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बेहद संजीदा कलाकार थे संजीव कुमार

Posted at: Jul 8 , 2019 by Dilersamachar 9813

सुभाष शिरढोनकर

संजीव कुमार का जन्म 09 जुलाई, 1938 को सूरत के एक मध्यवर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था। उनका जन्म का नाम हरिहर जेठालाल जरीवाला था। उनकेे दो छोटे भाई और एक बहन भी थी। शुरूआती कुछ साल सूरत में गुजारने के बाद स्थाई तौर पर अपने परिवार के साथ वो मुंबई आ गये यहां के स्कूल में उनका दाखिला हुआ। जब वो काफी छोटे थे, उनके सिर से पिता का साया उठ गया।

संजीव कुमार ने ’इप्टा’ से अभिनय की शुरूआत की। उसके बाद इंडियन नेशनल थियेटर से जुड़ गये। कुछ अरसे बाद उन्होंने ’फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल’ में दाखिला ले लिया। संजीव कुमार जब सिर्फ 16 साल के थे उन्हें होमी वाडिया की ’अलीबाबा और 40 चोर’ (1954) में एक छोटी सी भूमिका में कैमरे का सामना करने का अवसर मिला।

1958 में महज 20 साल की उम्र में संजीव कुमार ने स्टेज पर एक वृद्ध व्यक्ति का रोल इतने शानदार तरीके से निभाया कि उन्हें देखकर पृथ्वीराज कपूर जैसा कलाकार दंग रह गया था।

 फिल्मालय बैनर की ’हम हिंदुस्तानी’ (1960) में संजीव कुमार को दूसरा अवसर मिला। इसमें भी उनके हिस्से में एक बेहद छोटा किरदार आया। ’निशान’ (1965)  में संजीव कुमार मुख्य भूमिका में नजर आए।  असित सेन द्वारा निर्देशित इस फिल्म को ज्यादा सफलता नहीं मिल सकी।

लेकिन ’निशान’ (1965) के बाद संजीव कुमार को ’स्मगलर’, ’पति पत्नी’, ’हुस्न और इश्क’ ’बादल’, जैसी बी’ ग्रेड की कुछ फिल्मों में काम मिल गया। ये सभी फिल्में 1966 में प्रदर्शित हुईं और संजीव कुमार के कैरियर की गाड़ी चल निकली। 

1967 में संजीव कुमार की ’गुनहगार’ और ’नौनिहाल’ फिल्में आईं। ’नौनिहाल’ के गीत और संगीत को दर्शकों ने काफी पसंद किया । इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर ठीक ठाक प्रदर्शन किया। इस तरह महत्त्वहीन फिल्मों में बेहद मामूली किरदार निभाते हुए संजीव कुमार अपने अभिनय के जरिये लगातार दर्शकों का ध्यान आकर्षित करते रहे।

धर्मेन्द्र के मेन लीड वाली आत्माराम द्वारा निर्देशित ’शिकार’ (1968) में संजीव कुमार एक पुलिस ऑफिसर की सहायक भूमिका में नजर आए। इसमें उन्होंने अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराई, इसमें उन्हें दमदार अभिनय के लिए श्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड मिला।

हरनाम सिंह रवेल द्वारा निर्देशित ’संघर्ष’ (1968) में संजीव कुमार की एक बेहद छोटी सी भूमिका थी लेकिन दिलीप कुमार जैसे स्टार के मुकाबले वे जबर्दस्त वाहवाही लूटकर ले जाने में कामयाब रहे। दिलीप कुमार की बांहों में दम तोड़ने वाला दृश्य उन्होंने इतने शानदार तरीके से अदा किया कि खुद दिलीप कुमार भी सकते में आ गये।

’संघर्ष’ (1968) के बाद संजीव कुमार की उसी साल एक और फिल्म ’राजा और रंक’ रिलीज हुई । यह संजीव कुमार के सोलो हीरो वाली फिल्म थी। वह साल की सबसे बड़ी हिट साबित हुई। इसके बाद संजीव कुमार ने कभी मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक कई शानदार फिल्मों में शानदार अभिनय करते हुए वो लोकप्रिय होते गए।

