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रम्य, मनोरम और दिव्य हिमाचल

Posted at: Jun 21 , 2018 by Dilersamachar 9682

घनश्याम बादल

दिलेर समाचार, प्रकृति की रमणीय गोद में बसा देवभूमि हिमाचल ऐसा राज्य है जहां लोग सर्दियों में हिमपात का आनंद लेने जाते हैं तो गर्मियों में मैदानी भागों की लू से बचने के लिए।

सुरक्षित व रम्य:-

जहां आतंकवाद के कारण कश्मीर में बर्फानी सुंदरता का आनंद लेना आसान नहीं रहा है और पंजाब के नशे ने सैलानियों को वहां से दूर रखा है तो उत्तराखंड में संसाधनों की कमी और दुर्गमता तथा केदारनाथ में आई तबाही के भय ने वहां के पर्यटन को नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश में आप कश्मीर की सुंदरता , पंजाब की मस्ती और उत्तराखंड की मनोहर सुषमा का आनंद ले सकते हैं। यही कारण है कि हिमाचल पर्यटकों का स्वर्ग बनता जा रहा है।

दो राष्ट्रीय उद्यान:-

दो राष्ट्रीय उद्यान 754 वर्ग किमी में फैला कुल्लू जिले का  ‘ द ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क ’ व 675 वर्ग किमी में फैला लाहौल स्पीति का  नेशनल पार्क ‘पिन वैली हिमाचल को और भी रोमांचक व सुंदर बना देते हैं।

ये हरियाली और ये वादियां:-

हरियाली ओढ़े, सीढ़ीनुमा खेतों से सजी, स्वास्थ्यवर्धक चीड़ व देवदार व साल के वृक्षों से समृद्ध पहाडि़यों के बीच खुली जगह पर सुंदर, सजीली, भोली, लजीली, कोमल पहाड़ी युवतियां मेलों में पारंपरिक सलवार कुर्ता, घाघरा पहने सर पर चटकीले रंगबिरंगे ढाठू बांधे, मेले में लगी दुकानों पर खिलखिलाते हुए मंडराती हैं तो ऐसा लगता है मानों फूलों पर तितलियां आ गई हों।

उधर मैदान के हर ओर हजारों गांववासी मनपसंद परिधानों में जमे हुए प्रतीक्षा कर रहे हैं। गप्पे लड़ाती, आंखें मटकाती, पुराने संबंधियों व मित्रों से मुलाकातों के बीच अपनी पसंद का साथी खोजती हैं तो  रोमांस जर्रे जर्रे में अंकुरित हो उठता है।

ढोल-नगाडे़ और शहनाई:-

मैदानोंमें ढोल-नगाडे, शहनाई, रणसिंघा, करताल, मृदंग, दमामठू व तुरही की जोश बढ़ाती रणभेरी सी आवाजों की बीच तलवारें, भाले, खुखरिया, डांगरे, लाठियां, बंदूकें व तीर-कमान लहराते हुए एक योद्धा दल जब युद्धस्थल की ओर बढ़ते हैं और फिजाओं में स्थानीय लोकगीत गूंजते हैं तो हिमाचली संस्कृति जीवंत हो उठती है।

‘ठोडा’ के तो कहने ही क्या !

इस उत्सव के माहौल में  ‘ठोडा’ के तो कहने ही क्या।  तीरंदाजी में भी  हिमाचल व उत्तराखंड की पर्वतावलियों के बाशिंदों की यह तीरकमानी निराली है। माना जाता है कि कौरवों व पांडवों की यादें इन पर्वतीय क्षेत्रों में अभी तक रची-बसी हैं। ठोडा योद्धाओं में एक दल पाशी (पाश्ड, पाठा, पाठडे) यानी पांच पांडवों का है और दूसरा शाठी (शाठड, शाठा, शठडे) यानी कौरवों का होता है। जनश्रुतियों के अनुसार कौरव साठ थे सो शाठड (साठ) कहे जाते हैं। कभी कबीलों में रह चुके यह दल अपने को कौरवों व पांडवों के समर्थन में लड़े योद्धाओं का वशंज मानते हैं।

क्या है ठोडा ?

