दिलेर समाचार, टॉलीवुड की फिल्मों का नाम आते ही प्लेबैक सिंगर तिमिर विश्वास का नाम आने लगता है। संगीत, विशेषकर बांग्ला लोकगीत के क्षेत्रा में तिमिर ने अच्छा काम किया है और आगे भी इस दिशा में प्रयासरत हैं। हाल ही में उन्हें बंगाल एक्सीलेंस अवार्ड से नवाजा गया। मूल रूप से पश्चिम बंगाल में आसनसोल के रहने वाले तिमिर विश्वास से फिल्म अभिनेता व पत्राकार संजय सिन्हा ने कोलकाता स्थित उनके आवास पर लम्बी बातचीत की। पेश हैं खास अंश:-
पश्चिम बंगाल के एक छोटे से शहर आसनसोल से आपने संगीत की यात्रा शुरू की और आज टालीवुड में आपकी एक अलग और मुकम्मल पहचान है।अपनी फीलिंग बताइये?
वाकई बहुत खुशी होती है। मैंने सोचा भी नहीं था कि इस तरह से मेरी पहचान बनेगी मगर दिल में एक उम्मीद थी और जोश था कि कुछ करना है। दरअसल कला तो मुझे अपने पिता स्वपन विश्वास से विरासत में मिली। वह एक मंजे हुए थिएटर आर्टिस्ट रहे हैं।बचपन से ही उन्हें एक्टिंग करते हुए देख रहा हूं। स्कूली शिक्षा के साथ-साथ मैंने भी म्यूजिक की तालीम लेनी शुरू कर दी। आपको बता दूं कि महज चार से पांच वर्ष की उम्र से ही मैंने जिंगल्स गाने शुरू कर दिए थे। टेलीविजन के विज्ञापनों के लिए मैंने जिंगल्स गाए और इसी तरह से मेरी शुरुआत हो गई। पिताजी ने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया। आज खुद को इस मुकाम पर देखकर खुशी होती है मगर अभी तो और भी बहुत कुछ करना है।
अपने कैरियर की कोई यादगार घटना बताइये?
(मुस्कुराते हुए) घटनाएं तो बहुत हैं मगर एक घटना आज भी मैं भूल नहीं पाता हूं। कालेज में मेरा पहला दिन था। कुछ सीनियर स्टूडेंट्स मेरे पास आए और मुझसे गाने को कहने लगे,तब मैंने उन्हें गाना सुनाया। सभी ने मेरा हौसला बढ़ाया। आपको बता दूं कि पहले मैं की-बोर्ड बजाता था।बाद में गायन में कदम रखा। फिर मैंने गीत लिखना भी शुरू कर दिया। सबसे पहले मुझे लोक गायक नचिकेता चक्रवर्ती के साथ गाने का मौका मिला। मेरे परफारमेंस से सभी बेहद खुश हुए। फिर मैंने आसनसोल में ही ‘म्यूजिक स्ट्रीट’ के नाम से एक बैंड बनाया।
इन दिनों तो आपका बैंड ‘फकीरा’ काफी फेमस है और इसके जरिये आप भी लगातार शोज कर रहे हैं। इस बैंड का मकसद क्या है?
हम लोग फोक संगीत के क्षेत्रा में हर रोज नए-नए प्रयोग कर रहे हैं और कुछ नया करना चाहते हैं। फोक के साथ-साथ फोक फ्यूजन, राक, एक्सपेरिमेंटल, सूफी राक, पाप राक, अल्टरनेटिव रॉक आदि पहलुओं पर हमलोग पूरे समर्पण के साथ काम कर रहे हैं।
-फिल्मों में किन संगीतकारों के साथ काम करके बहुत मजा आया?
वैसे तो सभी ने मुझे को-आपरेट किया मगर चन्द्रबिन्दु और जीत गांगुली मेरे फेवरिट रहे। बांग्ला फिल्म ‘दुइ पृथ्वी’ का टाइटल सांग गाकर मुझे बहुत संतुष्टि मिली थी।
भविष्य की योजना बताइये। क्या करना चाहते हैं?
बस म्यूजिक के क्षेत्रा में,विशेषकर लोकसंगीत के क्षेत्रा में काम करना चाहता हूँ। हर रोज नया प्रयोग कर रहा हूं।
नवोदित गायकों के लिए क्या टिप्स देना चाहेंगे?
