दिलेर समाचार, नरेंद्र देवांगन। गर्मी की छुट्टियों में प्राकृतिक रहस्यों से घिरे बंगाल के सुंदरवन को करीब से देखने का आनंद लिया जा सकता है। दुनिया का सबसे बड़ा मैनग्रोव का जंगल यहीं मिलेगा। कहते हैं यहां का घना जंगल रोमांचित कर देता है, क्योंकि रॉयल बंगाल टाइगर कहीं भी और कभी भी दिख सकता है। यह रोमांच सुंदरवन यात्रा के दौरान पूरे समय तक बना रहता है।
यात्रा दो भागों में करें: सुंदरवन की अपनी यात्रा को दो भागों में बांट लें। एक तरफ सुंदरवन बायोस्फियर रिजर्व का भगवतपुर लोथियान द्वीप, बोनी कैंप, कलश कैंप और दूसरी तरफ सुंदरवन टाइगर रिजर्व का सजनेखाली, सुधन्यखाली, दोबांकी से ले कर बुड़ीरडाबरी तक। सुंदरवन का प्रवेशद्वार कोलकाता से 40 किलोमीटर की दूरी पर कैनिंग है। यहां से किराए पर लांच लेकर घूमा जा सकता है।
मुख्य आकर्षण: सुंदरवन का मुख्य आकर्षण रॉयल बंगाल टाइगर तो है ही लेकिन इसके अलावा चीतल, हिरण, विभिन्न प्रजातियों के सांप और खूबसूरत पक्षियों का मेला है यहां। सुंदरवन के द्वीपों के बीच से छोटी-छोटी और संकरी नदियों की धार भी यहां के आकर्षण हैं। यहां के लोग छोटी नाव के जरिए मछली और केकड़ा पकड़ने के लिए जाते हैं। संकरी नदियों के पार कहीं-कहीं विस्तृत मैदान हैं, जहां चीतल, हिरण विचरण करते हुए दिख जाएंगे लेकिन इंसानी कदमों की आहट पाते ही वे चौकड़ी भर कर दूर निकल जाते हैं।
इन हिरणों में बाघ का आतंक भी कुछ कम नहीं है। वैसे सुंदरवन में ये हिरण ही बाघों की खुराक हैं। खुराक में कमी होने पर बाघ रिहायशी बस्ती पर हमला करते हैं। इसीलिए हिरणों की संख्या पर वन विभाग की नजर कुछ ज्यादा ही होती है। वैसे, प्राकृतिक रूप से अपने बचाव के लिए प्रकृति ने हिरणों को तेज गति दे रखी है।
अंगोछा की मान्यता: सुंदरवन के लोग केवल अपने ही नहीं, पर्यटकों की सुरक्षा के लिए भी उस जगह अंगोछा लटका देते हैं जहां बाघ का किसी इंसान पर हमला होता है। ऐसा इसलिए कि सुंदरवन के लोगों का मानना है जिस जगह पर बाघ किसी इंसान का शिकार करता है, वहां बाघ कम से कम एक साल तक बार-बार लौट कर आता है। अंगोछा लटका कर सुंदरवन निवासी पर्यटकों और दूसरे लोगों को खतरे से आगाह करते हैं।
सुंदरी और मैनग्रोव: सुंदरवन में पर्यटन का सबसे अच्छा समय है नवंबर से मार्च तक। यों तो हर मौसम में यह एक अलग रूप लेता है मगर इसकी खूबसूरती बारिश के दिनों में अपने पूरे शबाब पर होती है। इसीलिए बारिश के मौसम में पर्यटन का पैकेज अलग होता है और कुछ टूर ऑपरेटर बारिश के दिनों में अपने पैकेज की घोषणा करते हैं। बहुत कम लोगों को पता है कि सुंदरवन का नाम यहां पाए जाने वाले सुंदरी पेड़ से ही पड़ा है।
गर्मी के दिनों में चांदनी रात के दौरान सुंदरवन को देखना अपनी तरह का एक अलग अनुभव होता है। दरअसल, यहां आम दिनों में दो बार ज्वारभाटा होता है। इस ज्वार और भाटे का अलग ही रूप होता है। मजेदार बात यह है कि ऐसे ज्वार के दिन जब सुंदरवन का बड़ा हिस्सा डूब जाता है, सारे वन्यजीव टापू में ऊंची जगह पर चले जाते हैं और भाटा होने पर खाने की खोज में वापस नीचे लौटते हैं। इसीलिए ज्वार के बाद भाटा के दौरान पर्यटक बड़ी तादाद में वन्यजीव देख पाते हैं।
