ताबिश सिद्दीकी
श्रीलंका में जिन जिन आत्मघाती लड़कों ने अपने आपको बम बांध के उड़ाया है, उनमे से ज्यादातर बहुत ही अच्छे परिवार से हैं और बहुत पढ़े लिखे थे। पढ़ कर ताज्जुब हो रहा है कि कैसे एक मसाला बेचने वाले अरबपति व्यापारी के दो लड़कों ने इस घटना को अंजाम दिया। कहा जाता है कि इन दोनों ने मुख्य भूमिका निभाई थी इस हमले में। पहले भाई ने जब एक होटल में अपने आप को बम से उड़ाया तो पुलिस उसके घर पहुंची तफ्तीश को तो वहां उसकी बहू ने अपने आपको उड़ा लिया जिसमें वो, उसके तीन बच्चे और पुलिस वाले मारे गए। पढ़ के रोएं खड़े हो जा रहे हैं कि इतने अमीर लोग, आलीशान बंगलों में रहने वाले अरबों रुपये की हैसियत वाले और इन जैसों को किसने और कैसे आतंकी बना दिया।
दो दिन पहले जो भाई मुझ को आतंकवाद की वजह पूंजीवाद बता रहे थे, वे जरा बताएंगे कि अब इन अरबपति लड़कों में किस तरह के पूंजीवाद ने रोष भर दिया था? वो घर की बहू, जो हंसते खेलते खुशहाल परिवार में, पचासों नौकर चाकर के साथ रही थी, किस पूंजीवाद के चलते अपने आपको अपने तीन बच्चों के साथ उड़ा लेती है?
इस सब न्यूज को पढ़ने के बाद मैं अपने देश का सोच रहा था कि सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश हमारा मगर आज तक इतनी बड़ी आबादी से कोई भी मुस्लिम आईएसआईएस के नाम पर यहाँ बम बांध के न फूटा और न ही आईएसआईएस को यहां अपने पैर जमाने का मौका मिल पाया। क्या वजह है इसकी आखिर कि इतने सारे मदरसे और इतनी बड़ी धार्मिक भीड़ के बाद भी यहाँ के मुसलमान क्यूं उस तरह के कट्टर नहीं हैं जितना अन्य देशों के हैं?
इसकी जो सबसे बड़ी वजह मुझे समझ आती है वो है हमारे देश की विचारधारा क्यूंकि जितने भी मुसलमान यहां है वो ज्यादातर कनवर्टेड ही हैं और उनमें वो कट्टरता घर नहीं कर पाती है जो अन्य देशों के मुसलमानों में हो जाती है। यहां की विचारधारा ही ऐसी रही है कि शाहजहां से लेकर अकबर तक, आए तो अपनी संस्कृति फैलाने मगर खुद यहीं फैल के रह गए।
सारे विश्व में इस्लाम जहां भी गया है वो अपने मूल रूप में ही गया है। मगर सिर्फ भारत में इस्लाम को ‘खुद’ को बदलना पड़ा और यहां इस्लाम बिना लचीला हुए पनप ही नहीं पाया। इस्लाम मे ‘पूजा‘ का समावेश भारत मे ही हुआ जिसे आप आज भी सब मजारों और दरगाहों पर देख सकते हैं। यह इस्लाम का साफ्ट और माइल्ड ‘मूर्तिपूजक‘ संस्करण है जो अन्य जगहों पर नहीं मिलता है। इस्लाम को अपने आपको यहां इसलिए बदलना पड़ा क्यूंकि यहां के लोग उसे स्वीकारने को तो तैयार थे मगर अपने हिसाब से और उन्हीं लोगों ने इसे स्वीकार करके लचीला बना दिया।
यहां के लोग अगर अपने धर्म को लेकर अडि़यल होते तो शायद इस वक्त भारत का भूगोल कुछ और होता। भारत का इस्लाम, भारत का अपना ‘ब्रांडेड‘ इस्लाम बन कर रह गया और इसीलिए आईएसआईएस को भी यह स्टेटमेंट देना पड़ गया कि ‘भारतीय मुसलमानों में वो जोश नहीं होता है‘। जोश से उनका मतलब ‘मजहबी कट्टरता और पागलपन‘ से था और इसीलिए आईएसआईएस ने यहां से अपने टारगेट ढूंढने लगभग बन्द कर दिए थे। मुझे याद है कि आईएसआईएस ने काफी पहले ये स्टेटमेंट दिया था कि भारतीय मुसलमान कमजोर होते है मतलब उनकी तरह लड़ाके और मजहब के लिए पागल नहीं होते हैं।
ऐसा नहीं है कि सऊदी और अन्य इस्लामिक देशों की कट्टर विचारधारा यहां के मुसलमानों पर अपना असर नहीं दिखाती। बिलकुल दिखाती है मगर इस्लामिक कट्टरता द्वारा दूषित होकर ‘औरंगजेब‘ बने लोगों के घर भारत की ‘जादुई‘ विचारधारा दिन रात अपना पंख पसारे रहती है और लगभग हर ‘औरंगजेबी‘ परंपरा वालों के यहां एक ‘दारा शिकोह‘ जरूर पैदा कर देती हैं।
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