वविवेक के साथ तलाक (Mirage or Marriage: destined marriage and forethought divorce)" पर एक जानकारीपूर्ण और शिक्षाप्रद व्याख्यान आयोजित किया गया, जिसमें विवाह से पूर्व-नियोजित निकास की आरे ले जाने वाले वैवाहिक संबंधों के संबंध में हमारे समाज में बदलते नजरिए और भारतीय कानून के अनुसार उपलब्ध उपाय के बारे में नीति-स्तर पर चिंतन को संबोधित किया गया। तलाक और अलग होना आम तौर पर दायित्व और जिम्मेदारियों को लेकर आता है, पूर्वविवेक के साथ तलाक का नया और कुछ हद तक परेशान करने वाला रुझान भारतीय शहरों में बढ़ रहा है।
यह कार्यक्रम अमृतम चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा प्रतिष्ठित भारतीय पर्यावास केन्द्र, लोदी रोड, नई दिल्ली और उच्च न्यायालय के वकील, विधि प्रैक्टिशनर और कानूनी समुदाय के सदस्यो के सहयोग से संयुक्त रूप से आयोजित किया गया।
दिल्ली उच्च न्यायालय की माननीय न्यायाधीश सुश्री हिमा कोहली इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थीं। इस कार्यक्रम में उपस्थित पैनल के उल्लेखनीय सदस्यों में श्री सिद्धार्थ लूथरा, सीनियर एडवोकेट; डॉ. अचल भगत, वरिष्ठ सलाहकार मनोचिकित्सक; सुश्री गोल्डी मल्होत्रा, शिक्षाविद; सुश्री गायत्री पुरी, एडवोकेट; सुश्री दीपिका वी मारवा, एडवोकेट; और मीडिया पार्टनर सुश्री बिन्नी यादव शामिल थे।
स्वागत भाषण देते हुए और संभावनाओं को तलाशते हुए अमृतम चैरिटेबल ट्रस्ट की सुश्री प्रोमिला बढवार ने कहा, "हाल के दिनों में हमने पाया है कि पूर्वविवेक या पूर्व-नियोजित तलाक समाज में अशांति पैदा कर रहे हैं, विशेष रूप से युवाओं के बीच में, जो शादी की सुंदर संस्था में कदम रखने के बारे में बेहद संवेदनशील होते जा रहे हैं, क्योंकि वे आसपास की हर जगह जीवन-साथी को नियोजित ढ़ग से छोड़ने की लहर देखते हैं। आज के विचार-विमर्श के माध्यम से हम इस समस्या का समाधान करने की कोशिश करेंगे, साथ ही इसके कारणों और समाधानों को भी देखेंगे।"
अपने मुख्य भाषण में दिल्ली उच्च न्यायालय की माननीय न्यायाधीश सुश्री हिमा कोहली ने भारत में वैवाहिक संबंधों से संबंधित बढ़ती बाधाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, "सोशल मीडिया के आज के जमाने में व्यक्तिगत डाटा को साझा करने के मामले में बहुत कम गोपनीयता है या कुछ भी गोपनीयता नहीं है। इन परिस्थितियों में शादी की अद्भुत संस्था लगभग खतरे में पड़ रही है, क्योंकि पुराने सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन-साथी के लिए सम्मान प्रत्येक गुजरते दिन के साथ लगभग खत्म होता जा रहा है। इसके अलावा हमारी पारिवारिक अदालतों में हमारे पास घरेलू हिंसा या वैवाहिक बलात्कार से संबंधित कई मामलों लंबित हैं।
श्री सिद्धार्थ लुथरा, सीनियर एडवोकेट ने टिप्पणी की कि विवाह प्रकृति में अधिक गतिशील बनने के लिए विकसित होना चाहिए। उन्होंने कहा, "अपने जीवन-साथी के अधिकारों पर अंकुश लगाने के लिए अपने तलाक को नियोजित बनाने में लोगों की यह नई लिप्तता समाज में बड़े पैमाने पर असुरक्षा की भावना पैदा कर रही है।"
सुश्री गोल्डी मल्होत्रा, शिक्षाविद ने पूर्वविवेक के साथ तलाक को "सामाजिक बुराई" के साथ जोड़ा। उन्होंने कहा, "यद्यपि लोग तलाक को एक व्यक्तिगत अधिकार के रूप में मान सकते हैं, लेकिन बहुत से लोग उनके बच्चों पर पड़ने वाले इसके असर के बारे में नहीं सोचते हैं। तलाक के बाद भाई-बहनों को बांटना या उन्हें अलग छोड़ना उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जबकि तलाक के बाद माता-पिता का एक दूसरे के साथ गलत वार्तालाप उन्हें हतोत्साहित कर सकता है। हमें सावधान रहना चाहिए कि टूटा हुआ विवाह कहीं हमारे बच्चों को न तोड़ दे।"
पैनल की चर्चा में वैवाहिक संबंधों के विस्तृत क्षेत्र, इसमें शामिल मनोविज्ञान, और इसके कानूनी पहलुओं के साथ योजनाबद्ध विभेदों (अलग होने) के पक्षों और विपक्षों को शामिल किया गया।
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