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नमो के काम को अवाम का सलाम !

Posted at: Jun 2 , 2019 by Dilersamachar 9777

घनश्याम बादल

लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम सामने हैं  और यह  इस सरकार के पिछले 5 वर्षों के कामकाज पर एक जनमत की मोहर कहे जा सकते हैं । पिछले 5 वर्षों में 26 मई 1926 मई 2014 को नरेंद्र मोदी द्वारा संसद की चौखट चूम कर अंदर जाने के बाद  प्रधानमंत्राी पद की शपथ लेने से शुरू होकर उनके 19 मई 2019 को  चुनावों के अंतिम दौर में मतदान प्रक्रिया के संपन्न होने तक की उनकी सरकार की उपलब्धियों, कार्यशैली और विपक्ष का उनके प्रति बर्ताव तथा उनके द्वारा लिए गए कुछ लोकप्रिय और अलोकप्रिय निर्णयों के ऊपर आमजन के मंथन का रेखांकन है।

सन 2014 में जब नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने भारत के प्रधानमंत्राी के रूप में शपथ ली थी, तब बहुत सारी शंकाएं और आशंकाएं भी खड़ी की गई थी। कभी गोधरा के दंगे तो कभी उनकी कट्टर हिंदूवादी छवि तथा अब मुसलमानों का क्या होगा, क्या देश दंगों की आग में चलेगा या हिंदू मुस्लिम के बीच एक बड़ी विभाजक खाई खींच दी जाएगी, जैसे अनेकानेक प्रश्न हवा में थे जिसे विपक्ष के धुरंधर नेताओं ने समय-समय पर हवा भी दी और भुनाया भी। पिछले वर्ष ही हुए विधानसभा चुनावों में जिस प्रकार से भाजपा का ग्राफ गिरा था उससे इस बात की आशंका बलवती हुई थी कि अपने 5 साल के कामकाज के आधार पर यह सरकार भारी बहुमत से तो लौटने वाली नहीं है और यदि लौटी तो एक बैसाखी वाली सरकार ही होगी मगर भारतीय मतदाताओं ने भाजपा नरेंद्र मोदी और एनडीए के गठबंधन को पहले से भी बेहतर परिणाम देकर इन कयासों को झूठा सिद्ध  कर दिया है।

 अब यह कैसे हुआ, क्यों हुआ और इसके पीछे कौन कौन से कारक जिम्मेदार रहे, इन पर बातें करने के लिए काफी वक्त मिलेगा लेकिन फिलहाल जो सबसे जरूरी बात है, वह है लौटकर आई हुई सरकार और और भी ज्यादा प्रखर होकर लौटे नरेंद्र दामोदर दामोदर दास मोदी के साथ  उनके दाएं हाथ बने अमित शाह सहित पूरे एनडीए के गठबंधन को बधाई देनी होगी।

भारत एक लोकतांत्रिक देश है और इस का लोकतंत्रा इतना परिपक्व हो चुका है कि पिछली 17 सभाएं उसने बिना किसी खून खराबे या बहुत अधिक उठापटक के चुनी है जबकि पड़ोसी देशों में चुनाव के नाम पर भारी रक्त बाद हिंसा और धांधलीबाजियां होती रही तो इस अट्ठारह लोकसभा को भी शांतिपूर्वक चुनने के लिए भारतीय अवाम को भी बहुत-बहुत बधाई दी जानी चाहिए।

अब आते हैं नरेंद्र मोदी की सरकार के पिछले 5 सालों की उपलब्धियों के आकलन पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस सरकार की सबसे खास बात यह रही कि वे स्वयं इस सरकार की ड्राइविंग सीट पर दृृढ़ता के साथ न केवल जमे रहे अपितु उन्होंने अपने ही विजन के साथ इस सरकार को दृढ़ता पूर्वक चलाया उनके पास कभी भी ऐसा नहीं लगा कि जैसे कोई योजना न हो समय-समय पर गरीब लोगों के अतीत की अनेक योजनाएं सफलतापूर्वक न केवल अपितु उन्होंने उनका सफल कार्य निबंध करने में भी कामयाबी पाई अब चाहे यह उज्जवला योजना स्वच्छता अभियान हो मंगल मिशन अभियान हो, जन धन योजना हो अथवा दूसरी योजनाएं हांे, किसी भी योजना को फ्लाप  होते हुए नहीं देखा गया।  गांव गांव में शौचालय बनवा कर नरेंद्र मोदी की सरकार ने न केवल स्वच्छता अभियान को साकार किया अपितु इस सरकार की एक खास बात यह भी रही कि वह अपनी उपलब्धियों को विभिन्न माध्यमों से जनता तक लगातार पहुंचाती रही और शायद इसी वजह से विपक्ष उन पर काहिली या नाकामयाबी के अथवा शिथिलता के आरोप लगाने और उन्हें जनता तक सक्षम तरीके से पहुंचाने में कभी सफल नहीं रहा जिसका लाभ इन चुनावों में नरेंद्र मोदी को मिला।

