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दागदार होने से बची शीर्ष अदालत

Posted at: May 22 , 2019 by Dilersamachar 10204

सज्जाद हैदर

पूरे विश्व के सामने शर्मसार होने से बची भारत की कानून व्यवस्था। वाह रे षड़यंत्राकारी सियासी लोग। ऐसा सियासी षड़यंत्रा कभी गंदी गलियों में हुआ करता था। फिर धीरे से यह सत्ता के गलियारे तक पहुँच गया लेकिन कभी यह षड़यंत्रा देश की शीर्ष अदालत को भी अपनी चपेट में ले लेगा, ऐसा किसी ने कभी आभास भी नहीं किया होगा जोकि आज देश के सामने खुलकर सामने आया। दबाव बनाने एवं छवि धूमिल करने का यह कारनामा देश की शीर्ष अदालत तक आ पहुंचा लेकिन साँच को आँच नहीं, दूध का दूध और पानी का पानी हो गया। अब देश की चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप खारिज हो गया है।

सुप्रीम कोर्ट के इन हाउस पैनल ने महिलाकर्मी की शिकायत को खारिज कर दिया। जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी के पैनल ने यह फैसला सुनाया। पैनल ने कहा कि आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं मिले। सुप्रीम कोर्ट ने प्रेस रिलीज जारी कर कहा कि इन हाउस पैनल की जांच के तथ्यों को सुप्रीम कोर्ट के 2003 के नियमों के तहत सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।

ज्ञात हो कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने ऊपर लगे यौन शोषण के आरोप को पहले ही खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा था कि मुझे नहीं लगता कि इन आरोपों का खंडन करने के लिए मुझे इतना नीचे उतरना चाहिए। सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा था कि न्यायपालिका खतरे में है। अगले हफ्ते कई महत्त्वपूर्ण मामलों की सुनवाई होनी है, इसीलिए मेरे ऊपर जान-बूझकर ऐसे आरोप लगाए गए हैं। सीजेआई ने कहा था कि क्या चीफ जस्टिस के 20 सालों के कार्यकाल का यही इनाम है? 20 सालों की सेवा के बाद मेरे खाते में सिर्फ 6,80,000 रुपये हैं। कोई भी मेरा खाता चेक कर सकता है। सीजेआई ने कहा था कि, यहां तक कि मेरे चपरासी के पास भी मुझसे ज्यादा पैसे हैं। रंजन गोगोई ने यह भी कहा था कि न्यायपालिका को बलि का बकरा नहीं बनाया सकता।

सीजेआई ने पहले ही कहा था कि कुछ लोग सीजेआई के आफिस को निष्क्रिय करना चाहते हैं। क्योंकि षड़यंत्राकारी लोग पैसे के मामले में मुझ पर उंगली नहीं उठा सकते थे  इसलिए इस तरह का आरोप लगाया है। सीजेआई ने कहा था कि मैं देश के लोगों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि मैं महत्त्वपूर्ण मामलों की सुनवाई करूंगा इससे कोई मुझे रोक नहीं सकता। चाहे जितना भी षड़यंत्रा रचा जाए परन्तु मैं न्याय का पक्षधर हूं और सदैव न्याय का पक्षधर रहूंगा। ऐसा कदापि नहीं हो सकता कि मैं डर और भय के कारण न्याय न करूँ। षड़यंत्राकारी मेरे विरुद्ध षड़यंत्रा करते रहें लेकिन मैं न्याय के प्रति सदैव प्रतिबद्ध रहूंगा। जिन्होंने मुझपर आरोप लगाए हैं, वे जेल में थे और अब बाहर हैं। इसके पीछे कोई एक शख्स नहीं है बल्कि कई बड़े लोगों इस षड़यंत्रा में हाथ है। सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा था कि जिस महिला ने आरोप लगाया है, वह 4 दिन जेल में थी। महिला ने किसी शख्स को सुप्रीम कोर्ट में नौकरी दिलाने का झांसा दिया था और पैसे लिए थे।

आपको बता दें कि सीजेआई पर आरोप लगने वाली महिला उच्चतम न्यायालय की पूर्व कर्मचारी है। उच्चतम न्यायालय के 22 न्यायाधीशों के आवास पर महिला के शपथपत्रों की प्रतियां भेजी गईं जो सार्वजनिक हो गईं। इसके बाद मामले में विशेष सुनवाई हुई। पीठ में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और संजीव खन्ना शामिल थे। आरोप लगाने वाली पूर्व कर्मचारी ने अपने हलफनामे में दो घटनाओं का जिक्र किया है जब सीजेआई गोगोई ने कथित तौर पर उसका उत्पीड़न किया। दोनों ही घटनाएं कथित तौर पर अक्तूबर 2018 में हुईं। दोनों घटनाएं सीजेआई के तौर पर उनकी नियुक्ति के बाद की हैं। उच्चतम न्यायालय के महासचिव संजीव सुधाकर कलगांवकर ने इस बात की पुष्टि की है कि अनेक न्यायाधीशों को एक महिला के पत्रा प्राप्त हुए हैं, साथ ही कहा कि महिला द्वारा लगाए गए सभी आरोप दुर्भावनापूर्ण और निराधार हैं। उन्होंने कहा, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि ये दुर्भावनापूर्ण आरोप हैं’। आपको बता दें कि सुनवाई के लिए पीठ का गठन उस वक्त किया गया जब सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगने के संबंध में अधिकारियों को बताया।

