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मुंह में छाले, निगलने न दें निवाले

Posted at: Jan 3 , 2018 by Dilersamachar 10380

दिलेर समाचार, सीतेश कुमार द्विवेदी: मुंह में छाले होना एक सर्व सामान्य समस्या है। यह रोग नहीं अपितु लक्षण है जो अन्य किसी बीमारी या समस्या की ओर संकेत करते हैं। मुंह में छाले किसी को कभी भी हो सकते हैं। किसी को वर्ष में एक बार तो किसी अन्य को हर कुछ दिन बाद हो जाते हैं। यह बच्चे, बड़े, बूढ़े सबको अलग-अलग कारणों से हो सकते हैं किन्तु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें छाले नहीं के बराबर होते हैं या होते ही नहीं हैं।

मुंह में छाले होने पर व्यक्ति कुछ भी खा व निगल नहीं सकता। उसे गर्म चीजें पीने खाने से पानी पीने या बोलने में भी तकलीफ होती है। ये इतने कष्टकर होते हैं कि पीडि़त व्यक्ति का सुख-चैन सब छीन लेते हैं। इसको लेकर भ्रांतियां भी हैं। घरेलू अनुभूत उपायों, नुस्खों की भरमार है। इनकी जलन व वेदना से जल्द राहत नहीं मिल पाती है।

इसकी पहचान बहुत सरल हैं। ये मुंह के भीतर की त्वचा या जीभ में कहीं भी हल्का खड्डा जैसे दिखते हैं। ये छाले सफेद, भूरे, लाल घेरे से घिरे होते हैं कभी-कभी इन पर झिल्ली जैसी संरचना भी ढंकी होती है। ये छाले मुंह के भीतर, ओंठ, गालों के भीतरी भागों में, जीभ के किसी भी तरफ हो जाते हैं। ये इतना क्रूर रूप धारण करते हैं कि व्यक्ति दर्द से बिलबिला जाता है। पीड़ा से आंखें छलक पड़ती हैं। दर्द व लक्षण के माध्यम से आम और खास सभी जान जाते हैं। इनके होने के अनेक कारण हैं।

कारण

ऽ      ये यह विटामिन बी व सी की कमी से होते हैं।

ऽ      ये पेट के साफ न रहने, कब्ज एवं आमाशय की अक्षमता के कारण होते हैं।

ऽ      ये ज्यादा गर्म चीजों के खाने व पीने से होते हैं।

ऽ      ये दवाओं की अधिकता के कारण होते हैं।

ऽ      ये संक्रमण के कारण होते हैं।

ऽ      ये ज्यादा चूना वाला पान खाने से होते हैं। ज्यादा शक्कर खाने से भी होते हैं।

ऽ      ये मुंह व दांत, जीभ की अच्छी तरह सफाई नहीं करने से भी होते हैं।

ऽ      धूम्रपान की अधिकता से होते हैं।

ऽ      पायरिया, बुखार, स्कर्वी, संग्रहणी, रक्तहीनता आदि रोग एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी होने पर होते हैं।

ऽ      दूषित जल व भोजन, पोषक शून्य भोजन या बिना भूख लगे जल्द से जल्द ज्यादा खाने से भी होते हैं।

ऽ      ये कैल्शियम व खनिज तत्वों के अभाव में भी होते हैं।

ऽ      एलर्जी, खसरा, रक्त-विकार आदि के कारण भी होते हैं।

ऽ      गर्म चीजों के अलावा बर्फ, चाकलेट, च्यूंगम, कफ वर्धक चीजों, खराब दूध की बोतल, तली चीजों, तंबाकू व मांसाहार से भी होते हैं।

ऽ      बचाव के उपाय:- उपचार की सभी विधियों में इनकी अनेक दवाइयां हैं। घरेलू उपाय हैं। अनुभूत नुस्खे हैं फिर भी कुछ सावधानियां व उपाय सभी पीडि़त व्यक्ति को करने चाहिए ताकि भविष्य में यह आगे न हो।

ऽ      हर हाल में पेट को साफ रखें। हाजत न रोकें। कब्ज न होने दें। आमाशय की सक्रियता बनाए रखें।

ऽ      भूख लगे, तभी भोजन करें। भोजन ताजा हो। ठंडा या तेज गर्म न हों। भोजन आराम से चबा-चबा कर करें। मात्रा संतुलित हो। भोजन पौष्टिक हो।

ऽ      भोजन में सलाद, सूप, मौसमी, फल, सब्जी-भाजी पर्याप्त हो।

ऽ      दिन भर में दस-बारह गिलास पानी पिएं। दूध बिना मलाई का लें। अवसर मिले, तब दही, मट्ठा, रायते का सेवन करें। नींबू पानी पिएं।

ऽ      पान, तंबाकू, गुटखा, पाउच, धूम्रपान, नशापान त्याग दें।

ऽ      नमक, शक्कर, मिर्च-मसाला, तली चीजें कम खाएं।

ऽ      मुंह, दांत, जीभ की नियमित दो बार सफाई करें।

ऽ      बाजार की चीजों, दूषित जल, मिलावटी चीजों व नकली रंग से बचें। जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक्स एवं बाजार के जूस का उपयोग न करें।

ऽ      संक्रमित व प्रदूषित स्थानों पर न जाएं।

ऽ      छालों पर मधुरस या घी लगाकर लार को बहाएं। इससे वह जल्दी ठीक होंगे।

ऽ      परेशानी बढ़ने पर चिकित्सक के पास जाएं। शुगर व बी. पी. पेशेंट डॉक्टर को अपनी बीमारी भी बताएं।

अधिक दवाआंे का उपयोग न करें। 

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