नए लोगों को पूरे लगन और समर्पण के साथ इस क्षेत्रा में आना चाहिए।संगीत कोई बच्चों का खेल नहीं है। इसके लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना भी पड़ता है। (अदिति)
महाकाल को बचाने की पहल सराहनीय
/ संजय सिन्हा
उज्जैन के ऐतिहासिक महाकाल मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया,वह वाकई सराहनीय है। सुप्रीम कोर्ट ने बहुत सारे निर्देश जारी किए हैं। इन निर्देशों को ईमानदारी से पालन करके महाकाल मंदिर को बचाया जा सकता है।
आम तौर पर धार्मिक मामलों में सरकार अदालत की दखल अंदाजी नहीं होनी चाहिए। इन मामलों में किसी तरह का कोई हस्तक्षेप अच्छा संकेत नहीं है लेकिन आमजन में जागरूकता की कमी और स्थानीय प्रबंधकों के सही समय पर सतर्क ना होने के कारण अक्सर ऐसे दखल की जरूरत पड़ जाती है।
बदलते वक्त, बढ़ती आबादी और नए प्रकार की चीजों का इस्तेमाल बढ़ने से विभिन्न् स्थलों के प्राकृतिक स्वरूप में परिवर्तन आया है। इसके मद्देनजर सावधानी ना बरती जाए तो हमारी बहुत सी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व की धरोहरों का क्षय हो सकता है।
ऐसी ही स्थिति उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर में पैदा हुई। अतिशय चढ़ावों के कारण वहां स्थित ज्योतिर्लिंग का क्षरण होने लगा। चूंकि मंदिर प्रबंधन ने इसके प्रति सावधानी नहीं दिखाई, इसलिए एक नागरिक को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। तब सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीमों से याचिका में कही गई बातों की जांच कराई। इनसे पुष्टि हुई कि महाकाल मंदिर की विश्व प्रसिद्ध आरती के समय जो भस्म चढ़ाई जाती है, उसका ज्योतिर्लिंग पर प्रतिकूल प्रभाव हुआ है। ज्योतिर्लिंग पर जो जल चढ़ाया जाता है, वह भी प्रदूषित और बैक्टीरिया-युक्त है। इसका खराब असर भी ज्योतिर्लिंग पर पड़ा है। वहां चढ़ाए जाने वाले दूध, दही, घी, शहद, शक्कर और फूलमाला भी क्षरण की वजह बन रहे हैं।
चूंकि मंदिर और आराधना का संबंध आस्था से है, इसलिए अक्सर ऐसी बातों पर लोग चुप रह जाते हैं। जिनको ये बात समझ में आती है, उन्हें भी आशंका रहती है कि उन्होंने कुछ कहा तो उससे लोगों की धार्मिक भावना आहत होगी लेकिन यह समझने की बात है कि ऐसी चुप्पी हानिकारक है। इस कारण हमारी बहुमूल्य विरासतों को नुकसान पहुंच रहा है।
लिहाजा हर्ष का विषय है कि सुप्रीम कोर्ट ने महाकाल मंदिर में ज्योतिर्लिंग के संरक्षण की पहल की है। उसने मंदिर प्रशासन को आठ उपायों पर अमल करने को कहा है। इसके तहत अब ज्योतिर्लिंग का सिर्फ आरओ से स्वच्छ किए जल से ही अभिषेक किया जा सकेगा। जल की मात्रा भी 500 मिलीलीटर तक सीमित रहेगी। इसके अलावा कोर्ट ने सिर्फ प्राकृतिक फूलों के इस्तेमाल, गर्भगृह में सीमित मात्रा में श्रद्धालुओं के प्रवेश, श्रद्धालुओं के बाहर निकलने के लिए अलग द्वार बनाने जैसे निर्देश भी दिए हैं।
अब कोर्ट की भावना के अनुरूप इन उपायों पर प्रभावी ढंग से अमल किया जाना चाहिए। उचित यही होगा कि कोई भी इस पर विवाद खड़ा करने की कोशिश ना करे। पिछले दिनों दिवाली के मौके पर सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई थी। तब कुछ हलकों से यह शिकायत की गई कि कोर्ट ने एक बड़े धार्मिक उत्सव में बेजा दखल दिया है जबकि कोर्ट की मंशा महज दिल्ली और आसपास के लोगों को वायु प्रदूषण से बचाने की थी। महाकाल के मामले में भी उसका उद्देश्य महज इस विश्व-प्रसिद्ध तीर्थस्थल की पवित्राता बरकरार रखना है। इस महती कार्य में सबको सहभागी बनना चाहिए। महाकाल मंदिर का वैभव तभी बना रहेगा जबकि ये पवित्रा ज्योतिर्लिंग अक्षुण्ण रहे।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सभी को तहे दिल से स्वागत करना चाहिए। ऐतिहासिक धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने हेतु जागरूकता की बेहद कमी है। धार्मिक आस्था के कारण अगर देश के ये तमाम धरोहर नष्ट हो जाते हैं तो ऐसी श्रद्धा और आस्था किस काम की। देश के आम लोगों से मेरा यही अनुरोध है कि खुद को जागरूक बनाएं और दूसरों को भी जागरूक करें। तभी हम अपनी थाती को बचा पाएंगे वरना सब स्वाहा हो जाएगा।
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