Logo
March 29 2024 04:44 PM

ऐसा जगह जहां चढ़ाया जाता है कैदियों द्वारा बनाया पुष्प मुकुट

Posted at: May 21 , 2018 by Dilersamachar 9765

पवन कुमार कल्ला

दिलेर समाचार, अपने समयकाल में रावण ने शिव भगवान की घोर तपस्या की थी, यह बात आज भी हजारों वर्षों बाद आम जन के मुंह पर है। शिव की ही कृपा थी कि रावण ने इतनी अतुलित बल सम्पदा एकत्रित कर ली थी कि उसने नौ ग्रहों तक को अपने बस में कर रखा था।

एक बार रावण के मन में यह इच्छा हुई कि वह महाकाल महादेव को अपने देश लंका ले चले। उसने इसके लिए हठधर्मी घोर तपस्या की। जब भगवान का कोई प्रत्युतर प्रतिफल में नहीं मिला, तब रावण ने ऐसे में अपने सिरों की एक-एक करके बलि चढ़ाना आरम्भ कर दिया। रावण ने इस हठधर्मिता में अपने नौ सिरों को तो अर्पित कर दिया था मगर ज्योहीं दसवां सिर वह भगवान शिव को काटकर चढ़ाने लगा, त्योहीं शिव भगवान ने उसके नौ सिरों को जोड़कर वर मांगने का आशीर्वाद दिया। प्रतिकांक्षा में रावण ने भगवान शिव को लंका ले चलने की बात

बताई।

भगवान ऐसे उच्चकोटि के भक्त की बात कैसे टालते। उन्होंने रावण से कहा कि वे लिंग रूप में उसके साथ लंका चलेंगे लेकिन प्रतीक लिंग को अगर रावण ने राह में कहीं जमीन पर रख दिया तो शिव ने कहा कि मैं वहीं पर ही स्थापित हो जाऊंगा। देवताओं के खेमे में यह हलचल मच गई कि भगवान शिव आखिर ऐसा क्यों कर रहे हैं। उन्होंने ऐसे में भगवान विष्णु की सहायता ली।

भगवान विष्णु व अन्य देवताओं ने अपने माया जाल से रावण के उदर में ऐसी स्थिति उत्पन्न की कि उसे तीव्र लघुशंका हो गई। ऐसे में भगवान विष्णु दूसरे वेश में तुरंत मौका ताड़कर रावण के आगे उपस्थित हो गये। रावण ने भगवान विष्णु को पहचाना नहीं लेकिन उनसे सहायता मांग ली कि उसे तीव्र लघुशंका हुई है जब तक वह नहीं लौटता, तब तक शिवलिंग को हाथ में पकड़े रहना है। इसे किसी भी सूरत में जमीन पर नहीं रखना है। रावण के लघु शंका जाते ही भगवान विष्णु ने शिव के प्रतीक लिंग को जमीन पर रख दिया।

रावण जब लघुशंका करके वापस लौटा तो उसने जमीन पर रखने का कारण पूछा। अन्य वेशधारी विष्णु ने पूरी बात बता दी। रावण ने शिवलिंग को उठाने की भरसक चेष्टा की मगर शिवलिंग टस से मस नहीं हुआ। आखिर रावण को क्रोध आ गया। उसने अपने पांव के अंगूठे के बल प्रयोग से शिवलिंग को दबा दिया जो आज भी उसी रूप में झारखंड राज्य के देवघर में वैद्यनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध है जहां श्रावणमास में महाकुंभ रूपी मेला भरता है जिसमें जनश्रुति के अनुसार चालीस से पचास लाख लोगों की उपस्थिति देखी जा सकती है।

आलेख लेखक पवन कुमार कल्ला ने देवघर के इस रावणेश्वर महादेव शिवलिंग को काफी नजदीक से देखा और यह पाया कि वास्तव में ही शिवलिंग पर अंगूठे से दबाने का निशान कायम है और यह शिवलिंग जलहरी की तुलना में बहुत छोटा है। केवल आधार से थोड़ा-सा ऊंचा उठा हुआ है। यह भारत का पहला शिवलिंग माना जा सकता है जो इतने छोटे आकार में होते हुए भी हिंदुओं के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शुमार किया जाता है। हालांकि परली वैद्यनाथ भी भक्तों, संतों इत्यादि द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग में शुमार किया जाता है लेकिन यह बहस का विषय नहीं है। दोनों शिवलिंग अत्यंत वंदनीय तथा श्रद्धा के पात्रा हैं।

अनेक तर्क इस बात पर भी हैं जिनके साक्ष्य देवघर सिथत वैद्यनाथ धाम के पक्ष में जाते हैं। देशभर में रावणेश्वर शिवलिंग कई स्थानों पर हो सकते हैं क्योंकि रावण और शिव एक-दूसरे के पर्याय बने हुए हैं मगर देवघर का शिवलिंग वहीं शिवलिंग है जिसको रावण ने स्वयं लंका ले जाने का प्रयास किया था इसलिए इस शिवलिंग का नाम रावणेश्वर शिवलिंग होना वांच्छित है।

