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पाकिस्तान को अक्ल है की आती नहीं

Posted at: Oct 8 , 2019 by Dilersamachar 10668

नरेंद्र देवांगन

गुलाम कश्मीर के मुजफ्फराबाद में मुट्ठी भर लोगों को संबोधित करते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्राी इमरान खान ने कहा कि अत्याचार जब सीमा पार कर लेता है तो लोग जलालत भरी जिंदगी से मौत को बेहतर मानने लगते हैं। यही स्थिति आतंकवाद को जन्म देती है। इमरान खान भारत द्वारा अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद दुनिया भर में चलाए गए विफल अभियान के बाद गुलाम कश्मीर के लोगों को संबोधित करके सहानुभूति बटोरने का ढकोसला कर रहे थे। यह टिप्पणी करते हुए इमरान खान का इशारा भारत के कश्मीर की ओर था लेकिन यह स्थिति वही है कि जब आप किसी की ओर एक उंगली दिखाते हैं तो तीन उंगलियां अपनी ओर संकेत कर रही होती हैं।

भारत ने जब से जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटा कर उसे भारत का अभिन्न अंग बनाया है, तब से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। इस बौखलाहट में उसे बार-बार मुंह की खानी पड़ रही है लेकिन अक्ल है कि आती नहीं। तमाम अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के इस कदम के खिलाफ दुष्प्रचार का मोर्चा खोल रखा है। हालांकि बीते दिनांे उसके ही गृहमंत्राी एजाज अहमद शाह ने सार्वजनिक रूप से माना कि कश्मीर पर उनकी कहानी पर दुनिया यकीन नहीं कर रही है। एजाज साहब कभी जासूस और सेना के अधिकारी हुआ करते थे। कश्मीर पर दुनिया के मनोभावों को उनसे अच्छा भला कौन जान सकता है। बहरहाल इमरान सरकार इन सबसे बेखबर भारत पर तोहमत मढ़ने में मशगूल है कि वहां मानवाधिकारों का हनन हो रहा है, कश्मीर में जुल्मांे सितम चरम पर हैं आदि।

1947 में भारत और पाकिस्तान अलग-अलग देश बने। आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर अग्रसर है और पाकिस्तान अपने कर्जों को चुकाने के लिए अगर कटोरा ले कर भीख मांगने को विवश हुआ है तो उस देश की यही सोच, समझ और संस्कृति इसके लिए जिम्मेदार है। दरअसल पाकिस्तान के 70 साल के इतिहास में आधे समय तक तो फौजी हुकूमत रही है। मानवाधिकार के हनन और जुल्मोसितम की इंतहा तो वह खुद बलूचिस्तान, गुलाम कश्मीर, बाल्टिस्तान और सिंध इलाकों में कर रहा है। उसके यहां कट्टरपंथियों ने अल्पसंख्यकों के जीवन को नर्क बना रखा है। तभी तो सिख और हिन्दू अल्पसंख्यकों को भाग कर भारत में शरण लेनी पड़ रही है। हाल ही में इमरान खान की पार्टी के नेता बलदेव कुमार का भारत में राजनीतिक शरण मांगना ज्वलंत उदाहरण है। ऐसे में पाकिस्तान में मानवाधिकारों की पड़ताल आज बड़ा मुद्दा है।

पाकिस्तान में सिखों और हिन्दुओं को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जाता है। उनकी लड़कियों का अपहरण कर मर्जी के खिलाफ विवाह करके उनका धर्म परिवर्तन कर दिया जाता है। शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी(एसजीपीसी) दुनिया भर में अल्पसंख्यकों चाहे वे किसी भी धर्म या कौम के साथ संबंधित हों, यदि उनके अधिकारों का हनन होता है तो इसके खिलाफ आवाज उठाती है। पाकिस्तान मेें जब भी सिखों पर अत्याचार हुए हैं, तब एसजीपीसी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके खिलाफ आवाज उठाई है। सरकारों का फर्ज है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करें ताकि उनकी संस्कृति व सभ्याचार नष्ट न हो।

