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राहुल! कांग्रेस को यूं मंझधार में मत छोड़ो

Posted at: Jul 8 , 2019 by Dilersamachar 9572

फिरदौस खान

लोकसभा में हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने पद से इस्तीफा देने का ऐलान करते हुए साफ कह दिया कि पार्टी अपना नया अध्यक्ष चुन ले। कार्यकर्ताओं और पार्टी नेताओं के लाख मनाने पर भी वे अपना इस्तीफा वापस लेने को तैयार नहीं हैं। राहुल गांधी के इस फैसले से पार्टी कार्यकर्ताओं में मायूसी छा गई है। पहले लोकसभा हार ने उन्हें मायूस किया, फिर राहुल गांधी के इस्तीफे ने उन्हें दुख पहुंचाया। हालांकि उन्होंने कहा है कि वे नये पार्टी अध्यक्ष की पूरी मदद करेंगे। दरअसल, राहुल गांधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के बिछाये जाल में फंस गए हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी ने साजिशन कांग्रेस पर परिवारवाद के आरोप लगाए और राहुल गांधी ने इसे गंभीरता से लेते हुए पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी ने जो चाहा, राहुल गांधी ने वही किया।

जीत और हार, धूप और छांव की तरह हुआ करती हैं। वक्त कभी एक जैसा नहीं रहता। देश पर हुकूमत करने वाली कांग्रेस बेशक आज गर्दिश में है, लेकिन इसके बावजूद वह देश की माटी में रची-बसी है। देश का मिजाज हमेशा कांग्रेस के साथ रहा है और आगे भी रहेगा। कांग्रेस जनमानस की पार्टी रही है। कांग्रेस का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है। इस देश की माटी उन कांग्रेस नेताओं की ऋणी हैं जिन्होंने अपने खून से इस धरती को सींचा है। देश की आजादी में महात्मा गांधी के योगदान को भला कौन भुला पाएगा। देश को आजाद कराने के लिए उन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी समर्पित कर दी। पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी ने देश के लिए, जनता के लिए बहुत कुछ किया।

पंडित जवाहर लाल नेहरू ने विकास की जो बुनियाद रखी, इंदिरा गांधी ने उसे परवान चढ़ाया। राजीव गांधी ने देश के युवाओं को आगे बढ़ने की राह दिखाई। उन्होंने युवाओं के लिए जो ख्वाब संजोये, उन्हें साकार करने में सोनिया गांधी ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस ने देश को दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाया। देश को मजबूत करने वाली कांग्रेस को आज खुद को मजबूत करने की जरूरत है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को हार को भुलाकर अन्याय के खिलाफ संघर्ष को जारी रखना करना चाहिए। सड़क से सदन तक पार्टी को नये सिरे से खड़ा करने का मौका उनके पास है। राहुल गांधी किसी खास वर्ग के नेता न होकर जन नेता हैं। वे कहते हैं, ‘जब भी मैं किसी देशवासी से मिलता हूं। मुझे सिर्फ उसकी भारतीयता दिखाई देती है। मेरे लिए उसकी यही पहचान है। अपने देशवासियों के बीच न मुझे धर्म, न वर्ग, न कोई और अंतर दिखता है।‘

राहुल गांधी के कंधों पर दोहरी जिम्मेदारी है। पहले उन्हें पार्टी को मजबूत बनाना है और फिर खोई हुई हुकूमत को हासिल करना है। उन्हें चाहिए कि वे देश भर के सभी राज्यों में युवा नेतृत्व खड़ा करें। सियासत में आज जो हालात हैं, वे कल भी रहेंगे, ऐसा जरूरी नहीं है। जनता को ऐसी सरकार चाहिए, जो जनहित की बात करे, जनहित का काम करे। बिना किसी भेदभाव के सभी तबकों को साथ लेकर चले। कांग्रेस ने जनहित में बहुत काम किए हैं। ये अलग बात है कि वे अपने जन हितैषी कार्यों का प्रचार नहीं कर पाई, उनसे कोई फायदा नहीं उठा पाई जबकि भारतीय जनता पार्टी लोक लुभावन नारे देकर सत्ता तक पहुंच गई। बाद में खुद प्रधानमंत्राी ने अपनी पार्टी के चुनावी वादों को’ जुमला’ करार दे दिया।

आज देश को राहुल गांधी जैसे नेता की जरूरत है जो छल और फरेब की राजनीति नहीं करते। वे कहते हैं,  ‘मैं गांधीजी की सोच से राजनीति करता हूं।‘ अगर कोई मुझसे कहे कि आप झूठ बोल कर राजनीति करो तो मैं यह नहीं कर सकता। मेरे अंदर ये है ही नहीं। इससे मुझे नुकसान भी होता है। ‘मैं झूठे वादे नहीं करता।‘ 