इसके लिए धनुर्धारी कमर से नीचे मोटे कपड़े, बोरी या ऊन का घेरेदार वस्त्रा लपेटते हैं या फिर चूड़ीदार वस्त्रा (सुथन) पहनते हैं। मोटे-मोटे बूट, कहीं-कहीं भैंस के चमडे़ से बनाए गए घुटनों तक के जूते, साधारण कमीज व जैकेट धारण किए होते हैं। पहाड़ी संस्कृति के विद्वान बताते हैं कि ठोडा का धणु (धनुष) डेढ़ से दो मीटर लंबा होता है और चांबा नामक एक विशेष लकड़ी से बनाया जाता है। शरी (तीर) धनुष के अनुपात में एक से डेढ़ मीटर का होता है और स्थानीय बांस की बीच से खोखली लकड़ी नरगली या फिरल का बनाया जाता है जिसके एक तरफ खुले मुंह में अनुमानतः दस बारह सेंटीमीटर की लकड़ी का एक टुकड़ा फिक्स किया जाता है जो एक तरफ से चपटा व दूसरी तरफ से पतला व तीखा होता है और नरगली के छेद से गुजारा जाता है। चपटा जानबूझ कर रखा जाता है ताकि प्रतिद्वंद्वी की टांग पर प्रहार के समय लगने पर ज्यादा चोट न पहुंचे। इस लकड़ी को ही ठोडा कहते हैं।

माना जाता है कि पाशी और शाठी दोनों की परंपरागत खुन्नस शाश्वत माना है मगर खुश, गम और जरूरत के मौसम में वे मिलते-जुलते हैं और एक दूसरे के काम आते हैं। उनमें आपस में रिश्तेदारियां भी हैं। जब बिशु (बैसाख का पहला दिन) आता है तो पुरानी नफरत  जवान हो जाती है।और गांव-गांव में युद्ध की तैयारियां शुरू हो जाती हैं जिसे किसी वर्ष शाठी आयोजित करते हैं तो कभी पाशी।

पर्यटन के आयाम रचता हिमाचल:-

हिमाचल का जिक्र हो और पर्यटन की बात न की जाए, ऐसा कैसे हो सकता है भला। सैलानियों के लिए देवभूमि हिमाचल तो वास्तव में है ही पैराडाइज। शिमला के साथ साथ , धर्मशाला , कुल्लू, मनाली, सोलन, लाहौल स्पीति, किन्नौर , पौंटा साहिब, चायल हिमाचल के प्रदेश के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।

धर्मशाला में धर्मकोट प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है। सैंट जॉन चर्च,चिन्मय मिशन का संदीपनी आश्रम व योल कैम्प आदि अन्य प्रमुख पर्यटन स्थल हैं।  राजा साहिल बर्मन द्वारा दसवीं शताब्दी में अपनी लड़की चम्बा के नाम पर बसाया गया चम्बा जिला भी राज्य का एक आकर्षक पर्यटन स्थल है। इसके अतिरिक्त सुजानपुर टीहरा, बाबा रुद्रु, चिंतपूर्णी, जोगीपंगा, मैडी, कांगडा, ज्वालाजी, चामुंडा देवी, बैजनाथ, पालमपुर, नूरपुर, मसरुर, नग्गर, बिजली महादेव, मणिकर्ण, कसौली आदि भी हिमाचल की रमणीय जगह हैं।

मणिमहेश: हिमाचल का कैलाश:-

हिमाचल को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता। वहां कण कण  धर्म व आस्था रची बसी है। यूं तो देश की ज्यादातर पहाडि़यों में कहीं न कहीं शिव के दर्शन हो जाएंगे लेकिन शिव के निवास के रूप में सर्वमान्य कैलाश पर्वत के भी एक से ज्यादा प्रतिरूप पौराणिक काल से धार्मिक मान्यताओं में स्थान बनाए हुए हैं। तिब्बत में मौजूद कैलाश-मानसरोवर को सृष्टि का केंद्र कहा जाता है। एक और कैलाश मणिमहेश के रूप में हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले में है। इसका पौराणिक महात्म्य भी बहुत बताया जाता है।

धौलाधार, पांगी व जांस्कर

धौलाधार, पांगी व जांस्कर पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा यह कैलाश पर्वत मणिमहेश-कैलाश के नाम से प्रसिद्ध है और हजारों वर्षो से श्रद्धालु इस मनोरम शैव तीर्थ की यात्रा करते आ रहे हैं।

यहां मणिमहेश नाम से एक छोटा सा पवित्रा सरोवर है जो समुद्र तल से लगभग 13,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। इसी सरोवर की पूर्व की दिशा में है वह पर्वत जिसे कैलाश कहा जाता है। इसके गगनचुम्बी हिमाच्छादित शिखर की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 18,564 फुट है।

