दिलेर समाचार,संतोष कुमार भार्गव :मुंबई हमलों की बरसी के दिन यानी 26 नवंबर से पहले पाकिस्तान ने मुंबई हमलों के प्रमुख साजिशकर्ता, आतंकी संगठन जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद को पाकिस्तान में नजरबंदी से रिहा कर दिया है। पाकिस्तान के इस कदम से उसका आतंकपरस्त चेहरा तो दुनियाभर के सामने बेनकाब हुआ ही है। वहीं मुंबई बम धमाकों की बरसी से पूर्व ये कदम उठाकर पाकिस्तान ने करोड़ों भारतवासियों के जख्मों पर नमक छिड़कने और घाव कुरेदने का काम किया है। लश्कर-ए-तैयबा के सरगना हाफिज सईद की रिहाई पर भारत ने स्वाभाविक ही तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है।
26 नवंबर 2009 को मुंबई में हुए भयावह हमले ने देश और दुनिया को आतंक का नया, खौफनाक चेहरा दिखाया था। बीते 9 बरसों से भारत और इस घटना के पीडि़त इस मामले में पूरे इंसाफ की राह देख रहे हैं लेकिन अब तक निराशा ही हाथ लगी है। यह नाउम्मीदी और अधिक बढ़ गई है क्योंकि मुंबई हमलों के प्रमुख साजिशकर्ता, आतंकी संगठन जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद को पाकिस्तान में नजरबंदी से रिहा जो कर दिया है।
अंतरराष्ट्रीय दबाव व भारत की कूटनीति के चलते इस वर्ष 31 जनवरी को सईद को उसके चार साथियों समेत पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की सरकार ने आतंकवाद विरोधी कानून-1997 और आतंकवाद विरोधी कानून की चौथी अनुसूची के तहत 90 दिनों के लिए नजरबंद किया था। यह समय सीमा कुछ समय के लिए और बढ़ाई गई, फिर सईद के साथी तो अक्टूबर अंत में रिहा कर दिए गए और अब हाफिज सईद की बारी है पर सवाल है कि अगर पाकिस्तान सरकार सईद के खिलाफ न्यायिक कार्यवाही को तार्किक परिणति तक पहुंचाने के लिए संजीदा है तो सबूत और आरोपपत्रा दाखिल होने से क्यों रह गए जबकि सईद के खिलाफ सबूतों की कमी नहीं है, न ही जांच एजेंसियां कह सकती हैं कि प्रतिबंधित संगठन लश्कर-ए-तैयबा से उसके संबंध की बाबत उन्हें मालूम नहीं है।
सईद की नजरबंदी आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान की संजीदगी का नतीजा नहीं थी, लिहाजा वह नजरबंदी अंततः दिखावा साबित हुई। यह सार्वजनिक शांति के खतरे में पड़ जाने की बिना पर की गई निरोधक नजरबंदी थी। पंजाब प्रांत ने उसे तीन महीने और नजरबंद रखने की इजाजात चाही थी अनुरोध को ठुकरा दिया। सरकार से कहा गया कि अगर वो सबूत दें तो हाफिज सईद का हाउस अरेस्ट बढ़ाया जा सकता है लेकिन सरकार इसमें नाकामयाब रही। हाफिज सईद के वकील ए. के डोगर ने बताया कि सरकार ने सईद के खिलाफ कोई सबूत पेश नहीं किए तो उसे रिहा करने के आदेश दिए गए। पाकिस्तान की अदालत यह मानती है कि जमात-उद-दावा का प्रमुख हाफिज सईद किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है। किसी को भी तभी हिरासत में रखा जा सकता है, जब वह किसी गैरकानूनी कार्य में लिप्त हो या उससे लोगों को खतरा हो।
हाफिज सईद के मामले में पाकिस्तानी अदालत दोनों ही बातें नहीं देखती है तो उसे आजाद होना ही था। अब सवाल यह है कि पंजाब प्रांत की सरकार उसकी नजरबंदी क्यों बढ़ाना चाहती थी तो उसका सीधा जवाब यह है कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गलत संदेश नहीं देना चाहती थी या कहें कि अमरीका को यह बताना चाहती थी कि वह आतंकवाद के खिलाफ है लेकिन हकीकत किसी से छिपी नहीं है। अमरीका के आगे भोले बनने का एक कारण यह भी है कि पाकिस्तान आतंकवाद विरोधी लड़ाई के नाम पर पहले की तरह भारी भरकम आर्थिक सहायता लेते रहना चाहता है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से किसी तरह का प्रतिबंध नहीं झेलना चाहता।