’आशीर्वाद’ (1968), अनोखी रात’ (1968) ’धरती कहे पुकार के’ (1969) ’जीने की राह’ (1969) और सत्यकाम’ (1969)  जैसी फिल्मों में मिली कामयाबी से संजीव कुमार दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसी स्थिति में पहुंच गये जहां वे फिल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुनने लगे।

’खिलौना’ (1970) में संजीव कुमार ने एक पागल व्यक्ति की भूमिका इतने शानदार तरीके से अदा की कि पूरे एक साल तक हर तरफ सिर्फ उनके ही चर्चे होते रहे। इस फिल्म की जबर्दस्त कामयाबी से संजीव कुमार ने बतौर अभिनेता एक अपनी अलग ही पहचान बना ली।

’दस्तक’ (1970) और ’कोशिश’ (1972) में संजीव कुमार को लाजवाब अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इन फिल्मों में संजीव कुमार के अभिनय के नये आयाम दर्शकों को देखने मिले। ’कोशिश’ (1972) में बगैर संवाद बोले सिर्फ आंखों और चेहरे के भावों से गूंगे व्यक्ति की भूमिका में संजीव कुमार ने अपनी लाजवाब अदाकारी और टेलेंट के बल पर कमाल का अभिनय किया।

साउथ के सुपर स्टार शिवाजी गणेशन द्वारा अभिनीत ’तमिल फिल्म नवरात्राी (1964) के हिंदी रीमेक ’नया दिन नई रात’ (1974) में संजीव कुमार ने 9 अलग अलग किरदार निभाकर दर्शकों को चकित किया। ’सीता और गीता’ (1972) में संजीव कुमार का रोल ज्यादा पॉवरफुल नहीं था लेकिन अपनी शानदार कॉमिक टाइमिंग से वह किरदार को नया आयाम देने में कामयाब रहे। बीवी ओ बीवी’ (1981), ’पति पत्नी और वो’ (1982), अंगूर (1982), ’हीरो’ (1983), में भी उनकी बेहद लाजवाब कॉमिक टाइमिंग नजर आई।

प्रिया (1970), बचपन (1970), कंगन (1971), अनुभव (1971), रिवाज (1972), ’शानदार’ (1974), अर्चना (1974), जिंदगी (1976), दो लड़कियां (1976), जैसी संजीव कुमार की कुछ एक फिल्में बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह नाकाम रहीं लेकिन इसके बावजूद इनमें संजीव कुमार के अभिनय की खूब प्रशंसा हुई।

दूसरी ओर संजीव कुमार ’सच्चाई’ (1970), ’पारस’ (1971), ’अनहोनी’ (1973), ’मनचली’ (1973), आप की कसम’ (1974) ’आंधी (1975) ’मौसम’ (1975) ’शोले’ (1975), ’उलझन’ (1975), ’पति पत्नी और वो’ (1978), और ’त्रिशूल’ (1978), जैसी हिट फिल्मेें देते रहे।

’शोले’ (1975) का ठाकुर आज भी सिने प्रेमियों के ज़हन में जिंदा है। गब्बर के हाथ मांगने पर ठाकुर सिर्फ ’नहीं.... नहीं....’ चिल्लाता है लेकिन उस चिल्लाने में जो तड़प थी, उसे सिर्फ संजीव कुमार ही पर्दे पर साकार कर सकते थे। एक उम्र दराज शख्स का बिना बाजुओं का गब्बर सिंह को मौत के घाट उतारने वाले सीन में संजीव कुमार ने हिंदी सिनेमा के सारे स्टीरियो टाइप छवियों को तोड़ दिया। ’शोले’ (1975) के ठाकुर वाले किरदार ने उन्हें अमर कर दिया।

’त्रिशूल’ (1978) में संजीव कुमार द्वारा निभाया गया इंडस्ट्रियलिस्ट आर.के.गुप्ता का किरदार भी, उनके कैरियर के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। ’शोले’  और ’त्रिशूल’ संजीव कुमार के अभिनय से सजे दो बेहद शानदार नमूने हैं जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

