दिलेर समाचार, नई दिल्ली। परंपराओं और संस्कृति वाले हमारे देश में सबसे बड़ा संस्कार विवाह संस्कार है, जिसके जरिए इंसान गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता है और अपनी संतान को जन्म देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी करता है। वैदिक रीति-रिवाज को मानने वाले लोग अक्सर कहते हैं कि कोई भी शादी तब तक पूरी नहीं होती जब तक कि सात फेरे ना लिये जायें।
जब तक पूरे ना हो फेरे 7 ..तब तक दुल्हन नहीं दुल्हा की...
यह सात फेरे ही लोगों को सात जन्मों का साथी बनाते हैं, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि हमेशा सात फेरे या सात जन्म ही क्यों? सात की जगह आठ फेरे या आठ जन्म क्यों नहीं? तो आईये आज हम आपको 'सात' नंबर का राज बताते हैं जिनके बिना कोई भी शादी पूरी नहीं होती है।
हर सप्ताह 7 दिन का
ऐसा कहा जाता है कि साल को छोटे करने के लिए समय को सप्ताहों में बांटा गया है और हर सप्ताह 7 दिन का होता है इसलिए पति-पत्नी को साथ रखने के लिए 7 फेरे रखे गये हैं और 7 जन्मों की बातें होती हैं।
भगवान के रथ में 7 घोड़े
हमारे पूज्यनीय सूर्य भगवान के रथ में 7 घोड़े या अश्व है, इसलिए 7 नंबर शुभ माना जाता है।
इंद्रधनुष के 7 रंग
सूर्य भगवान जो प्रकाश लोगों को देते हैं, उसमें इंद्रधनुष होता है और उसमें भी 7 रंग होता है और इस कारण वो भी शुभ है।
7 कदम
कहते हैं कि मात्र 7 कदम चलकर इंसान एक-दूसरे का मित्र बन जाता है इसी कारण जब शादी के फेरे होते हैं तो सातवें फेरे में दूल्हा, दुल्हन से बोलता है कि वो दोनों एक मित्र की तरह साथ रहेंगे और अपनी हर बातें शेयर करेंगे।
7 स्वरों का संगम
भारतीय सूरों का संगम भी 7 स्वरों का है जो एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं और जब उन्हें अलग-अलग किया जाता है तो उनका अकेले कोई अस्तित्व नहीं रह जाता है, ऐसा ही रिश्ता मियां-बीवी का भी होता है जो साथ रहें तभी गृहस्थी की गाड़ी सही चल सकती है, इसलिए 7 फेरे लिये जाते है।
सात क्रियाएँ
शौच, दंतधावन, स्नान, ध्यान, भोजन, भजन और शयन सात क्रियाएँ मानव जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। अतः नित्य कर्म के रूप में इन्हें अवश्य करना चाहिए इसलिए भी 7 नंबर शुभ माना जाता है।
सातों को अभिवादन
शास्त्रों में माता, पिता, गुरु, ईश्वर, सूर्य, अग्नि और अतिथि इन सातों को अभिवादन करना अनिवार्य बताया गया है। इसलिए 7 फेरों और 7 जन्मों की बातें होती हैं।
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