जरूरी है गाइड: सुंदरवन के इन जंगलों में टूर गाइड की बहुत जरूरत होती है क्योंकि घने जंगल में भटक जाने का खतरा होता है। साथ ही, बगैर सावधान रहे, हो सकता है भूखे बाघ से सामना हो जाए। सुंदरवन के गांवांे में अक्सर ऐसे बाघों का हमला होता है। वहीं, जंगल से शहद इकट्ठा करने वाले, मछली और केकड़ा पकड़ने वालों की भी बाघ से अचानक टक्कर हो जाती है।
वैसे, सुंदरवन जाना हो तो कोलकाता में बहुत सारे टूर ऑपरेटर मिल जाएंगे जो लांच में एक गाइड के साथ सुंदरवन घुमा कर दिखा देते हैं। बेहतर है कि राज्य सरकार के पर्यटन विभाग से वन बंगला बुक कर लिया जाए। दो दिन व एक रात के लिए प्रति व्यक्ति लगभग चार हजार रूपए का खर्च पड़ता है। इसके अलावा राज्य पर्यटन विभाग का एक और भी पैकेज है तीन दिन दो रात का जिसका खर्च प्रति व्यक्ति लगभग साढ़े पांच हजार रूपए आता है। सुंदरवन पर्यटन की शुरूआत डब्लूबीटीडीसी के दतर से होती है।
उम्दा शहद: सुंदरवन में अगर खरीदारी करना चाहते हैं तो यहां के जंगलों में बहुत उम्दा शहद पाए जाते हैं। अगर शहद मिल जाए तो जरूर ले लें क्योंकि यह ताजा और विशुद्ध शहद होता है।
मछली के व्यंजन: सुंदरवन में खाने की बात की जाए तो यह जगह विभिन्न किस्म की मछलियों के लिए जानी जाती है। मछली की तरह-तरह की डिशेज आसानी से मिल जाती हैं- कोई माछ, चितल माछ, पाबदा माछ, भेटकी, हिलसा के अलावा चिगड़ी जिसे आमतौर पर झींगा भी कहा जाता है।
यहां रेस्तरां में बंगाल की प्रसिद्ध डिशेज मिल जाएंगी- सरसों इलिश यानी सरसों हिलसा, दही हिलसा, हिलसा बिरयानी, मुड़ीघंटों दाल(मछली का सिर डाल कर दाल की एक विशेष रैसिपी), हिलसाकोचू साग(हिलसा और अरबी का साग), पाबदा माछेर झाल(पाबदा मछली की तीखी करी), हिलसा टॉक(हिलसा मछली की खट्टा डिश), आलू भाजा, आलू पोस्ता(खसखस), पोस्तो चिंगड़ी(खसखस झींगा मछली की डिश), पोस्तो बड़ा(खसखस का पकौड़ा), टेंगड़ा माछेर झोल, बेगून भाजा, भेटकी मछली की फिश फ्राई और फिश कटलेट आदि। अपनी पसंद की कोई भी डिश चुन सकते हैं। इनके साथ उबले चावल, पापड़ और टमाटर-खजूर की चटनी का मेल आपको भाएगा।
बंगाल की अड्डा संस्कृति: बंगाल की संस्कृति में रचा-बसा है अड्डा संस्कृति। जाहिर है कोलकाता में हैंगआउट के लिए जगह की कमी नहीं है। एक ढूंढंे तो हजारों मिल जाएंगी। अगर बौद्धिक हैंगआउट की चाह हो तो कॉलेज स्ट्रीट में कलकत्ता विश्वविद्यालय और प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय के करीब कॉफी हाउस हैं। यहां हर टेबल में रखे हुए चाय-कॉफी के कप में देश-दुनिया के हर किस्म के मुद्दे पर उफान उठता है। यहां हर उम्र, हर पेशे और हर सामाजिक स्टेटस के लोगों का अड्डा मिल जाएगा।
हैंगआउट के लिए दूसरी जगह है भवानीपुर में फोरम, चाय ब्रैक और हमारो मोमो। यह मोमो के लिए प्रख्यात है। यहां अक्सर विद्यार्थी आकर हैंगआउट करते हैं। इसके अलावा सॉल्टलेक और राजारहाट में सिटी सेंटर भी हैंगआउट के लिए अच्छी जगह है। यहां कोई भी हैंगआउट कर सकता है। इसके अलावा युवा जोड़े के लिए न्यू टाउन में ईको पार्क, विक्टोरिया मेमोरियल, रवींद्र सरोवर के आसपास हैंगआउट किया जा सकता है। इन हैंगआउट के लिए इन जगहों पर फिशफ्राई, चिकन और फिश कविराजी, चाउमिन, चिकन रोल से लेकर मोमो तक का मजा लिया जा सकता है।
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