हाफिज सईद केवल भारत का ही गुनहगार नहीं है। अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र दोनों ने उसे मोस्ट वांटेड अपराधियों की सूची में डाला है। अमेरिका ने तो 10 मिलियन डालर का इनाम भी घोषित किया है लेकिन मजाल है कि हाफिद सईद का बाल भी बांका हुआ हो। वह आराम से पाकिस्तान की ऐशगाह में पल रहा है। उसके लिए गिरफ्तारी या रिहाई कानूनी खेल से ज्यादा कुछ नहीं है क्योंकि वह भी जानता है कि पाकिस्तान की सरकार अपनी कमजोरियों के कारण उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकती। पाकिस्तान की आम जनता आतंकवाद से उसी तरह पीडि़त है, जैसे दुनिया के बाकी देशों की जनता लेकिन वहां सरकार पर खुफिया एजेंसी आईएसआई और सेना का इस कदर शिकंजा है कि वह हाफिज सईद या मौलाना मसूद अजहर जैसे आतंकी सरगनाओं का कुछ नहीं कर सकती। खबरें हैं कि दाऊद इब्राहिम भी पाकिस्तान में ही है और इससे पहले ओसामा बिन लादेन को अमरीका ने पाकिस्तान में घुसकर ही मारा था।
दरअसल आतंकवाद पाकिस्तान के तंत्रा का अभिन्न हिस्सा बन चुका है, जिसके बूते उसे करोड़ों की सहायता राशि मिलती है और उन्हीं आतंकवादियों को वह भारत या अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में अशांति फैलाने के लिए भी भेजता है। पाकिस्तान का यह सच बरसों से दुनिया के सामने है लेकिन चीन और अमेरिका जैसी शक्तियां अपने लाभ के लिए उसे आतंकवाद को पालने-पोसने देती हैं। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उत्तर कोरिया को तो आतंकी देशों की सूची में डालने का फैसला किया है लेकिन पाकिस्तान उनका दुलारा क्यों है, यह सोचने वाली बात है।
अगर लोक शांति भंग होने की दलील पर सईद को एक बार फिर पाकिस्तान सरकार ने बंद नहीं किया तो उसके खुल कर घूमने-फिरने का रास्ता साफ है। वह राजनीति में आने और राजनीतिक दल बनाने का इरादा जता चुका है। इसके खतरे जाहिर हैं। सईद लश्कर-ए-तैयबा का चेहरा माना जाता है और इस आतंकवादी संगठन ने कितना कहर बरपाया है, यह भारत कैसे भूल सकता है। फिर, मुंबई में हुए आतंकी हमले में कुछ अमेरिकी नागरिक भी मारे गए थे। ऐसा आदमी सार्वजनिक गतिविधियों में खुलेआम हिस्सा लेगा, यह दुनिया के लिए तो शर्म की बात है ही, पाकिस्तान के समाज, वहां की राजनीति और वहां की लोकतांत्रिक शक्तियों के लिए भी घोर चिंता की बात होनी चाहिए।
जहां तक सवाल भारत का है, तो मुंबई हमलों की बरसी के ठीक पहले हाफिज सईद की रिहाई जख्मों पर नमक छिड़कने जैसी है। भारत को अब और अधिक सतर्क होने की जरूरत है, क्योंकि अपनी रिहाई के आदेश पर सईद का एक वीडियो आया है जिसमें उसने धमकी दी है कि वह कश्मीर को आजाद कराकर रहेगा और भारत उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं पाएगा। पाकिस्तानी न्यायतंत्रा को सोचना चाहिए कि ऐसी धमकी देने वाले को इंसानियत के लिए खतरा माना जाए या नहीं। भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के इस कारनामे का जोर-शोर से प्रचार करना चाहिए। वहीं अंतराष्ट्रीय समूहों के माध्यम से पाकिस्तान पर दवाब बनवाना चाहिए कि वो आंतकियों और सरगनाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें।
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