पाकिस्तान द्वारा जम्मू कश्मीर भू-भाग में मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाना हास्यास्पद है। दरअसल उसके यहां जो कुछ हो रहा है, वही आरोप वह भारत के मत्थे मढ़ना चाह रहा है। दुनिया भर में किसी से यह छिपा नहीं है कि पाकिस्तान में मानवाधिकारों की बड़ी बर्बरता से आधी सदी से भी अधिक समय से धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। कभी पूर्वी पाकिस्तान कहलाने वाले आज के बांग्लादेश का जन्म राक्षसी वंशनाशक नरसंहार की प्रसव वेदना झेलने के बाद हुआ था। इस दैत्याकार रक्तपात के लिए पाकिस्तानी फौज ही जिम्मेदार थी।

अब पूरे विश्व में आतंक के पर्याय के रूप में पाकिस्तान को पहचाना जाने लगा है। जम्मू कश्मीर के एक बड़े भूभाग पर कब्जा करने के बाद भी विश्व शक्तियों के संरक्षण के कारण वह सदैव भारत को आंखें दिखाता रहा है। अपनी कमजोर इच्छाशक्ति के कारण भारत अपनी ही भूमि पर अपना अधिकार जताने में हमेशा संकोच करता रहा।

स्वतंत्रा भारत के प्रति विश्व ताकतों की दृष्टि और कश्मीर को लेकर उनकी राय लगातार बदलती रही है। स्वतंत्राता के समय और उसके पश्चात जहां पश्चिमी देश चाहते थे कि जम्मू कश्मीर पाकिस्तान में जाए, वहीं बाद में उन्होंने जम्मू कश्मीर को एक स्वतंत्रा राज्य के रूप में स्थापित करने की कोशिश की। संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य होने के बावजूद धीरे-धीरे भारत का स्थान सिकुड़ता गया और नवजात राष्ट्र पाकिस्तान उसी गति से वैश्विक मंचों पर अपनी पकड़ मजबूत करता गया।

पाकिस्तान द्वारा नाजायज तरीके से हथियाए पीओके उर्फ तथाकथित आजाद कश्मीर की बगावत निर्ममता से कुचले जाने का इतिहास बार-बार बनता रहता है। यहां निर्धन सामान्य नागरिकों तथा महिलाओं के बुनियादी मानवाधिकारों का भी कोई अस्तित्व नहीं है। पाकिस्तान की हरकतों से यह साफ है कि उसे यह समझ नहीं आ रहा कि वह दुनिया को इसके लिए कैसे समझाए कि कश्मीर को लेकर उसकी ओर से जो कुछ कहा जा रहा है, वह सही है। वास्तव में इसी कारण वह छल-कपट के साथ झूठ का सहारा लेने में लगा हुआ है। चूंकि दुनिया भी पाकिस्तान को आतंक के गढ़ के रूप में ही देखती है, इसलिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में उसे किसी तरह के समर्थन की उम्मीद पालनी ही नहीं चाहिए।

भारत ने अपने नियंत्राण वाले जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाया तो पाकिस्तान ने तीखी प्रतिक्रिया दी। संवैधानिक और व्यावहारिक रूप में पाकिस्तान के लिए इस निर्णय पर प्रतिक्रिया की कोई आवश्यकता नहीं थी। किंतु उसने यह समझने मंे कोई चूक नहीं की कि न केवल जम्मू कश्मीर बल्कि पाकिस्तान के नागरिकों के बीच भी इस मुद्दे पर जो भ्रम का मायाजाल रचा था, वह मोदी सरकार के इस एक फैसले से तार-तार हो गया है। इसीलिए आज पाकिस्तान की सरकार और वहां की सेना विचलित है।

अब जब यह और अधिक स्पष्ट है कि सेना के वर्चस्व वाला पाकिस्तान कश्मीर के हालात बिगाड़ने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है, तब भारत को उसे कठघरे में खड़ा करने, उसके झूठ को बेनकाब करने और उसे चेताने के अलावा भी कुछ करना होगा। यह कोई बेहतर स्थिति नहीं कि भारत पहले की तरह प्रतिक्रिया व्यक्त करता हुआ अथवा अपनी सीमाओं की चौकसी बढ़ाता हुआ दिखे।

दुनिया भर में समर्थन जुटाने के लिए पाकिस्तान दौड़ भाग कर रहा है किंतु सफलता हाथ नहीं लग रही। इमरान खान कह रहे हैं कि संयुक्त राष्ट्र में वे पूरी दुनिया को अपने समर्थन में ले आएंगे लेकिन यह दिवास्वप्न ही रहने वाला है। वे जितनी जल्दी वैश्विक परिदृश्य को समझ जाएंगे, उतना ही यह उनके लिए अच्छा होगा। 

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