मणिमहेश-कैलाश क्षेत्रा

मरु वर्मा का भरमौर:-

हिमाचल प्रदेश में चम्बा जिले के भरमौर में आता है। चम्बा के ‘गजेटियर- 1904’ में उपलब्ध जानकारी के अनुसार सन् 550 ईस्वी में भरमौर शहर सूर्यवंशी राजाओं के मरु वंश के राजा मरुवर्मा की राजधानी था। भरमौर में स्थित तत्कालीन मंदिर समूह आज भी उस समय के उच्च कला-स्तर को संजोये हुए अपना चिरकालीन अस्तित्व बनाए हुए हैं। इसका तत्कालीन नाम था ‘ब्रह्मपुरा’ जो कालांतर में ‘भरमौर’ बना। भरमौर के एक पर्वत शिखर पर ब्रह्माणी देवी का तत्कालीन मंदिर भी है। यह स्थान ब्रह्माणी देवी की पर्याय बुद्धि देवी और इसी नाम के स्थानीय पर्याय नाम से प्रसिद्ध बुद्धिल घाटी में स्थित है। मणिमहेश- कैलाश भी बुद्धिल घाटी का ही एक भाग है। मरु वंश के राजाओं का शासनकाल बहुत लंबा रहा।

न भूलें गौरीकुंड:-

धन्छो से आगे और मणिमहेश-सरोवर से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर पहले गौरीकुंड है। गौरीकुंड से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर पर स्थित है मणिमहेश। यहां पर भक्तगण सरोवर के बर्फ से ठंडे जल में स्नान करते हैं। फिर सरोवर के किनारे स्थापित श्वेत पत्थर की छठी शताब्दी की शिवलिंग रूपी मूर्ति है।

हिमाचल पर्यटन विभाग द्वारा प्रकाशित प्रचार-पत्रा में इस पर्वत को ”टरकोइज माउंटेन” लिखा है। टरकोइज का अर्थ है वैदूर्यमणि या नीलमणि। यूं तो साधारणतया सूर्योदय के समय क्षितिज में लालिमा छाती है और उसके साथ प्रकाश की सुनहरी किरणें निकलती हैं लेकिन मणिमहेश में कैलाश पर्वत के पीछे से जब सूर्य उदय होता है तो सारे आकाशमंडल में नीलिमा छा जाती है और सूर्य के प्रकाश की किरणें नीले रंग में निकलती हैं जिनसे पूरा वातावरण नीले रंग के प्रकाश से ओतप्रोत हो जाता है। यह इस बात का प्रमाण है

कि इस में नीलमणि के गुण-धर्म मौजूद हैं।

कैसे पहुंचें व और क्या देखें:-

खैर धर्म कर्म को छोड़ भी दें तो भी हिमाचल हर तरह से घूमने फिरने की जगह है। यहां पहुंचने के लिए सड़क और रेलमार्ग आसान विकल्प हैं। निकटवर्ती हवाईअड्डा जुब्बाहाटी है जो शिमला से 20 कि.मी. दूर है। यहां के लिए दिल्ली से वाया चंडीगढ़ सप्ताह में तीन दिन उड़ानें हैं। बेहतर होगा यात्रा चंडीगढ़ से आरंभ करें। चंडीगढ़ से रवाना होने पर कुछ किलोमीटर दूर ही  पिन्जौर में मुगल शैली में बने सात-टैरेस वाले यदविंद्रा बाग हैं। यहां रात का नजारा देखते ही बनता है। आगे छोटे-छोटे जंगली पौधों से ढंका कांडाघाट और घाटियां दर्शनीय हैं। चमत्कारिक सौंदर्य वाला जार्जियन मैंशन और चहल पैलेस, होटल स्थित है। पटियाला के महाराजा ने गर्मियों से दूर हटकर ऐशो-आराम से रहने के लिए उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में इस पैलेस को बनवाया था। यहां घने देवदार के जंगलों, विभिन्न प्रकार के हिरनों और फीसैंट चिडि़यों से बसी सैंक्चुरी में वन्य जीवन का आनंद लिया जा सकता है।

शिमला के रास्ते में आप चारों तरफ फैली बर्फ की पहाडि़यों और हरी-भरी वादियों को निहार सकते हैं, उनकी सुंदरता में खो सकते हैं। ऐसे में आप कब शिमला पहुंच जाएंगे, आपको पता ही नहीं चलेगा।

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला कभी अंग्रेजों की गर्मियों की राजधानी थी। अंग्रेज यहां पर अपनी पहचान स्थायी रूप से छोड़ गए हैं। आज अपने आकर्षण से यह भारत का सबसे ज्यादा लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। शहर के अंदर मशोबरा, बेसालटी रोड,

