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पर्वों की सार्थकता उनके पालन में

Posted at: Jul 21 , 2019 by Dilersamachar 10379

विशाल शुक्ल

हमारा राष्ट्र पर्वों का राष्ट्र है। जहां का हर आने वाला सुप्रभात किसी न किसी रूप मंे इतिहास समेटे महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। साथ ही अपने आगमन के साथ-साथ समाज एवं राष्ट्र को नई गति, प्रेरणा, मार्गदर्शन और ऊर्जा देने का विशेष कार्य करते हैं किंतु विडंबना है कि बदलते समय और माहौल के चलते अब इन पर्वों की परिभाषा भी परिवर्तित होने लगी है।

आज से वर्षों पूर्व या पुरातन काल में जिन पर्वों का जन्म समाज एवं राष्ट्र कल्याण के लिए हुआ था, वे पर्व चाहे राष्ट्रीय, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक आदि कोई भी क्यों न हों, इन सबका अर्थ बदलकर महज औपचारिकता पूर्ति तक सीमित रह गया है।

राष्ट्र और समाज की संस्कृति, आस्था, विश्वास, भक्ति, शक्ति के परिचायक, इतिहास की धरोहर इन पर्वों की निरंतर बदलती तस्वीर और पश्चिमी देशों की संस्कृति के बढ़ते प्रभाव ने पर्वों को नाम मात्रा के लिए ही जीवित रखा है।

पर्व ही राष्ट्र की सांस्कृतिक बुनियाद और सभ्य समाज के निर्माण का प्रमुख आधार होते हैं लेकिन पर्वों की सार्थकता तभी होती है जब उनके नियमों तथा आदर्शों को भली-भांति जानकर उनका पालन करें, तभी हमारे पर्वों को मनाने की सार्थकता होगी जो राष्ट्र एवं समाज के नव निर्माण के लिए हमारी महत्त्वपूर्ण सेवा होगी। 

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