देवघर का रावणेश्वर शिवलिंग चमत्कारों के किस्सों से भरा पड़ा है। प्रथम विश्वयुद्ध के समय झारखंड के इस क्षेत्रा में एक अंग्रेजी जेलर था जिसका पुत्रा प्रथम विश्व युद्ध में मोर्चे पर लड़ने गया हुआ था। उसकी मृत्यु के दुःखद समाचार से अंग्रेज जेलर टूट सा गया और वह अवसाद से घिरा रहने लगा। उसकी इस दशा को देखते हुए केदार पाण्डेय नामक हवलदार ने देवघर स्थित शिवलिंग की आराधना हेतु जेलर को प्रेरित किया। ईसाई होते हुए भी जेलर ने हवलदार केदार पाण्डेय की बात मानी और देवघर सिथत शिव मंदिर में आराधना करने लगा।

आधी रात में जेलर ने एक अद्भुत सपना देखा कि जिसमें भगवान शिव ने गले में सर्पों की माला पहनी हुई थी तथा मस्तक पर दिव्य पुष्प मुकुट शोभायमान था। भगवान शिव ने जेलर को सपने में ही यह समचार दिया कि उसका पुत्रा कुशल मंगल है। जेलर को ऐसा लगा कि उसकी दुनिया लौट आई है। वास्तव में ही जेलर को इसी प्रकार का टेलिग्राम प्राप्त हुआ जिसमें पुत्रा के सशुकल होने का समाचार था। जेलर ने मिठाइयां बांटी और भगवान को प्रसाद चढ़ाया।

अचानक ही जेलर की नजर एक कैदी पर पड़ी। वह कैदी उसी प्रकार का पुष्प मुकुट बना रहा था जो रात्रि के स्वप्न में जेलर ने भगवान शिव को धारण किये हुए देखा था। जेलर बहुत खुश हुआ। उसने उस कैदी से वह पुष्प मुकुट लिया और तत्काल मंदिर जाकर भगवान भोलेनाथ के सिर पर चढ़ाया। जेलर ने तब से यह परम्परा ही डाल दी कि वह अपने कार्यकाल के दौरान कैदियों से प्रतिदिन पुष्प मुकुट बनवायेगा तथा संध्या  के समय वह पुष्प मुकुट भगवान भोलेनाथ के सिर पर चढ़ाया जायेगा। उसी समय से यह अनवरत परम्परा ही चल पड़ी कि कारागृह से आज भी कैदियों द्वारा निर्मित पुष्प मुकुट बनकर आता है तथा भगवान भोलेनाथ के सिर पर चढ़ाया जाता है। एक शताब्दी के लगभग इस दुर्लभ परम्परा के योगदान में परतंत्राता, स्वतंत्राता, लोकतंत्रिया सरकारों का आना-जाना सब चलता रहा मगर किसी भी सरकार ने इस परम्परा को खत्म करने का प्रयास नहीं किया अपितु आव-आदर, स्नेह, श्रद्धा के भाव का दिन-प्रतिदिन उत्तरोतर विकास ही हुआ है।

1 अगस्त 1999 को तिनसुकिया रेल दुर्घटना हुई जिसमें कांवडि़ये सवार थे। आश्चर्यजनक किन्तु यह सत्य है कि इस भयानक विभीषिका के बावजूद 72 कावडि़यों में से किसी को भी नुकसान नहीं हुआ जबकि कावडि़यों वाली बोगी भी जल चुकी थी।

ऐसे ही सैंकड़ों किस्से जसीडीह जंक्शन का देवघर शिव के अद्भुत चमत्कारों से भरा पड़ा है। देवघर में भगवान शिवलिंग के अलावा नंदन पहाड़ी, तपोवन, हरिला जोड़ी, त्रिकुटाचल पर्वत, महादेव झरना, बैजू मंदिर, नवदुर्गा मंदिर, कुण्डेश्वरी देवी आदि अन्य छोटे-बड़े तीर्थ हैं जो कुछ किलोमीटर के दायरे में ही फैले हुए हैं। मंदिर के भीतर भी अनेक मंदिर दर्शनीय है। देवघर में अलसुबह से ही देर रात्रि तक भक्तिमय माहौल रहता है जिसमें वैदिक रीति-नीति से शिवशंकर का पूजन अर्चन होता रहता है।

ये भी पढ़े: आपने भी बचपन में की होगी ये गल्ती से मिस्टेक, जानें छिपकलियों के बारे में कुछ ऐसी ही मजेदार बातें

Related Articles

Popular Posts

Photo Gallery

Images for fb1
fb1

STAY CONNECTED