दिलेर समाचार, आगरा। ताजमहल में दफन होने के लिए मुमताज महल के शव को नौ साल तक इंतजार करना पड़ा था। क्या ताज में मुमताज की सिर्फ हड्डियां दफन हुईं या ममी बनाई गई। लेखक अफसर अहमद ने अपनी किताब ‘ताजमहल या ममी महल’ में मुगल मलिका मुमताज के शव को संरक्षित रखने या ममी बनाने का ब्योरा दिया है।
इस्लाम नहीं देता शव को रखने की इजाजत
इतिहास में मुगलों के पूर्वज तैमूर का जिक्र है कि उसके शव को संरक्षित रखने के लिए ममी तैयार की गई थी। ताजमहल या ममी महल के लेखक अफसर अहमद ने मुमताज की मौत के बाद हुई घटनाओं का रिसर्च करके परिस्थिति के अनुसार शव को ममी बनाए जाने का दावा किया है। उन्होंने बताया है कि इस्लाम में शव संरक्षित रखने का नियम नहीं है, यही वजह है कि शाहजहां ने इस बात को सार्वजनिक नहीं होने दिया।
बुरहानपुर से आगरा तक मुमताज के शव का सफर
17 जून 1631 की सुबह बुरहानपुर के शाही महल में मुमताज की मौत हो गई। यहां से जैनाबाग लाकर पहली बार शव को अमानती दफन किया गया। इसके बाद ताबूत पूरी तरह तैयार होने पर राजकुमार शाह शूजा की कमान में शाही सेना उसे लेकर 11 दिसंबर 1631 को जैनाबाग से रवाना हो गई। इस सफर को पूरा होने में एक महीने 4 दिन का वक्त लगा। 15 जनवरी 1631 को शव आगरा पहुंचाया गया। इस दौरान हकीम अलीउद्दीन और मुमताज की बेहद खास रही सती उन निसा खानम भी मौजूद थीं।
दूसरी बार ताजमहल में अमानती दफन
मुमताज को 15 जनवरी 1632 को दूसरी बार निर्माणाधीन ताजमहल परिसर में दफनाया गया।इतिहासकार कौजवानी ने लिखा है कि बुरी नजरों से बचाने के लिए ताज के बाग में मौजूद लोगों ने फौरन कब्र को ढक दिया था। लेखक अफसर अहमद का कहना है कि शाही अमले के लोग ये नहीं चाहते थे कि एक ताबूत से दूसरे ताबूत में रखते वक्त आम लोग देख लें और तरह-तरह की बातें बनाएं। इसके बाद निर्माणाधीन ताजमहल के अंडरग्राउंड चेंबर में 1640 को मुमताज के शव को तीसरी बार दफन किया गया।
ऐसे बनाई गई थी मुमताज की ममी
किताब के मुताबिक, मरने के बाद शव को संरक्षित करने के लिए जल्द से जल्द मुमताज का शव कुछ लोगों के साथ शाहजहां नदी पारकर बुहारनपुर से जैनाबाग ले गया। mबादशाह शाहजहां और करीबी जानते थे कि अगर मुमताज का शव किले के अंदर रखा गया तो उसके संरक्षण के काम में अड़चन आ सकती है। यहां उसके करीबी हकीम अलीउद्दीन और मुमताज की करीबी सतीउन निवास खानम की देखरेख में शव के संरक्षण का काम शुरू हुआ।
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