बेशक लोकसभा चुनाव में हार से पार्टी को झटका लगा है लेकिन आज पार्टी हारी है तो कल जीत भी सकती है। कांग्रेस को इस हार से सबक लेकर उन कारणों को दूर करना होगा जिनकी वजह से पार्टी आज इस हालत तक पहुंची है। कांग्रेस को मजबूत करने के लिए पार्टी की आंतरिक कलह को दूर करना होगा। पार्टी की अंदरूनी खेमेबाजी को भी खत्म करने की जरूरत है। मार्च 2017 में पार्टी के वरिष्ठ नेता सज्जन सिंह वर्मा ने तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्रा लिखा था, जिसमें उन्होंने कुछ सियासी परिवारों पर कांग्रेस को खत्म करने की एवज में सुपारी लेने का आरोप लगाया था। उन्होंने पार्टी अध्यक्ष को फौरन सख्त कार्रवाई करने की सलाह देते हुए लिखा था- ‘इंदिरा गांधी ने राजा-महाराजाओं का प्रभाव खत्म करने के लिए रियासतें खत्म कर दी थीं, तब कुछ लोगों ने खूब शोर मचाया था। अब वही लोग राजनीतिक शोर मचा रहे हैं। ऐसे लोगों का प्रभाव खत्म करने के लिए कठोर निर्णय लेने होंगे। तभी हमारी पार्टी खड़ी हो पाएगी।‘ हालांकि सज्जन सिंह वर्मा का पत्रा सार्वजनिक होने के बाद इस पर बवाल भी मचा था।  इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर सज्जन कुमार की बातों को गंभीरता से लिया जाता और उन पर अमल किया जाता तो शायद आज हालात कुछ और होते।

बहरहाल, इस बात में कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस की नैय्या डुबोने में इसके खेवनहारों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। राहुल गांधी भी अब इस बात को बखूबी समझ चुके हैं। हाल में हुई कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में उन्होंने खुद कहा है कि पार्टी के कई नेताओं ने पार्टी से आगे अपने बेटों को रखा और उन्हें टिकट दिलाने के लिए दबाव बनाया। हालांकि राहुल गांधी ने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन कई वरिष्ठ नेताओं के बेटे और बेटियों को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। इनमें राजस्थान के मुख्यमंत्राी अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत, कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व केंद्रीय मंत्राी जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्राी संतोष मोहन देव की बेटी सुष्मिता देव भी शामिल हैं।  दरअसल कांग्रेस नेताओं के निजी स्वार्थ ने पार्टी को बहुत नुकसान पहुंचाया है। 

राहुल गांधी को इसी को मद्देनजर रखते हुए आगामी रणनीति बनानी होगी। पार्टी के नेताओं ने कांग्रेस को अपनी जागीर समझ लिया और सत्ता के मद में चूर वे कार्यकर्ताओं से भी दूर होते गए। नतीजतन, जनमानस ने कांग्रेस को सबक सिखाने की ठान ली और उसे सत्ता से बदखल कर दिया। वोटों के बिखराव और सही रणनीति की कमी की वजह से भी कांग्रेस को ज्यादा नुकसान हुआ। पिछले लोकसभा चुनाव में जहां कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं, वहीं इस बार के आम चुनाव में कांग्रेस महज 52 सीटें ही जीत पाई है। मेहनत और सही रणनीति से यह संख्या 300 से 400 तक भी पहुंच सकती है।

राहुल गांधी को चाहिए कि वे ऐसे नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाएं जो पार्टी के बीच रहकर पार्टी को कमजोर करने का काम कर रहे हैं। राहुल गांधी को चाहिए कि वे कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाएं क्योंकि कार्यकर्ता किसी भी पार्टी की रीढ़ होते हैं। जब तक रीढ़ मजबूत नहीं होगी, तब तक पार्टी भला कैसे मजबूत हो सकती है। उन्हें पार्टी के क्षेत्राीय नेताओं से लेकर पार्टी के आखिरी कार्यकर्ता तक अपनी पहुंच बनानी होगी। बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करना होगा। साफ छवि वाले जोशीले युवाओं को ज्यादा से ज्यादा पार्टी में शामिल करना होगा। कांग्रेस की मूल नीतियों पर चलना होगा ताकि पार्टी को उसका खोया हुआ वर्चस्व मिल सके। इसके साथ ही कांग्रेस सेवा दल को भी मजबूत करना होगा।

राहुल गांधी को याद रखना होगा, मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। जो सच के साथ होते हैं, वो कभी हारा नहीं करते।

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