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ऐसे हुई श्रीराम जन्मभूमि की मुक्ति

Posted at: Jul 29 , 2020 by Dilersamachar 9352
दिलेर समाचार, विनोद बंसल, राष्ट्रीय प्रवक्ता, विश्व हिन्दू परिषद् । ईस्वी सन् 1528 से लेकर आजतक भारतकेसांस्कृतिक राष्ट्रवाद नेअसंख्य उतार-चढ़ाव देखे हैं।एकओर उसने वह असहनीयदर्द सहा जब भव्य तथा विशाल मंदिर को धूल धूसरित कर अपने सत्ता मद में चूर एक विदेशी आक्रान्ता ने भारत की आस्था को कुचलकर देश के स्वाभिमान की नृशंस ह्त्या का दुस्साहस किया। तो वहीँ,6 दिसंबर 1992 का वह दृश्य भी देखा जब लाखों राम भक्तों ने 464वर्षपूर्व जन्मभूमि के साथ हुई उस दुष्टता का परिमार्जन करते हुए पापी के बनाए हुए पाप के ढाँचे का मात्र कुछ ही घंटों में अवशेष तकनहीं छोड़ा।समूचेविश्व ने वह दृश्य लाइव देखा। इन दो घटनाओं के बाद जो सबसे महत्वपूर्ण दिवस श्री राम जन्म भूमि के लिए आया तो वह था 2019 का नौ नवम्बर।अर्थात् वह पावन तिथि जब भारत के इतिहास में पहली बार सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय खण्ड-पीठ के माननीय न्यायाधीशों ने सर्व सम्मति से एक ऐसा निर्णयदियाजिसे सम्पूर्ण विश्व ने अपनी धड़कती हुई सांसों को थाम कर लाइव सुना, सुनाया, चार्चाएं कीं और सर्व सम्मति से एकाकार होकर अंगीकार किया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितम्बर 2010 के निर्णय के विरुद्ध अपीलें तो सभी पक्षों ने 2011 के प्रारम्भ में ही दायर कर दीं थी किन्तु, उसके बाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय की लगभग 8 वर्षों कीचुप्पी ने देश को अधीर कर दिया। एक बार तो राम भक्तों को लगा कि यह विषयअब न्यायालय की प्राथमिकता का हैहीनहीं, तोदेश भर में विशाल धर्म सभाएं प्रारम्भ हो गईं। किन्तु,माननीयउच्चतम न्यायालय की दो सौ दिनों की मेराथन सुनवाईअंततोगत्वापरिणाम भी ले आई। लगभग 500 वर्षों के सतत् संघर्ष में हिन्दू कभी जीता तो कभी हारा, कभीरामलला साक्षात् दिखे तो कभी उनकी सिर्फ अनुभूति, कभी पूजा-पाठ हुआ तो कभी सिर्फजन्म भूमि वंदन, कभीगम्भीर शांति रही तो कभी जबरदस्त संधर्ष। किन्तु इस सबके बीच, यदि कुछ स्थिर था तो वह था जन्मभूमिसेगहरालगाव व समर्पण।चाहे मूर्ति गईंया पूरामंदिर, राज्य गए या प्राण, सम्पत्ति गई या स्वजन,कुछ भी हुआ किन्तु, जन्मभूमि पर अपना दावा हिन्दू समाज ने कभी नहीं छोड़ा।वैसे भी हिन्दू परम्परा में स्थान देवता का बड़ा महत्व है।भारत की स्वतंत्रता के उपरांत श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति के लिएहुए आन्दोलन के विभिन्न चरणों में लगभग 16।5 करोड़ लोगों की सहभागिता ने इसे दुनिया का सबसे बड़ाशांतिपूर्ण व अनुशासितजन-आन्दोलन बना दिया। दिसम्बर2017में प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में बनीसर्वोच्च न्यायालय कीतीन सदस्यीय खंडपीठ ने जब पहलीबार सुनवाई का मन बनाया तो बाबरीवादी मुस्लिम समुदायकेसाथकांग्रेसकेनेताकिसप्रकार हिन्दु-द्रोहियों केसाथखड़ेहोकरखुल्लम-खुल्लाराम द्रोह के नए-नए प्रपंच रच कर सुनवाई को अटकाने, भटकाने व लटकाने की नई नई चालें चल रहे थे, यह बात सम्पूर्ण विश्व ने देखी। कभीदोवर्ष बाद होने वाले आम चुनावों का हवाला