कैम्प साइड, गोल्फ कोर्स, तत्तापानी

और शिव-पार्वती की आकर्षक गुफाएं हैं।

पवित्रा चांदी से ढका सराहन:-

शिमला से आप सराहन जा सकते हैं जहां नीचे घाटी में मानसरोवर में अपने स्रोत से मीलों दूर सतलुज नदी बहती है। दूसरी ओर बर्फ से ढके श्रीखंड और स्वागत करती बर्फ की सफेद चादर से ढंकी हुई चोटियां हैं। सराहन के चारों ओर खेत, खलिहान, गांव, असाधारण शिल्पकला, जंगल और तेज बहती जलधाराएं हैं। सराहन मंदिर की इमारत की बाहरी सीमाओं में अंदाजन एक एकड़ में बाग, इमारतें और कोर्टयार्ड हैं।

सुंदर सांगला घाटीः

सराहन से आगे प्राकृतिक सुंदरता से युक्त सांगला घाटी है। 1993 तक भारतीयों के लिए भी यहां प्रवेश वर्जित था। विदेशियों को आज भी अपने आपको रजिस्टर करवाकर जाना पड़ता है। यहां अनेक सुंदर घाटियां हैं जहां पानी की तेज बौछारों के साथ अठखेलियां करती दो बड़ी नदियां सतलुज और स्पीति बहती हैं। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास के कई वर्ष इन रास्तों पर बिताए जो महाभारत की एक कड़ी है। यहीं निछार मंदिरों में देखने लायक नक्काशी है। सांगला घाटी से ऊपर एक स्तंभ आकार में कामरू का किला है जो कि शांत संतरी की तरह उसकी सुंदरता की रखवाली करता है। यहां से स्पीति और लाहौल घूमने जा सकते हैं।

रिकांगपिओः

यहां से कुछ दूर ही रिकांगपिओ में कैलाश की तरफ 79 फुट ऊंची चट्टान से बनी आकृति है जो शिवलिंग जैसी लगती है। जैसे-जैसे दिन गुजरता है, यह अपना रंग बदलती है। रिकांगपिओ से कुछ सौ मीटर ऊपर और 12 कि.मी. दूर सड़क के रास्ते से पुराने मुख्यालय कलपा के विश्राम गृह ऐसे हैं जैसे कि मौसमी शिविर।

इसके चारों तरफ खेतों और अंगूर की बेलों से घिरी रिब्बा घाटी शराब बनाने के लिए भी जानी जाती है। राजमार्ग पर चांगो सराहन का अंतिम गांव है और इसकी मानसून रहित बंजर भूमि इलाके के बेहतरीन सेब उगाती है।

ताबो गोम्पा:-

सराहन से आगे ताबो गोम्पा में खुदी सीमेंट की तस्वीरें और मूर्तियां हैं इन्हें ‘हिमालय की अजंता’ के नाम से जाना जाता है। यह सबसे बड़ा मठ है जिसमें नौ मंदिर हैं। स्पीति के मुख्यालय काजा में जरूरी सुविधाएं और बाजार हैं। काजा से हीकिम, कोमिक और लांगजा गुफाएं घूमी जा सकती हैं। ताबो से निकलकर रास्ते में ‘बनकर गोम्पा’ देखी जा सकती है।

कीलौंग और लाहौल:-

आगे कीलौंग और लाहौल है जो पहली नजर में डरावना लगता है, पर जैसे ही आप आगे बढ़ते हैं, लाहौल की नैसर्गिक सुंदरता आपको बांध लेती है। ‘लाहौल’ शब्द मूल रूप से ‘देवताओं के देश’ से लिया गया है। इसके आकर्षणों में बुद्ध की गुफाएं, दर्रे, हिमनद, झीलें और नदियां प्रमुख हैं।

हर मन बसिया हिमाचल:-

यूं तो हिमाचल अपने आप में ही इतना रम्य आर्कषक व मनोरम है कि वहां से वापस आने का मन नही नहीं करता है और इसका वर्णन करने बैठें तो लंबा समय व बहुत स्थान चाहिए सो अभी इतने में संतोष करें। ज्यादा जानने की इच्छा हो तो ‘सैर कर दुनिया की गाफिल ....’’ का जुमला जीवन में उतारिए और चले आइए हिमाचल और खुद ही देखिए इसकी असीम प्राकृतिक सुंदरता को।

ये भी पढ़े: अक्षय और शाहरूख के साथ नजर आएंगी करीना कपूर

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