विद्यासागर मिश्र
तम्बाकू अपने आगोश में नित्य नये चेहरे समेटता जा रहा है। हर बुद्धिजीवी यह भलीभांति जानने के बाद भी कि तम्बाकू विष सदृश है, तम्बाकू के डिब्बे पर मुद्रित वाक्य (तम्बाकू का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है) और सिगरेट के डिब्बे पर मुद्रित वैधानिक चेतावनी पढ़ने के बाद भी और विज्ञापनों आदि के माध्यम से तम्बाकू के हानिकारक प्रभावों को जानने के बावजूद आंख मूंद कर इसका सेवन किया जा रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ;ॅभ्व्द्ध के अनुसार प्रतिवर्ष तम्बाकू और सिगरेट सेवन से उत्पन्न बीमारियों से 40 लाख व्यक्ति मौत की नींद सो जाते हैं। प्रतिदिन लगभग 11 हजार लोगों की मौत इसके सेवन से उत्पन्न बीमारियों से हो रही है।
तम्बाकू एवं सिगरेट सेवन से आमतौर पर फेफड़े का कैंसर, मुख एवं गले का कैंसर, ब्रोंकाइटिस, रक्त धमनियों में रूकावट, दिल का दौरा, पैरालिसिस, उच्च रक्तचाप, माइग्रेन. टी.बी. आदि अनेक बीमारियों की आशंका रहती है।
हालांकि सरकार द्वारा समय- समय पर इस पर नियंत्राण हेतु उपाय एवं जनता का ध्यान दिलाया जाता है जैसे-सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर निषेध लगाना, धूम्रपान निषेध का विज्ञापन बोर्ड लगाना, रेडियो, टी वी अन्य सरकारी तंत्रों द्वारा भी इस कुप्रथा पर रोक लगाने के संदर्भ में दुष्प्रभावों को प्रचारित करते हुए विज्ञापन दिखाना, नागरिकों से अपील करना तथा न छोड़ने पर दण्ड के लिए भी विज्ञापन करवाना आदि इस दिशा में रचनात्मक कदम अवश्य हैं।
पूर्व स्वास्थ्य मंत्राी डॉ. सी. पी. ठाकुर ने भी इस दिशा में रोकथाम हेतु पत्राकारों से वार्ता के दौरान यह आश्वासन दिया था कि तम्बाकू तथा सिगरेट से संबंधित उत्पादों के प्रचार पर शीघ्र ही रोक लगा दी जायेगी और इस संदर्भ में कुछ कार्य हुआ भी। दूसरी ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ग्रो. हार्लेम ब्रंटलैंड ने पूरी दुनियां में धूम्रपान विरोधी अभियान चलाकर उसे प्रतिबंधित करने की दिशा में समझौता करने का आह्वान किया है।
इन सभी प्रयासों के बाद भी कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया और इसके प्रेमी बढ़ते जा रहे हैं। इस कुप्रथा से पूर्ण निजात सरकारी आदेशों से संभव होता नजर नहीं आता जब तक कि व्यक्ति इस पर खुद न सोचे।
इस समस्या से निजात पाने के लिए तम्बाकूप्रेमी जन को अपने विचारों पर नियंत्राण लाना पड़ेगा। जब तक व्यक्ति स्वयं यह नहीं सोचेगा कि वह क्या कर रहा है, वह जो कर रहा है, वह उसके हित में है या नहीं, तब तक इस पर नियंत्राण संभव नहीं है।
अपने विचारों मंे परिष्कार लाकर ही व्यक्ति इस दुष्प्रवृत्ति से निजात पा सकता है। यदि समय रहते इस पर सोचा नहीं गया तो पूरी मानवता रूग्ण हो जायेगी। जरूरत इस बात की है कि चाहे जैसे भी हो, व्यक्ति इस प्रवृत्ति से अपने आप को मुक्त कर ले।
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