राजेन्द्र मिश्र ‘राज’
राजधानी दिल्ली, मुंबई, कानपुर, कोलकता, हैदराबाद, ग्वालियर, रायपुर, भोपाल और नागपुर सहित कई अन्य नगरों में ब्यूटी पार्लर और मसाज केंद्र देह व्यवसाय के सुरक्षित स्थान बन गए हैं। देह व्यवसाय में नेपाल, बांग्लादेश से भी युवतियां आती हैं और उक्रेन, रूस आदि से भी श्वेत सुंदरियां आती हैं। कुछ ही महीनों में उनका यहां विवाह हो जाता है और फिर उन्हें भारतीय नागरिकता मिल जाती है। गौरतलब है कि अधिकांश पार्लर नेताओं के हैं या फिर अन्य प्रभावी लोगों के। इनका मकसद समाज को गुमराह करना है।
पुलिस से मिलीभगत का ही परिणाम है कि पार्लरों में देह व्यवसाय चलने लगा। कभी-कभार ही ऐसे अड्डों पर छापे पड़ते हैं और फिर रैकेट का पर्दाफाश होता है अन्यथा वर्षों तक सब कुछ सामान्य ढंग से चलता रहता है। पार्लरों में अलग-अलग व्यवस्था की जाती है ताकि किसी को तनिक भी भनक न लगे कि कमसिन सुंदरियां कौन-कौन सी सेवाएं प्रदान कर रही हैं। बड़ी सफाई से नेटवर्क चलता है। ऐसे पार्लर पॉश एरिया में ही हैं और पूरी तरह वातानुकूलित। यहां सुलझे और अनुभवी ग्राहक ही आते हैं। देह व्यवसाय मंे लिप्त युवतियां अभिनय में भी दक्ष हैं। इन के रंग-ढंग और चेहरों को देख कर तनिक भी संदेह नहीं होता कि ये असल में क्या हैं।
लॉज और रिसोर्ट भी पीछे नहीं!
आपको यकीन नहीं होगा कि शादी शुदा युगल भी दिन में होटल का कमरा बुक कर मौज मनाते हैं। इनमें से कुछ की मजबूरी है तो कुछ शौकिया। मजबूरी इसलिए कि घर में एकांत नहीं मिलता। संयुक्त परिवार है या फिर अलग बेडरूम नहीं। शारीरिक सुख की चाहत उन्हें होटल तक पहुंचा देती है। लगभग सभी शहरों में होटल और लॉज सरीखे हैं। अय्याश किस्म के लोग कुछ घंटों के लिए होटलों के कमरे बुक करा लेते हैं और अपनी भूख शांत कर लेते हैं। कई जगह मैनेजर ही सब कुछ मैनेज कर देते हैं। चारदीवारी के अंदर क्या चल रहा है यह वही जानते हैं जो इस खेल के खिलाड़ी हैं।
रिसार्ट तो वैसे भी टीन एजर्स के लिए मौज मस्ती के सुरक्षित स्थान बन गए हैं। यही बात है कि बदनाम गलियों की तितलियां पॉश इलाकों में, पार्लरों में, होटल ओर रेस्टोरेट में सुलभ हैं। कॉलेज के होस्टल से भी युवतियां दिन में यहां सेवाएं देने आती हैं। एक भयावह रोग की तरह फैल रहा है अवैध शारीरिक संबंध का रोग। बूढ़े तक यहां आते हैं। यहीं बनती हैं नीली फिल्में। जितनी ऊंची कीमत, उतनी शानदार कॉलगर्ल मिल जाती हैं।
सस्ते होटलों और लॉज में तो वेश्याएं स्वयं ही अपने ग्राहक फांस कर लाती हैं। शाम को खासकर 5 बजे से 7 बजे के बीच बड़े आराम से खेल संपन्न हो जाता है। कामकाजी महिलाएं और होस्टल की छात्राएं 9 बजे से पहले घर/होस्टल भी पहुंच जाती हैं। बड़े होटलों में तो रातभर सेवाएं उपलब्ध रहती हैं क्योंकि पुलिस कभी छापे मारने की गलती नहीं करती। मिलीभगत का ही परिणाम है कि कुछ वर्षों में वेश्यावृत्ति ने चोरी, हत्या, अपहरण सहित अन्य सभी अपराधों को पीछे छोड़ एक नया इतिहास रच डाला।
फिर कुछ आला अफसरों को शराब, कबाब के साथ शवाब भी चाहिए। यही वजह है कि उनकी फरमाईश पूरी करने के सारे प्रबंध किये जाते हैं। पहले लोग नैतिकता का ध्यान रखते थे जबकि आज सभी को चाहिए बेतहाशा दौलत; वह भी बगैर ज्यादा समय गवांए। बगैर परिश्रम के। यदि ऐसा नहीं होता तो देह की सौदेबाजी आसान नहीं होती जाती। आजकल तो यहां भी फिक्स रेट हैं।
फ्लैट्स संस्कृति सहायक बनी
ग्लैमर और चकाचौंध की दुनियंा में देह का सौदा कठिन नहीं रहा। अब न तो औरतों में झिझक रही और न मर्दों में। फटाफट बात बनती है और खेल शुरू हो जाता है। यह बात अलग है कि पाप का घड़ा ज्यादा दिन सुरक्षित नहीं रह पाता, फूट ही जाता है लेकिन यहां किसे शर्म है।
मीडिया हाईलाइट करता है तो कार्य और भी आसान हो जाता है। व्यवसाय का मुफ्त में प्रचार हो जाता है और फिर प्रसार भी। फ्लैट्स संस्कृति इस व्यवसाय को बढ़ाने में काफी सहायक सिद्ध हुई है। यहां कोई किसी की परवाह नहीं करता। निगरानी रखते हुए भी यही व्यक्त करता है कि हमें कुछ लेना-देना नहीं। सभी अपने अपने में मस्त हैं।
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