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इस कानून की नीयत पर किया जाता है शक

Posted at: Nov 11 , 2017 by Dilersamachar 9555

दिलेर समाचार,राजस्थान सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया है जिससे सभी सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों और लोकसेवकों(सांसद,विधायक और पार्षद इत्यादि) को अपनी सेवा के दौरान किये गये फैसलों पर सुरक्षा प्रदान की गई है और यह ठीक भी है क्योंकि अपनी डयूटी के दौरान कई फैसलों को लेकर इन लोगों को नाजायज परेशान किये जाने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है।

सरकार अगर इन्हें काम करने की छूट देना चाहती है तो इसे सही माना जायेगा लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं। अध्यादेश के प्रावधानों से लग रहा है कि सरकार इन्हें काम करने की नहीं बल्कि सरकारी धन की लूट करने की छूट देना चाहती है। सरकार चाहती है कि ये लोग सरेआम गरीब जनता के पैसों से ऐश करते रहें और कोई इनको रोकना तो दूर, इन पर उंगली भी न उठा सके। अगर सरकार को इन्हें काम करने की छूट देनी है तो सरकार इन पर लगाये जाने वाले आरोपों की जाँच निष्पक्ष तरीके से करवाकर इन्हें निर्दोष साबित करने का इन्तजाम करती लेकिन सरकार की कोशिश इन्हें आरोपों से बचाने की लग रही है।

राज्य सरकार का यह नया अध्यादेश किस मानसिकता के आधार पर लाया गया है, इसे समझना मुश्किल हो रहा है। लगता है कि महारानी भूल चुकी हैं कि देश आजाद हो चुका है और इस देश से राजे-रजवाड़ों के दिन लद चुके हैं। वो भूल चुकी हैं कि वो एक लोकतान्त्रिाक तरीके से चुनी हुई राज्य सरकार की मुखिया भर हैं, किसी राज्य की महारानी नहीं हैं जो उनकी जुबान से निकली हुई बात कानून बन जाये। अब इसे विडम्बना ही कहा जायेगा कि एक तरफ मोदी सरकार भ्रष्टाचारियों के लिये कोई रास्ता छोड़ने के लिये तैयार नहीं दिखायी दे रही है और दूसरी तरफ मोदी जी के मार्गदर्शन पर चल रही वसुन्धरा सरकार भ्रष्टाचारियों के लिये एक सुरक्षित रास्ता तैयार कर रही है। राज्य सरकार एक ऐसा सुरक्षित किला बनाना चाहती है जहाँ नेता और सरकारी अधिकारी/ कर्मचारी बिना किसी डर के भ्रष्टाचार में डूबे रहे और कोई उनके काम में दखल न दे सके।

राहुल गाँधी सही कह रहे हैं कि मुख्यमंत्राी साहिबा शायद भूल चुकी है कि ये 2017 चल रहा है, 1817 नहीं क्योंकि यह कानून राजतंत्रा या अंग्रेजी शासकों के लिये तो ठीक है लेकिन लोकतन्त्रा में सम्भव नहीं है। इस अध्यादेश के मुताबिक कोई भी मजिस्ट्रेट किसी सरकारी सेवक के खिलाफ जाँच का आदेश तब तक नहीं दे सकता जब तक सरकार द्वारा नियुक्त सक्षम अधिकारी द्वारा इसकी स्वीकृति न दी गई हो और इस स्वीकृति के लिये 180 दिन की अवधि तय की गई है। सबसे ज्यादा आपत्तिजनक यह प्रावधान है कि जब तक जाँच करने की स्वीकृति नहीं मिलेगी, तब तक संबंधित अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ मीडिया में कोई बात नहीं की जायेगी। इन लोगों के विवरण और चित्रों को प्रकाशित करने पर अध्यादेश की धारा 5 के अन्तर्गत 3 वर्ष की कैद और जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिये मीडिया का मुंह बन्द करने की कोशिश की गई है क्योंकि मीडिया ऐसे मामलों को उछालता रहता है और जन-जागरण के काम में लगा रहता है। एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया ने इसका जबरदस्त विरोध किया है और मीडिया कर्मी भी इसके प्रावधानों से चिन्तित हैं। वैसे अब वसुन्धरा सरकार ने इस कानून को ठण्डे बस्ते में डाल दिया है और इसे विधानसभा की सिलेक्ट कमेटी को भेज दिया है लेकिन ऐसा करने की वजह इस कानून का जबरदस्त विरोध है। इस कानून का इतना जबरदस्त विरोध हुआ है कि सरकार ने अपना पीछा छुड़ाना ही बेहतर समझा। काँग्रेस सहित पूरे विपक्ष ने तो इसका विरोध किया ही है परन्तु साथ ही साथ भाजपा के भी कुछ विधायक और नेता इसके विरोध में उतर आये हैं। मीडिया में भी इसका जबरदस्त विरोध हो रहा है।