इन चुनावों से पहले एक बात और खास रही कि पूरे 5 साल आपस में एक दूसरे की टांग खींचने खींचने वाले विपक्षी दल एन चुनावों के मौके पर देश के कुछ भागों में गठबंधन करने में सफल रहे लेकिन चुनाव के परिणाम बताते हैं कि ऐसे गठबंधन को भारत की जनता ने स्वीकार नहीं किया।  शायद पिछले गठबंधनों की जो नियति रही, उससे भी जनता खुश नहीं थी और उनके रोज-रोज के आपसी सिर फुटौवल से होने वाले नुकसान के प्रति तो एक बार फिर से बावजूद इसके कि मोदी सरकार पिछले 5 साल से सत्ता पर काबिज थे, जनता ने उन्हीं में विश्वास जताया।

अगर कहा जाए कि नरेंद्र मोदी के वापस लौटने में विपक्ष का भी भारी योगदान है तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि 2014 में केवल 44 सीटों पर सिमट जाने वाली कांग्रेस ने अपनी भारी पराजय से कोई सबक नहीं लिया। केवल सोनिया गांधी की जगह राहुल गांधी को एक राजकुमार की तरह कांग्रेस का ताज पहनाकर व सोचती रही कि बस अब तो वह किला फतह कर लेगी। उसका आशान्वित होना गलत भी नहीं था क्योंकि राहुल गांधी युवा चेहरा हैं परंतु जिस परिपक्व राजनेता को जनता प्रधानमंत्राी के रूप में देखना चाहती है वह गुण राहुल गांधी में पूरे 5 सालों में कभी दिखाई नहीं दिया। अब इसके पीछे उनके सलाहकार मंडल का दोष है या विपक्ष दोषी हैं या दोनों ही इस दोष के भागी हैं यह  बहुत साफ है। राहुल गांधी बार - बार कुछ अच्छा करने के बाद अचानक ऐसी हरकत करते रहे कि उनके किए कराए पर पानी फिरता रहा। कभी वह संसद में आंख मार कर बदनाम हुए तो कभी ‘चौकीदार चोर है’ जैसे जुमले देते हुए भूल गए कि 1989 में उनके पिता स्वर्गीय राजीव गांधी के नेतृत्व में भी कांग्रेस ने कुछ ऐसा ही आक्रामक और मर्यादाहीन चुनाव प्रचार चलाया था जिसकी परिणिति राजीव गांधी की भारी पराजय के रूप में हुई थी।  रही - सही कसर कांग्रेस के कुछ नेता करते रहे जिनमें शशि थरूर, मणिशंकर अय्यर,नवजोत सिंह सिद्धू और दिग्विजय सिंह जैसे पुराने नेता भी शामिल थे। वे भूल गए कि भारतीय जनता किसी भी पक्ष की मर्यादाहीन भाषा और बातों को कभी भी स्वीकार नहीं करती है, इसका लाभ भी नरेंद्र मोदी को मिला।

नरेंद्र मोदी अपनी सोची विचारी रणनीति के तहत जहां विपक्ष को भड़काते और उत्तेजित करते रहे, वहीं राष्ट्रवाद का आजमाया हुआ पुराना नुस्खा आमजन के सामने पेश करते रहे। उन्होंने आतंकवाद के सामने जो दृृढ़ता दिखाई, उससे आम आदमी उनका कायल हो गया। जब जब आतंकवादियों ने हमला किया और हमें नुकसान पहुंचाया, तब तक मोदी की सरकार ने उन पर करारा प्रहार किया और रही सही कसर चुनावों से ऐन पहले पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले ने पूरी कर दी। तब नरेंद्र मोदी का यह कहना कि उन्होंने बड़ी गलती कर दी है और उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा, बालाकोट में हुए बालाकोट में किए गए एयर स्ट्राइक के बाद एक अनुकरणीय उदाहरण बन कर सामने आया और उन्होंने न केवल रात के 3ः00 बजे तक बैठकर उस एयर स्ट्राइक का व्यक्तिगत रूप से निरीक्षण किया अपितु हमारे एक पायलट अभिनंदन के पाकिस्तानियों के द्वारा पकड़े जाने पर भी जो रुख अपनाया और जिस प्रकार से वे अभिनंदन को भारत लाने में कामयाब हुए उसे खुद अभिनंदनीय होते चले गए और यहीं से उन्हें इन चुनावों का सबसे बड़ा और सबसे आकर्षक नारा ‘मोदी है तो मुमकिन है’ मिल गया। इस नारे को वह पूरे चुनावों में भुनाने में कामयाब रहे और इसमें उनका साथ उनके गठबंधन के दलों तथा भाजपा की मजबूत टीम ने पूरी तरह दिया जिसका परिणाम इन चुनावों में उन्हें मिली अभूतपूर्व सफलता के रूप में सामने है।