तो कभी सुनवाईसे देश का माहौल खराब होने की बात, कभीन्यायाधीशों की पीठ की संख्या पर प्रश्न तो कभी मुख्य न्यायाधीश की सेवा निवृति कीतिथि का बहाना, कभी उच्च न्यायालय के दस्तावेजों के अंग्रेजी अनुवाद का बहाना तो कभी उसकी विश्वसनीयता पर हीप्रश्न चिह्न,कभीपूर्व कानून मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल व उनकेसहयोगी वरिष्ठ वकीलों द्वाराभरे कोर्टरूम में चीख-चिल्लाहट वबहिष्कार की धमकी तो कभी मुख्य न्यायाधीश जस्टिसदीपक मिश्रा पर महाभियोग चलाने का मामला, भारत के न्यायिक इतिहास में सब कुछ पहली बार देखने को मिला। खैर! 40 दिन में200 घंटे सेअधिक की ऐतिहासिकमैराथन सुनवाई ने आखिरकारशताब्दियोंकेबाबरवादीकब्जे से जन्मभूमि को मुक्त करते हुए अपना ऐतिहासिक निर्णय सुना ही दिया। केंद्र सरकार की पहल पर माननीय सर्वोच्च न्यायालयद्वारा की गई सुनवाई में आई अनेक बाधाओं को राम-भक्त वरिष्ठ अधिवक्ता श्री के। पारासरन की टोली, श्रीचम्पत राय जी के कुशल मार्ग दर्शन वराज्य के मुख्यमंत्री पूज्यमहंत आदित्यनाथ जी की सरकार द्वाराएक एक कर हटाया गया।निर्णय से पूर्व,पूज्य संतों,पूजनीय सरसंघचालक, प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजीतथा विश्व हिन्दू परिषद् कार्याध्यक्ष एडवोकेट श्री आलोक कुमार जी के साथ अनेकविद्वानों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक व धार्मिक संगठनों की देश में शान्ति व व्यवस्था की गम्भीर अपील नेनिर्णयोपरांत केउपद्रव की सम्भावनाओं को पूरी तरह विराम लगा दिया। इस दौरान अनेक बार योगी जी का अयोध्या प्रवास, उसके विकास का खाका तथा पूज्य संतों व श्रद्धालुओं के साथ सभी पक्षकारों में व्यवस्था के प्रति विश्वास की पुनर्स्थापना ने भी बड़ा कार्य किया।देश-विदेश में फैले राम भक्तों के संकल्प और उनके अथक विविधप्रकार के प्रयासोंने भी देश की इसजटिलसमस्याके समाधानकीओर आगे बढ़नेमें कोई कम भूमिका नहीं निभाई।विश्व हिन्दू परिषद, जिसनेपूज्य संतों के मार्ग-दर्शन व अगुवाई में श्री राम जन्मभूमि के 77वें युद्ध की घोषणा 90 के दशक में की,पांच शताब्दियों के संघर्ष को, चार दशकों में विजयश्री पर पहुंचा दिया। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रष्टकेआहवान पर,सभी राम भक्तोंके सहयोग व योगदान से मंदिर निर्माण के पुनीत कार्य के श्री गणेश की पावन बेला भी अब सन्निकट है।प्रत्येक रामभक्तअब इस प्रतीक्षा में है कि कोरोना संकट के इस काल में उसे राम जी क्या काम सौंपते हैं। जिस जन्मभूमि की मुक्ति हेतु जिन्होंनेतन-मन-धनके साथ पूरा जीवन लगा दिया, उस पर बनने वाले विराट भव्य मन्दिर के भूमि पूजन के स्वर्णिम बेला को स्वनेत्रों से निहारनेकीउत्कंठा बार बार मन में हिलोरें माररही है।अब सभी राम भक्त तैयार रहें। सबके लिए कुछ ना कुछ राम काज आने हीवाला है। कोरोना संकट भलाहमेंअपने आराध्य देव के दर्शन के अधिकार से बंचित कैसे कर सकता। हाँ! दर्शन का माध्यम बदल सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि इससे सम्बंधित सभी सावधानियों का पूर्णता से पालन करते हुए हमारे लिए जोभी करणीय कार्य हैं, हम वही सबमर्यादापूर्वक करेंगे।

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