ज्ञात हो कि अपने पिछले कार्यकाल में जस्टिस रंजन गोगोई ने कई अहम फैसले दिए हैं। साथ ही यह भी जानना जरूरी है कि जस्टिस रंजन गोगोई के पिता केशव चंद्र गोगोई असम में कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं। वर्ष 1982 में वह मुख्यमंत्राी भी रहे हैं। वह डिब्रूगढ़ विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। केशव चंद्र का पांच अगस्त 1998 को निधन हो गया। भारतीय न्यायिक व्यवस्था की यह परंपरा है कि कानून मंत्रालय मौजूदा चीफ जस्टिस से ही अगले चीफ जस्टिस के नाम की सिफारिश मांगता है जिसमें सबसे वरिष्ठ जज को ही चीफ जस्टिस बनाने की परंपरा है। वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट के जज बनाए गए जस्टिस रंजन गोगोई स्वभाव से यूं तो मृदुभाषी हैं मगर वह बेहद सख्त मिजाज के जज के रूप में अपनी पहचान रखते हैं। बता दें, जस्टिस रंजन गोगोई उन चार वरिष्ठ जजों में शामिल थे जिन्होंने पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ एक प्रेस कांफ्रेंस में मोर्चा खोला था।

18 नवंबर 1954 को जन्मे रंजन गोगोई ने 1978 में बतौर वकील अपना पंजीकरण कराया। फिर गुवाहाटी हाई कोर्ट में वकालत करने लगे। फिर 28 फरवरी 2001 को वह स्थाई जज बने। नौ सितंबर 2010 को उनका ट्रांसफर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के लिए हुआ। 12 फरवरी 2011 को जस्टिस रंजन गोगोई पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस हुए। फिर 23 अप्रैल 2012 को वह सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त हुए। सुप्रीम कोर्ट की कई पीठों का हिस्सा रहने के दौरान जस्टिस रंजन गोगोई अहम फैसले दे चुके हैं। चुनाव के दौरान उम्मीदवारों को संपत्ति, शिक्षा व चल रहे मुकदमों का ब्यौरा देने के लिए आदेश देने वाली पीठ में रंजन गोगोई भी शामिल थे।

मई 2016 में जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस पीसी पंत की पीठ ने मुंबई हाईकोर्ट के 2012 के उस आर्डर को निरस्त कर दिया था जिसमें कौन बनेगा करोड़पति शो से अमिताभ की कमाई के असेसमेंट पर रोक लगाई गई थी। दरअसल इनकम टैक्स विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि 2002-03 के दौरान हुई कमाई पर अमिताभ ने 1.66 करोड़ रुपये कम टैक्स चुकाया था। इस मामले में जुलाई, 2012 में बाम्बे हाई कोर्ट ने इनकम टैक्स कमिश्नर की याचिका को खारिज करते हुए अमिताभ को राहत दे दी थी। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल के निर्णय को बरकरार रखते हुए कहा था कि असेसमेंट आफिसर द्वारा सेक्शन 147 के तहत शुरू की गई कार्यवाही अनुचित है। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ आईटी डिपार्टमेंट सुप्रीम कोर्ट गया था।

अन्य फैसलों की बात करें तो कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस कर्णन को छह महीने की कैद की सजा, असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) बनाने के आदेश देने वाली पीठ में भी जस्टिस गोगोई रह चुके हैं। कन्हैया कुमार मामले में एसआइटी गठन के आदेश से जहां इंकार किया था, वहीं जाटों को केंद्रीय सेवाओं में ओबीसी के दायरे से बाहर करने वाली पीठ में भी जस्टिस गोगोई शामिल रहे। एक फरवरी 2011 को केरल में ट्रेन में 23 वर्षीय युवती के साथ बलात्कार की घटना हुई थी। यह मामला सुर्खियों में रहा था। आरोपी ने बोगी में बलात्कार के बाद युवती को ट्रेन से फेंक दिया था तो उसकी मौत हो गई थी। बलात्कार के इस बहुचर्चित केस में निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी जिस पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी, जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने आरोपी को फांसी के फंदे से पहुंचने से रोक दिया और सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया। यह आदेश उन्होंने 15 अक्टूबर 2016 को दिया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की सामाजिक कार्यकर्ताओं के स्तर से तीखी आलोचना हुई। खुद पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने शीर्ष अदालत के फैसले को गलत बताते हुए ब्लाग लिखकर सवाल खड़े किए थे। इस पर जस्टिस रंजन गोगोई ने केस में बहस के लिए और फैसले में बुनियादी खामियों को बताने के लिए व्यक्तिगत रूप से जस्टिस काटजू को तलब किया था।  

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