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March 29 2024 02:12 PM

जीभ का रंग खोल देगा आपके जीवन का बड़ा राज़

Posted at: Sep 22 , 2017 by Dilersamachar 10557

दिलेर समाचार,आज तक शरीर के संपूर्ण क्रियाकलापों की पूरी जानकारी प्राप्त नहीं की जा सकी है अर्थात् शरीर में क्रियाकलापों की जानकारी लाख कोशिशों के बाद आज भी अपूर्ण है। जब शरीर पूरी तरह स्वस्थ होता है, उस समय उसके अंग-प्रत्यंगों का कार्य पूरी क्षमता से चलता रहता है लेकिन रोग के प्रवेश करते ही अनेक अंग-प्रत्यंग रोग का संकेत देने लगते हैं।चिकित्सक के पास जब रोगी जाता है तब चिकित्सक रोग की जानकारी कई तरह से करता है। इसके अन्तर्गत चेहरा, नब्ज़ देखकर, स्टैथस्कोप द्वारा, आंखों को देखकर तथा जीभ को देखकर या उससे हाल-चाल पूछकर चिकित्सक रोगी की स्थिति ज्ञात करते हैं।आखिर इन सब तरीकों से कैसे रोग की जानकारी प्राप्त हो जाती है, यह आम लोगों के लिए प्राय: कौतुहल का विषय रहता है। जीभ एक ऐसा अंग है जो विभिन्न रोगों में कई स्थिति से रोग की जानकारी दे देती है। जीभ के लक्षणों के अनुसार बीमारी की जानकारी निम्नानुसार होती है।
दमा एवं हृदय रोग में:- अगर रोगी दमा का शिकार है या वह हृदयरोग से पीडि़त है तो उस रोगी की जीभ बैंगनी रंग की हो जाती है। जब चिकित्सक जीभ का रंग बैंगनी देखते हैं तो अन्य लक्षणों के साथ यह तय कर लेते हैं कि रोगी दमा या हृदय रोग का शिकार है।
मलेरिया बुखार में:- बार-बार ठंड लगकर बुखार आने के साथ ही जीभ सूखकर सफेद हो जाती है तथा उसके किनारे लाल हो जाते हैं।
कफ-रक्त विकृति में:- जब रोगी कफ एवं रक्त की विकृति से बीमार हो जाता है तो उसकी जीभ स्वादहीन हो जाती है अर्थात् जीभ को किसी भी प्रकार का स्वाद महसूस नहीं होता।
निमोनिया में:- निमोनिया बुखार की स्थिति में जीभ हमेशा कांपती रहती है तथा बार-बार मुंह से बाहर निकलने की कोशिश करती रहती है।
यौन रोगों में:- महिला एवं पुरूष जब किसी भी प्रकार के यौन रोग से पीडि़त हो जाते हैं तो उनकी जीभ स्याह हो जाती है तथा जीभ पर दरार पडऩे जैसा निशान बनकर वह शुष्क हो जाती है।
कमजोरी में:- रोगी जब किसी बीमारी या अन्य कारणों से अत्यन्त दुर्बल हो जाता है तो उसकी जीभ लंबी हो जाती है और प्राय: होंठों को तर करने में लगी रहती है। रोगी का गला बार-बार सूखने लगता है।
पीलिया में:- किसी भी कारण से रक्त में रक्ताणुओं की कमी होने से या पीलिया (जौण्डिस) होने की स्थिति में रोगी की जीभ फीके रंग का हो जाती है।
बहुमूत्र रोग:- रोगी को जब बार-बार तथा बूंूद-बूंद करके कम मात्र में पेशाब आने लगता है या अधिक मात्र में अधिक बार पेशाब आने लगे या प्रमेह रोग की शिकायत होती है तो उसकी जीभ अत्यधिक चमकदार हो जाती है।
शरीर में शोथ होना:- शरीर के किसी भी भाग में सूजन या सडऩ क्रिया के होते रहने से उस व्यक्ति की जीभ सूझकर मोटी हो जाती है तथा जीभ पर कालिमा युक्त छोटे-छोटे दाने हो जाते हैं।
यकृत विकृति में:- यकृत विकृति, कामला रोग या चेचक जैसे प्राणघातक रोगों में जीभ के ऊपरी भाग पर एक प्रकार की काली तह (परत) जम जाया करती है। मोतीझरा के होने पर जीभ भूरी हो जाती है।
पक्षाघात रोग:- जब रोगी पक्षाघात (लकवा) का शिकार हो जाता है तो उसकी जीभ मुख के बीच में न रहकर एक तरफ खिसककर सिमट जाती है।
शरीर में पानी की कमी:- शरीर का जलीय अंश जब किसी कारण से कम होने लगता है तो उस व्यक्ति की जीभ एवं गला सूखने लग जाता है। वात एवं पित्त की विकृतियों में भी रोगी के जीभ की यही स्थिति होती है।
फुफ्फुस का कार्य न करना:- जब शरीर में स्थित फुफ्फुस अपने कार्य को ठीक ढंग से नहीं कर पाते या रोगी विशूचिका से ग्रस्त हो जाता है या फिर उसके आन्तरिक अंगों की सडऩ की स्थिति गंभीर हो जाती है तो उसकी जीभ शीशे की तरह सफेद होकर छालों से ग्रसित हो जाती है।
हिस्टीरिया में:- जब रूग्णा हिस्टीरिया या रोगी मिर्गी की बीमारी से ग्रसित रहता है तो उसकी जीभ पर काटने के चिन्ह मौजूद रहते हैं।
आक्सीजन की कमी में:- हृदय रोगों के कारण या अन्य कारणों से जब रोगी के शरीर में आक्सीजन की कमी हो जाती है तो रोगी की जीभ नीले रंग की हो जाती है।
टांसिल्स के बढऩे पर:- जब रोगी के टांसिल बढ़ जाते हैं तथा गले में सूजन आ जाती है तो उसकी जीभ गहरे लाल रंग की हो जाती है।
तेज बुखार होने पर:- जब रोगी के शरीर में बुखार का तापमान अधिक रहता है तो उसकी जीभ खुश्क होकर सूखने लगती है तथा वह मटमैली हो जाती है।
नये रोगों के आगमन पर:- जब किसी नये रोग का आगमन होने लगता है तो उससे पूर्व व्यक्ति की जीभ असामान्य रूप से कांपने लग जाती है।
अन्य लक्षण:- रक्त एवं वात की विकृति की स्थिति में जीभ अकड़ जाती है तथा बोलने में कष्ट होता है। मानसिक एवं वात रोग की स्थिति में जीभ मुख से बाहर निकलने की स्थिति में नहीं रहती है। प्लीहा एवं तिल्ली के बढऩे की स्थिति में जीभ फीकी एवं सफेद रंग की हो जाती है। जब जीभ स्वयं सूज जाती है तो उस पर गहरा लाल रंग एवं अकुलाहट-सी होने लगती है।
मस्तिष्क की विकृति में रोगी जीभ को सक्रिय करने में असमर्थ हो जाता है। आंतों में विकृति आ जाने या यकृत क्रिया के कमजोर हो जाने पर जीभ पर सफेद तह जम जाती है। आमाशय शोथ की बीमारी में। जीभ पर धब्बे दिखाई देते हैं। रक्तज्वर में जीभ पर कांटे से, दांत के रोगों में जीभ का पिछला भाग मैला, उपदंश या सूजाक में जीभ पर सड़े घाव का होना दिखता है।

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