दिलेर समाचार, एक ऐतिहासिक फैसले में उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि किसी आपराधिक मामले में सरकार के अलावा पीड़ित भी सीआरपीसी के तहत आरोपियों को बरी किए जाने के खिलाफ ऊंची अदालतों में अपील दाखिल कर सकता है और इसके लिए उसे अपीलीय अदालत से पूर्व अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।
न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 2:1 के बहुमत से दिए गए फैसले में कहा कि सीआरपीसी (दण्ड प्रक्रिया संहिता) की धारा 372 (आपराधिक मामलों में अपील से जुड़ा प्रावधान) की ‘‘वास्तविकता पर आधारित, उदार, प्रगतिशील’’ व्याख्या करने की जरूरत है ताकि किसी अपराध के पीड़ित को इसका लाभ मिल सके। ।
अपने और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर के लिए फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा, ‘‘इसमें कोई शक नहीं कि सीआरपीसी की धारा 372 के प्रावधान को जीवंत करना चाहिए ताकि अपराध के पीड़ित को लाभ मिल सके।’’ सरकार के अलावा पीड़ित को भी आरोपी को बरी किए जाने के खिलाफ अपील करने के अधिकार को सही ठहराने के लिए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक प्रस्ताव का भी हवाला दिया। ।
पीठ में शामिल तीसरे न्यायाधीश दीपक गुप्ता ने बहुमत के फैसले से असहमति जताई। उन्होंने इस बिंदु पर असहमति जताई कि क्या पीड़ित अपीलीय अदालत से पूर्व अनुमति या मंजूरी के बगैर अपील दायर कर सकता है। उन्होंने इस बाबत आरोपी के अधिकार का भी जिक्र किया। ।
न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा, ‘‘मैं अपने विद्वान बंधु से इस बाबत सहमत नहीं हो सकता कि कोई पीड़ित सीआरपीसी की धारा 378 (3) के संदर्भ में पूर्व अनुमति लिए बगैर ही उच्च न्यायालय में अपील दायर कर सकता है।’’ ।
बहुमत से दिए गए फैसले में न्यायालय ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि संसद, न्यायपालिका और सिविल सोसाइटी ने किसी अपराध के पीड़ित के अधिकारों पर ‘‘मामूली तौर ध्यान’’ ही दिया और उनके लिए ज्यादा कदम उठाने की जरूरत है। ।
बगैर मंजूरी हासिल किए पीड़ितों के अपील करने के अधिकार से असहमति जताने वाले न्यायमूर्ति गुप्ता ने पीड़ितों की तकलीफ के मुद्दे पर बहुमत के फैसले से सहमति जताई। ।
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