दिलेर समाचार, एक बार एक किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया। कभी बाढ़ आ जाए, कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज हो जाए तो कभी ओले पड़ जाएं। हर बार कुछ न कुछ कारण से उसकी फसल थोड़ी खराब हो जाए। एक दिन बड़ा तंग आकर उसने परमात्मा से कहा, ‘‘देखिए प्रभु, आप परमात्मा हैं, लेकिन लगता है आपको खेतीबाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है, एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिए, जैसा मैं चाहूं वैसा मौसम हो, फिर आप देखना मैं कैसे अन्न के भंडार भर दूंगा। परमात्मा मुस्कुराए और कहा ठीक है, जैसा तुम कहोगे वैसा ही मौसम दूंगा, मैं दखल नहीं करूंगा।’’
किसान ने गेहूं की फसल बोई, जब धूप चाही, तब धूप मिली, जब पानी तब पानी। तेज धूप, ओले, बाढ़, आंधी तो उसने आने ही नहीं दी, समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की खुशी भी, क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई थी। किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को, की फसल कैसे करते हैं, बेकार ही इतने बरस हम किसानों को परेशान करते रहे।
फसल काटने का समय भी आया, किसान बड़े गर्व से फसल काटने गया, लेकिन जैसे ही फसल काटने लगा, एकदम से छाती पर हाथ रख कर बैठ गया। गेहूं की एक भी बाली के अंदर गेहूं नहीं था, सारी बालियां अंदर से खाली थीं, बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा, प्रभु यह क्या हुआ?
तब परमात्मा बोले, ‘‘यह तो होना ही था, तुमने पौधों को संघर्ष का जरा-सा भी मौका नहीं दिया, न तेज धूप में उनको तपने दिया, न आंधी-ओलों से जूझने दिया, उनको किसी प्रकार की चुनौती का अहसास जरा भी नहीं होने दिया, इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए, जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है, ओले गिरते हैं तब पौधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वह अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वह ही उसे शक्ति देता है, ऊर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है, सोने को भी कुन्दन बनने के लिए आग में तपने, हथौड़ी से पिटने, गलने जैसी चुनौतियों से गुजरता पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है, उसे अनमोल बनाती है।’’
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