आपको यह गलतफहमी नहीं पालनी चाहिये कि ऐसा कानून बनाने की कोशिश करने वाली वसुन्धरा सरकार पहली सरकार है बल्कि सच्चाई यह है कि इससे पहले यूपीए सरकार ऐसी कोशिश कर चुकी है और वर्तमान मोदी सरकार भी कुछ ऐसा ही कानून बनाने की कोशिश कर चुकी है। वास्तव में राजस्थान सरकार ने मीडिया में मामला न ले जाने का कानूनी प्रावधान पहली बार किया है जिससे विरोध ज्यादा तीखा हो गया है। वैसे वसुन्धरा सरकार इससे पहले भी चौंकाने वाले फैसले लेती रही है लेकिन यह अध्यादेश तो सारी हदें पार करने साबित वाला  हुआ है।

वास्तव में इस कानून के जरिये राज्य सरकार न केवल सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को बचाना चाहती है बल्कि वो अपने विधायकों, पार्षदों और सांसदों को भी सुरक्षा प्रदान करना चाहती है। इस कानून को लाकर सरकार ने दिखा दिया है कि वो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिये कितनी गम्भीर है। इस कानून ने न केवल वसुन्धरा सरकार बल्कि केन्द्र की मोदी सरकार को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है क्योंकि मोदी जी के निर्देशों पर ही यह सरकार चल रही है और उनकी मर्जी के बगैर ये सरकार ऐसा कानून बनाने की सोच भी नहीं सकती।

 हम जानते हैं कि हमारा देश भ्रष्टाचार से बुरी तरह से पीडि़त है और मोदी सरकार को सत्ता में लाने की बड़ी वजह भ्रष्टाचार से उपजी निराशा ही है। जनता को लग रहा है कि देश के लिये घर-परिवार को त्यागने वाला मोदी जैसा व्यक्तित्व ही इस देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करवा सकता है और इसलिये नोटबन्दी में तकलीफ सहकर भी जनता ने उनका साथ दिया था लेकिन राजस्थान सरकार के इस कानून ने मोदी सरकार की छवि को भी नुकसान पहुँचाया है क्योंकि मोदी सरकार भी इस कानून के समर्थन में दिखाई दे रही है।

जनता के समर्थन को जनता की मूर्खता नहीं समझा जाना चाहिये जिस काम के लिये जनता ने सरकार को चुना है, अगर सरकार उससे अलग चलती हुई दिखाई देती है तो ये सरकार की सेहत के लिये ठीक नहीं होगा। राजनीतिक दल विरोध में हल्ला मचा सकते हैं लेकिन भारत की जनता ज्यादातर समय चुप रहती है क्योंकि वो अपना गुस्सा चुनाव के वक्त ही निकालती है। काँग्रेस जब गले तक भ्रष्टाचार में डूब गई थी तो उसे भी गलतफहमी हो गई थी कि जनता के सामने उसको चुनने के अलावा कोई विकल्प नहीं है इसलिये वो कुछ भी कर ले, जनता तो उसे ही सत्ता की चाबी सौंपेगी लेकिन इस जनता ने उसे विपक्ष के लायक भी नहीं छोड़ा।

मोदी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मुश्किल लड़ाई लड़ रही है और उसमें जनता का विश्वास ही उसका सबसे बड़ा हथियार है। ऐसे कानून बनाने की कोशिश करना जनता के विश्वास को खत्म कर सकता है। राजनेताओं और नौकरशाहों का भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है। उन्हें किसी भी प्रकार से बचाने की कोशिश करना जनता के साथ धोखा होगा और इस धोखे की कीमत चुकाने के लिये मोदी सरकार को तैयार रहना चाहिये। मैं यह नहीं कहती कि मोदी सरकार की मर्जी से यह कानून लाया गया है लेकिन मोदी सरकार की मर्जी के बगैर इसे पास नहीं कराया जा सकता क्योंकि यह मामला अब राज्य सरकार तक सीमित नहीं रह गया है। यह एक राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है और मोदी सरकार को इसे हमेशा के लिये कचरे के डब्बे में डाल देना चाहिये।

मैं सरकार की इस बात से सहमत हूँ कि आजकल सरकारी अधिकारिओं और कर्मचारियों को नाजायज परेशान करने का चलन बढ़ गया है और सरकार को इस प्रचलन को रोकने की कोशिश करनी चाहिये लेकिन ऐसा कानून बनाने से तो इन लोगों को देश को लूटने की छूट मिल जायेगी। 

ये भी पढ़े: कैसे मिले भारत को भुखमरी व कुपोषण से मुक्ति

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