जब उत्तर प्रदेश में मायावती एवं अखिलेश ने महागठबंधन किया तो इस बात की पूरी संभावना थी कि यदि कांग्रेस भी उनके साथ मिलती तो वहां से भाजपा के लिए जीत पाना बहुत मुश्किल होता लेकिन अपने अपने राजनीतिक स्वार्थ पूरे करने की फिराक में यह तीनों नहीं मिल पाए और वहां पर केवल बुआ भतीजे की जोड़ी के बीच गठबंधन हो पाया। उसमें भी सपा पहले से ही दो फाड़ थी और बसपा की धार लगातार कम होती जा रही थी मगर फिर भी विश्लेषक इस बात की उम्मीद लगा रहे थे कि उत्तर प्रदेश में भाजपा और  एनडीए को भारी नुकसान होने जा रहा है।  यद्यपि नुकसान तो हुआ लेकिन यह बहुत बड़ा नुकसान नहीं है। हां, यदि किसी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है तो वह कांग्रेस है जिसके अध्यक्ष राहुल गांधी स्वयं वहां पर केंद्रीय मंत्राी स्मृति ईरानी के हाथों परास्त हो गए हैं। अब उनकी पराजय पर अलग-अलग तरह के विश्लेषण किए जाएंगे जो बहुत स्वाभाविक भी है क्योंकि यह पराजय केवल राहुल गांधी की पराजय नहीं अपितु भारतीय राजनीति से गांधी परिवार की साख के खत्म होने का एक संकेत भी माना जाएगा।

जब राहुल ने अमेठी के साथ साथ वायनाड से भी पर्चा भरा था तभी इस बात पर उंगलियां उठी थी जो बाद में सच हुई कि कहीं न कहीं राहुल गांधी के मन में एक आशंका तो थी और यह आशंका अमेठी में सही  सिद्ध कर दी।  याद कीजिए कभी संजय गांधी को भी अमेठी से ही रविंद्र प्रताप सिंह के हाथों पराजय का स्वाद चखना पड़ा था और उसके बाद संजय गांधी राजनीतिक रूप से कभी भी बहुत मजबूत होकर सामने नहीं आ पाए। अब देखना है राहुल गांधी इस पराजय को स्वीकार कर अमेठी की सीट सदा -  सदा के लिए छोड़ दें या फिर उसे पाने के लिए वह एक राजनेता के रूप में अपना कायाकल्प करते हैं।

अस्तु, चुनाव परिणाम सामने हैं, उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़,  महाराष्ट्र, उत्तराखंड, हरियाणा  दिल्ली और गुजरात जैसे राज्यों में जनतांत्रिक गठबंधन ने अपना परचम भारी बहुमत के साथ लहराया है। वहां पर उसे बहुत कुछ प्राप्त हुआ है लेकिन केरल जैसे राज्यों में अभी भी उसे पैर जमाने में समय लगेगा। यह सच है कि कांग्रेस के स्वर्णिम काल के बाद यदि देश में अब कोई राष्ट्रीय पार्टी कही जा सकती है तो वह केवल भाजपा है, सच कहें तो अब कांग्रेस भी एक प्रकार से राष्ट्रीय पार्टी कहे जाने की हैसियत नहीं रखती है।

सार रूप में कहा जा सकता है कि दूसरी बार फिर से नमो का जादू सर चढ़कर बोला है और पूरे विपक्ष तथा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में यदि कोई अंतर है तो वह है केवल और केवल मोदी की उपस्थिति जहां भाजपा अपने प्रचार में फिर एक बार मोदी सरकार का नारा लगा रही थी, वहीं मोदी कह रहे थे इस बार 300 पार और जनता ने उनके इस कहे पर मुहर लगा दी है।

इतना ही नहीं, जनता के बीच से उभर कर आया हुआ नारा ‘आएगा तो मोदी’ एक दम सच सिद्ध हुआ है। एक और अच्छी बात मोदी ने जो कही है वह एक बार फिर से उनके राष्ट्रवादी होने का सबूत है। उनका यह कहना कि यह मेरी नहीं भारत की जीत है, वास्तव में एक बड़ी बात है, फिलहाल तो पूरा देश उनके स्वागत को तत्पर है। इस उम्मीद के साथ कि जिस प्रकार से उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदुस्तान का नाम ऊंचा किया है अपने दूसरे कार्यकाल में वे उसे एक मजबूत आर्थिक रूप से संपन्न प्रगतिशील वैज्ञानिक देश के रूप में और ऊंचा ले जायेंगे तथा आंतरिक क्षेत्रा में भी आर्थिक सामाजिक एवं दूसरे क्षेत्रों में वे भारत को एक ठोस राष्ट्र के रूप में गढ़ने में कामयाब होंगे, निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी सारी शुभकामनाओं के योग्य पात्रा हैं और उनके नेतृत्व में देश कहीं से कहीं तक जा सकता है क्योंकि मोदी है तो सब मुमकिन है। 

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