दिलेर समाचार, शरीर पर हमारे द्वारा की गई हर क्रिया का प्रभाव पड़ता है। रोना भी एक ऐसी क्रिया है जो शरीर, मन एवं स्वास्थ्य पर बड़ा प्रभाव डालती है। शारीरिक या मानसिक या दोनों ही कष्टों के कारण रोना आता है।
रोने के कारण श्वास की गति बढ़ जाती है, आंखें पानी से भर जाती हैं और बोलने में रूकावट उत्पन्न होती है। आंखों की ग्रंथियों में से आंसू बहते हैं। जन्म के समय से मरने तक व्यक्ति काफी बार रोता है।
रोना सेहत के लिए अच्छा होता है। जब भी रोना आए, इसे नहीं रोकना चाहिए। ऐसा करने से कई रोग हो सकते हैं। रोने से मन शांत हो जाता है, आंखें साफ हो जाती हैं और आंखों को आराम मिलता है।
हर व्यक्ति का जैसे हंसने का ढंग अलग होता है, वैसे ही रोने का ढंग भी अलग होता हैं।
उदाहरण के लिए-धीरे से रोना, उच्च स्वर में रोना, फूट-फूट कर रोना, सिसकियां भरना, आंसुओं के बिना रोना, मन ही मन रोना आदि। कुछ व्यक्ति रोने पर किसी के पूछने पर और जोर से रोने लगते हैं। बच्चे कभी-कभी डांटने से चुप भी कर जाते हैं। कुछ लोग किसी के देखने पर रोते हुए चुप कर जाते हैं।
जब रोने की क्रिया होती है तो शरीर में वायु उत्पन्न होती है। इसे शरीर में से रोने पर ही निकाला जा सकता है। इसलिए अगर न रोया जाए तो यह वायु शरीर के अंदर नुक्सान करती है जिसके कारण वायुगोला, पेट दर्द व अन्य रोग हो जाने की संभावना रहती है।
आंखों में निरंतर ही अश्रु-गंरथियों में आंसुओं का निर्माण होता रहता है। अगर रोने पर ये बाहर न निकलें तो ये दूषित हो जाते हैं। रोने के बाद प्रसन्न होने का प्रयास करना चाहिए। इससे शरीर को लाभ पहुंचाता है।
अधिक रोने से आंखों के रोग, मानसिक रोग, आलस, थकान, चक्कर आदि रोग हो जाते हैं, इसलिए प्रसन्नचित रहने का प्रयास करना चाहिए।
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