सुधीर कुमार सिन्हा ‘मुरली’
दिलेर समाचार, हिमालय की घाटियों में आप दूर तक कहीं भी चले जायें। अलौकिक, प्राकृतिक सुषमा आपका मन मोह लेगी। आप वहां जाकर इस कदर प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य में खो जायेंगे कि फिर घर लौटने का दिल नहीं करेगा।
हिमालय की मनोरम वादियों में ऐसे कई स्थल मिल जायेंगे जो आपको शहर के शोरगुल और नीरस माहौल से बिलकुल अलग कर आपको थोड़े समय के लिये एक ऐसी दुनिया में ला देंगे कि आप अपने सारे गमों को भूल सा जायेंगे।
अनेकों स्थलों के बीच एक पवित्रा स्थल है केदारनाथ जो एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक केन्द्र तो है ही, साथ ही पर्यटन के लिहाज से भी जिसका कम महत्त्व नहीं है।
केदारनाथ उत्तर प्रदेश के गढ़वाल मंडल में बद्रीनाथ से महज 42 किलोमीटर दूर समुद्र की सतह से 3,581 मीटर की ऊंचाई पर बसा देशी विदेेशी पर्यटकों, प्रकृति प्रेमियों, वनस्पति शास्त्रिायों और भक्तजनों के लिये एक खासा महत्त्वपूर्ण और रमणीय स्थान है।
यहां पर दूर-दूर तक फैले बर्फ से लदे गगनचुंबी हिमालय पर्वत के शिखर, ऊंचाई से गिरते झरनों का झर-झर करता सुमधुर स्वर, घाटियों से होकर सर्पीली चाल से बहती हुई मंदाकिनी नदी, चीड़ और देवदार के आकर्षक और मनमोहक नजारे तथा दूर तक फैली हुई खामोशी वातावरण को इतना खुशनुमा और रंगीला रूप प्रदान करते हैं कि दूर देश के रहने वाले सैलानी यहां की वादियों में मदमस्त होकर विचरण करते देखे जा सकते हैं। यहां के अलौकिक नजारे हृदय को शांति प्रदान करने के लिये काफी हैं।
केदारनाथ आप मई, जून और सितम्बर, अक्टूबर के महीने में जा सकते हैं। इन दिनों यहां का मौसम पर्यटन के लिहाज से बहुत ही खुशगवार रहता है। जुलाई-अगस्त में यहां व्यापक रूप से भारी वर्षा होती है तथा अक्टूबर से अप्रैल तक कड़ाके की सर्दी पड़ती है जिसके कारण यहां के मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं जो सर्दी के बाद मई के महीने में खुलते हैं, इसलिये इन दिनों तीर्थयात्रियों का आना बिलकुल ही बंद रहता है। हां, वनस्पतिशास्त्राी, चिंतक और प्रकृति प्रेमी इस मौसम में भी आना नहीं भूलते जबकि यहां के रास्ते बर्फ से अवरूद्ध हो जाते हैं।
दिल्ली से केदारनाथ हरिद्वार के रास्ते से जाने पर 346 किलोमीटर दूर है। अन्य स्थानों से भी केदारनाथ जाने के लिये बस की सुविधा उपलब्ध है। बदरीनाथ, गंगोत्राी, ऋषिकेश, मसूरी, कोटद्वार, काठगोदाम और नैनीताल से बसें नियमित रूप से केदारनाथ जाने वाले यात्रियों को ले जाती हैं। ये बसें सोनप्रयाग तक ही जाती हैं। यहां से केदारनाथ तक की 19 किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करनी पड़ती है जो सहयात्रियों के संग बतियाते हुये और राह के मनमोहक नजारों को निहारते हुए आसानी से कट जाती है।
पर्यटकों के लिये यूं तो सारा क्षेत्रा ही देखने लायक है, फिर भी कुछ ऐसे दर्शनीय स्थल अवश्य हैं जिनको देखे बिना लौट आना अधूरे पर्यटन की निशानी समझा जाता है। इन दर्शनीय स्थलों में कुछ आपकी जानकारी के लिये प्रस्तुत हैं:-
केदारनाथ मंदिर:- केदारनाथ मंदिर यहां का मुख्य दर्शनीय स्थल है। भक्तजनों के लिये यह मंदिर आकर्षण का मुख्य केन्द्र है। देश के कोने-कोने से हिन्दू तीर्थयात्राी यहां पूजा-अर्चना के लिये आते हैं। इस मंदिर में शिवलिंग स्थापित है। केदारेश्वर व नन्दी के अतिरिक्त इस मंदिर में पार्वती, गणेश, कुन्ती व पाण्डवों की मूर्तियों के दर्शन किये जा सकते हैं जो कलात्मकता की दृष्टि से बेजोड़ हैं। ऐसा कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद पाण्डव इस स्थान पर आये थे और उन्होंने यह मंदिर बनवाया था। भीषण सर्दी के मौसम में इस मंदिर के कपाट अक्टूबर से अप्रैल तक बंद रहते हैं।
