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तो इस तरह मिलता है साधकों को मोक्ष

Posted at: Dec 27 , 2017 by Dilersamachar 9854

दिलेर समाचार, भारतीय दर्शन में नश्वरता को दु:ख का कारण माना गया है। संसार आवागमन, जन्म-मरण और नश्वरता का केंद्र हैं। इस अविद्याकृत प्रपंच से मुक्ति पाना ही मोक्ष है। प्राय: सभी दार्शनिक प्रणालियों ने संसार के दु:ख मय स्वभाव को स्वीकार किया है और इससे मुक्त होने के लिये कर्म मार्ग या ज्ञान मार्ग का रास्ता अपनाया है। मोक्ष इस तरह के जीवन की अंतिम परिणति है।

मोक्ष हमेशा से ही एक शोध का विषय रहा है। साधक अपना पूरा जीवन मोक्ष पाने में लगा देते हैं। साधक को अपनी इंद्रियों को अपने वश में रखकर भगवान पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए क्योंकि जिसकी इंद्रियां वश में होती हैं वह साधक चेतन्य अवस्था में स्थापित होता है।

उस साधक को असीम शांति प्राप्त होती है जिस पर किसी भी तरह की सुख-सुविधा का कोई असर नहीं होता है, जैसे समुद्र हमेशा तृप्त और भरा रहता है और कितनी भी नदियां आकर उसमें मिल जाएं उस पर कोई असर नहीं होता।

विषय वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करने से उस वास्तु के प्रति आकर्षण पैदा होता है, आकर्षण से मोह उत्पन्न होता है और मोह से क्रोध, क्रोध से माया, माया से स्मृति लुप्त होती है और स्मृति के लुप्त हो जाने पर ज्ञान समाप्त होता है और ज्ञान के न रहने पर हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है।

जो व्यक्ति अपनी मृत्यु के समय भी चिंता मुक्त रहता है उसे मरने का कोई डर या दुख नहीं होता। ऐसे साधक को निश्चय ही मोक्ष मिलता है क्योंकि वह संसार में रहकर भी संसार का नहीं रहता।

ज्ञान प्राप्त हो जाने पर साधक फिर कभी मोह-माया के वश में नहीं आता है और अपनी मृत्यु के समय भी वह परमात्मा में लीन रहता है, ऐसे साधक को निश्चय ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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