दिलेर समाचार,त्यूणी (देहरादून),: उम्मीद का सूरज प्रखरता से चमकने लगा है। कुरीतियों के खिलाफ उठने वाली आवाज बाहर से नहीं, भीतर से आ रही है। नवजागरण के इस दौर में बच्चे, बूढ़े और जवान सभी ने इस क्रांति की मशाल थाम ली है। देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर में बह रही बदलाव की बयार से न केवल पशुबलि जैसी कुप्रथाओं पर अंकुश लगा है, बल्कि मंदिरों में दलितों के प्रवेश की राह भी खुलने लगी है। ऐसी ही एक मिसाल कायम की है चकराता ब्लॉक की पंचायत चिल्हाड़ ने। इसमें अहम भूमिका निभाई है गांव के स्याणा (वरिष्ठ जन) और बलाणा देवी मंदिर के पुजारी ने।
जनजातीय परंपराओं के अनुरूप जौनसारी समाज में भी पशुबलि और छुआछूत जैसी प्रथाएं मौजूद थीं। हनोल के प्रसिद्ध महासू मंदिर में इन प्रथाओं को बंद कर दिया गया। बदलाव की यह बयार अन्य मंदिरों तक भी पहुंची। दरअसल, चिल्हाड़ गांव में है बलाणी माता का मंदिर। बलाणी माता महासू देवता की बहन हैं। सदियों से इस मंदिर में पशु बलि दी जाती थी तो महिलाओं व छोटी जाति के लोगों का प्रवेश वर्जित था।
बीती मई में देवमाली रोशनलाल बिजल्वाण, गांव स्याणा एवं पूर्व जिला पंचायत सदस्य जयदत्त बिजल्वाण, मंदिर के पुजारी लछीराम बिजल्वाण व पीतांबर दत्त बिजल्वाण ने इन प्रथाओं को बदलने का बीड़ा उठाया। इसके लिए ग्रामीणों की बैठक बुलाई गई। बैठक में रूढ़ियों से पार पाने के लिए ग्रामीणों को समझाया गया। लोग तैयार हुए तो काम भी आसान हो गया। मई में बलाणी मंदिर से देव पालकी को पहली बार शाही स्नान के लिए सिद्धपीठ श्री महासू देवता मंदिर हनोल ले गए। शाही स्नान के बाद बलाणी देवी मंदिर में बीते 28 मई से दो जून तक पांच दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान संपन्न हुआ। इसी के साथ मंदिर में सदियों पुरानी छुआछूत, भेदभाव व पशुबलि जैसी कुप्रथा का हमेशा के लिए अंत हो गया। अब मंदिर में पशुबलि की जगह लोग जटा-नारियल चढ़ाते हैं। साथ ही मंदिर प्रवेश में जाति बंधन की कोई रोक-टोक नहीं है।
पूर्व जिला पंचायत सदस्य जयदत्त बिजल्वाण कहते हैं कि आधुनिक दौर में ऐसी प्रथाओं से पार पाना ही होगा। बलाणी माता मंदिर के देवमाली रोशनलाल बिजल्वाण कहते हैं नई व्यवस्था से समाज में समरसता का संदेश जाएगा। जबकि, पुजारी लछीराम बिजल्वाण इसे एतिहासिक उपलब्धि बताते हैं।
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