गांधी सरोवर:- यह तालाब बहुत बड़ा है जो केदारनाथ से महज चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। प्राचीनकाल में इसे चोरावती तालाब के नाम से जाना जाता था परन्तु 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अस्थियों को इस तालाब में विसर्जन किये जाने के फलस्वरूप बाद में इस तालाब का नाम ‘गांधी सरोवर’ कर दिया गया। यह सरोवर मंदाकिनी नदी का भी है।
पंचगंगा:- केदारनाथ मंदिर के बिलकुल पास ही पर्वतों से उतरकर चार जलधारायें, मधुगंगा, सरस्वती, स्वर्णद्वारी और क्षीरगंगा मंदाकिनी नदी से आकर मिलती है जहां नयनाभिराम दृश्य पर्यटकों की आंखों को राहत पहंुचाता है, वहीं यह कवियों का प्रेरणालोक भी साबित होता है परन्तु इन जलधाराओं के मिलने से जो भयंकर शोर उत्पन्न होता है, वह दिल दहला देने वाला साबित होता है। इन पांच जलधाराओं के मिलने के कारण ही इस स्थान को पंचगंगा का नाम दिया गया है। यहां पर एक आकर्षक मंदिर भी है।
वासुकी ताल:- यह एक झीलनुमा ताल है जो केदारनाथ से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर मनमोहक नजारों के बीच में होने के कारण एक स्वप्नलोक सा प्रतीत होता है। यहां का सौन्दर्य किसी का भी मन मोह लेने में सक्षम है। पिकनिक प्रेमियों के लिए यह स्थान अति उत्तम समझा जाता है।
केदारनाथ पहुंचने से 19 किलोमीटर पूर्व जिस स्थान पर बस यात्रियों को छोड़ देती है यह सोनप्रयाग कहलाता है। यहां पर सोन नदी और मंदाकिनी नदी का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यहां की खूबसूरती को कैमरे में कैद करके आप एक खूबसूरत यादगार अपने साथ ले जा सकते हैं। अगर आप यहां की यात्रा पर आयें तो अपने साथ एक अच्छा सा कैमरा अवश्य लायें। यह आपकी यात्रा के आनंद को अवश्य द्विगुणित कर देगा।
यहां से 26 किलोमीटर दूर एक रास्ता गुप्तकाशी चला जाता है जहां से हिमालय की चौखम्बा चोटी का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। यहां पर चन्द्र शेखर महादेव तथा अर्द्धनारीश्वर के मंदिर में पूजा अर्चना की जा सकती है।
गुप्तकाशी से एक सड़क मदमहेश्वर तक चली जाती है तो दूसरी सड़क ऊंखीमठ, चोपता और चमोली होती हुई बदरीनाथ तक चली जाती है। इसके अलावा भीमगुफा, मधुगंगा, स्नोव्यू, श्रीरगंगा, भैरोशिला, उटककुंड, हंसकुंड तथा रेत कुंड भी यहां के महत्त्वपूर्ण दर्शनीय स्थल हैं।
इन सब जानकारियों के पश्चात् अब एक महत्त्वपूर्ण सवाल जो यहां पहुंचने वाले प्रत्येक सैलानी और तीर्थयात्रियों के मन में उभरता है, वह है खाने पीने और रहने ठहरने का सवाल।
खाने पीने के लिये हम पर्यटकों को बता दें कि यहां के छोटे छोटे ढाबों या होटलों में अत्यंत सस्ती दरों पर केवल शाकाहारी भोजन ही खाने को मिल सकता है।
ठहरने के लिए यहां पर कई लॉज, धर्मशाला, होटल, बिडला अतिथिगृह, लोक निर्माण विभाग का निरीक्षण भवन तथा मंदिर समिति के अतिथि गृह बने हुये हैं जिनमें पहले से आरक्षण करके ठहरा जा सकता है।
विशेष जानकारी के लिये आप उत्तराखंड के किसी भी पर्यटन कार्यालय से संपर्क स्थापित कर सकते हैं या रीजनल टूरिस्ट ब्यूरो, हरिद्वार उत्तराखंड टूरिस्ट ऑफिस, ऋषिकेश उत्तराखंड को लिख सकते हैं।
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