संजीव कुमार राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, शम्मी कपूर, दिलीप कुमार जैसे कलाकारों के साथ काम करते हुए अपनी विशेष पहचान के साथ कामयाबी अर्जित करते रहे। संजीव कुमार ने रोमांटिक, ड्रामा और थ्रिलर, सभी तरह की फिल्मों में काम किया।

संजीव कुमार के बेमिसाल अभिनय से सुसज्जित फिल्मों की एक लंबी फेहरिस्त है। सुभाष घई की ’विधाता’ (1982) में दिलीप कुमार के मुकाबले उनका किरदार बेहद मामूली सा था। लेकिन अपने शानदार अभिनय से उन्होंने उसे गैर मामूली बना दिया।

बंगाली फिल्मों के मशहूर फिल्मकार सत्यजीत राय ने हिंदी में सिर्फ एक फिल्म ’शतरंज के खिलाड़ी’ बनाई और उसमें उन्होंने मिर्जा सज्जाद अली के किरदार के लिए संजीव कुमार को लिया। सिर्फ इस एक बात से संजीव कुमार का महत्त्व काफी बढ़ जाता है।

संजीव कुमार, फिल्मकार गुलजार के सबसे ज्यादा पसंदीदा कलाकार थे। गुलजार ने उनके साथ ’कोशिश’ (1972), ’परिचय’ (1972), ’आंधी’ (1975) मौसम (1975) अंगूर (1982) और ’नमकीन’ (1982) जैसी फिल्मों में काम किया। 

संजीव कुमार अपनी उम्र से दो गुनी उम्र वाले किरदार को निभाने का पूरा मादा रखते थे। ए.के. हंगल द्वारा निर्देशित ’डमरू’ में संजीव कुमार ने 6 बच्चों के 60 साल के पिता का बेहतरीन किरदार निभाया। उन्हें जया बच्चन के श्वसुर, पिता और पति की भूमिकाएं निभाने के लिए भी हमेशा याद किया जायेगा।

संजीव कुमार ने हिंदी के अलावा मराठी, पंजाबी, तमिल, तेलगू, सिधी और गुजराती भाषा की फिल्मों में काम किया। पर्दे पर बेहद गंभीर रोल निभाने वाले संजीव कुमार अपनी असल जिंदगी में बेहद संजीदा थे। एक स्टार कलाकार होने के बावजूद संजीव कुमार ने कभी नखरे नहीं किए। संजीव कुमार को उनके शिष्ट व्यवहार और विशिष्ट अभिनय के लिए फिल्म जगत में हमेशा याद किया जायेगा।

संजीव कुमार ने हेमा मालिनी के साथ सच्ची मोहब्बत की लेकिन हेमा मालिनी ने संजीव कुमार के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। सुलक्षणा पंडित के सथ भी संजीव कुमार का नाम जुड़ा लेकिन हकीकत तो यही थी कि हेमा के इन्कार का उनके दिल पर इतना गहरा असर हुआ कि फिर उन्होंने शादी नहीं की और कुंवारे ही इस दुनिया से चले गये।

संजीव कुमार को श्रेष्ठ अभिनेता के लिए दो राष्ट्रीय पुरस्कारों के अलावा 1976 में ’आंधी’ और 1977 में ’अर्जुन पंडित’ के लिए बेस्ट एक्टर केटेगरी के फिल्मफेयर अवार्ड मिले।

06 नवंबर 1985 को महज 47 साल की उम्र में हार्ट अटैक से संजीव कुमार की मृत्यु हुई । उनकी मृत्यु के बाद उनकी 10 फिल्में रिलीज हुईं। 1993 में प्रदर्शित ’प्रोफेसर प्यारेलाल’ (1993) संजीव कुमार की आखिरी रिलीज थी।

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संजीव कुमार के नाम से सूरत में एक सड़क और स्कूल का नामकरण किया गया है। 03 मई 2013 को उनके नाम पर इंडियन पोस्टल डिपार्टमेंट द्वारा एक पोस्टेज स्टाम्प जारी किया। 14 फरवरी 2014 को उनके नाम पर सूरत में 108 करोड़ की लागत से, एक ऑडीटोरियम स्थापित किया गया है।  

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