दिलेर समाचार, हमारे आसपास तेज़ी से हो रहे परिवर्तनों के मद्देनज़र समाज सुधारों की आवश्यकता से कोई इंकार नहीं कर सकता. ऐसे सुधार जितनी जल्दी हो सकें, उतना ही अच्छा होगा. समाज सुधारों के संबंध में दो प्रश्न महत्वपूर्ण हैं. पहला यह कि इनमें राज्य की क्या भूमिका हो? दूसरा यह कि धर्म की क्या भूमिका हो? कुछ लोगों का मानना है कि राज्य को इसमें सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और समाज सुधार के लिए हरसंभव प्रयास करने चाहिए. कुछ लोग यह मानते हैं कि समाज सुधार में धर्म की कोई भूमिका नहीं है, बल्कि वह तो सामाजिक परिवर्तनों की राह में रोड़ा है. जो लोग राज्य की सक्रिय भूमिका के हामी हैं, वे या तो राजनीति से प्रेरित हो सकते हैं या उनका यह विश्वास हो सकता है कि राज्य एक शक्तिशाली संस्था है और वह समाज में परिवर्तन एवं सुधार लाने में पूर्णत: सक्षम है. इस संदर्भ में यह भी महत्वपूर्ण है कि राज्य प्रजातांत्रिक है या निरंकुश. कोई तानाशाह, चाहे वह स्वयं कितना ही उदार एवं ज्ञानी क्यों न हो, समाज सुधार नहीं ला सकता. ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने हैं.
अ़फग़ानिस्तान के बादशाह अमानुल्ला प्रबुद्ध एवं आधुनिक विचारों वाले शासक थे. 1920 और 1930 के दशकों में उन्होंने अ़फग़ानिस्तान के रूढ़िग्रस्त कबीलाई समाज में परिवर्तन लाने की कोशिशें कीं. नतीजे में उनके ख़िला़फ विद्रोह हो गया और उन्हें अपनी गद्दी खोनी पड़ी.
अ़फग़ानिस्तान के बादशाह अमानुल्ला प्रबुद्ध एवं आधुनिक विचारों वाले शासक थे. 1920 और 1930 के दशकों में उन्होंने अ़फग़ानिस्तान के रूढ़िग्रस्त कबीलाई समाज में परिवर्तन लाने की कोशिशें कीं. नतीजे में उनके ख़िला़फ विद्रोह हो गया और उन्हें अपनी गद्दी खोनी पड़ी. इसके साथ-साथ ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने भी उन्हें अपदस्थ करने में भूमिका निभाई. दूसरा उदाहरण ईरान के शाह का है. उन्होंने ईरानी जनता को आधुनिक तौर-तरीक़े अपनाने के लिए बाध्य किया और एक तऱफ अयातुल्लाओं, तो दूसरी तऱफ परंपरावादी कृषक वर्ग को नाराज़ कर लिया. उन्हें भी अपनी गद्दी खोनी पड़ी. यद्यपि उसके पीछे अन्य कारण भी थे, जैसे उनका अमेरिका के पिट्ठू बतौर काम करना और अयातुल्लाह खुमैनी को देश निकाला दे देना.
आज परंपरावादी, दकियानूसी धार्मिक नेता भी कंप्यूटर और इंटरनेट का उपयोग अपने विचारों को फैलाने के लिए कर रहे हैं. उनकी अपनी वेबसाइटें हैं. मोबाइलों पर शादियां हो रही हैं और तलाक भी. एक समय इंग्लैंड के पुरोहित वर्ग ने रेलवे का इस आधार पर विरोध किया था कि तेज़ गति से आवागमन की इस सुविधा का ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले युवा दुरुपयोग करेंगे. वे शहरों में जाएंगे और शराब पीना एवं जुआ खेलना सीखेंगे.
दूसरी ओर प्रजातांत्रिक राज्य को मतदाताओं की धार्मिक भावनाओं का भी ख्याल रखना पड़ता है. उस पर अलग-अलग दिशाओं से परस्पर विरोधी दबाव भी पड़ते हैं. भारत के उदारवादी एवं प्रबुद्ध हिंदू वर्ग ने पंडित नेहरू और अंबेडकर के नेतृत्व में स्वतंत्रता के तुरंत बाद हिंदू विधि में उपयुक्त परिवर्तन लाने के उद्देश्य से हिंदू कोड बिल तैयार किया, परंतु परंपरावादियों के कड़े विरोध के कारण उन्हें यह बिल वापस लेना पड़ा और बाद में उसका अत्यंत कमज़ोर संस्करण संसद से पारित हो सका. नेहरू जी का ऊंचा राजनीतिक कद और उनका करिश्माई व्यक्तित्व भी किसी काम न आया. डॉ. अंबेडकर को तो इससे इतना धक्का पहुंचा कि उन्होंने क़ानून मंत्री के पद से इस्ती़फा दे दिया.
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