Logo
April 24 2024 03:54 AM

दो राज्यों के बीच सीमा विवाद को लेकर हिंसक झड़प शर्मनाक है

Posted at: Jul 28 , 2021 by Dilersamachar 9885

दिलेर समाचार, अशोक भाटिया। पूर्वोत्तर के दो राज्यों असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद को लेकर जिस तरह की हिंसक झड़प सोमवार को हुई, वह न केवल इन दोनों राज्यों की सरकारों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए चिंता की बात है। आखिरकार गृह मंत्री अमित शाह के दखल देने के बाद स्थिति काबू में आई। उन्होंने दोनों राज्यों से इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने की अपील की है। साथ ही, इस बात को भी समझना होगा कि दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद बहुत पुराना है। इसकी जड़ें औपनिवेशिक शासन तक जाती हैं।तब मिजोरम असम का एक जिला था और उसे लुशाई हिल्स के रूप में जाना जाता था। विवाद के मूल में दो नोटिफिकेशन हैं, एक 1875 का जिसने लुशाई हिल्स को कछार के मैदान से अलग रेखांकित किया। दूसरा 1933 का, जो लुशाई हिल्स और मणिपुर के बीच सीमा निर्धारित करता है। मिजोरम का आग्रह है कि राज्य की सीमा तय करने के लिए 1933 के नोटिफिकेशन को आधार माना जाए जबकि असम 1875 के नोटिफिकेशन को आधार मानने की बात करता है। खासकर 1987 में मिजोरम के एक अलग राज्य बनने के बाद से यह विवाद और गहरा होता गया।लेकिन दूसरे राज्यों के बीच अलग-अलग मसलों को लेकर विवाद होते रहते हैं। कई राज्यों के बीच सीमा विवाद भी हैं। ये विवाद कभी-कभार गंभीर तनाव का कारण भी बन जाते हैं। लेकिन जिस तरह की हिंसा असम और मिजोरम के पुलिस बलों के बीच हुई है, वह किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं हो सकती। दोनों राज्य सरकारों को ही नहीं केंद्र सरकार की तमाम एजेंसियों को भी इस बात की जानकारी थी कि कछार और कोलासिब जिलों की सीमा पर तनाव के हालात बन रहे हैं।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में राज्यों के बीच सीमा विवाद और जल विवाद कोई नई बात नहीं, लेकिन जब हिंसा की लपटें उठती हैं तो लोग मरते हैं, घर जलते हैं। भारत और चीन के मध्य सीमा पर तनाव के बीच भारत के दो उत्तर पूर्वी राज्यों असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद भड़कने के दौरान उपद्रवियों द्वारा की गई फायरिंग में असम पुलिस के 5 जवानों की मौत और 80 लोगों का घायल होना काफी दुखद है। यह कौन सी कटुता है जिसने अपने ही देश के जवानों का खून कर दिया। असम पुलिस के जवानों की शहादत के बाद मिजोरम पुलिस या लोगों द्वारा जश्न मनाए जाने की खबरें और भी चिंता पैदा करने वाली हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत विस्व सरमा और मिजोरम के मुख्यमंत्री जोराम थांगा से बातचीत से सीमा विवाद का समाधान निकालने को कहा।भले ही अब  स्थिति नियंत्रण में है पर  सबसे बड़ा सवाल यही है कि उत्तर पूर्वी राज्यों के बीच सीमा को लेकर तनाव क्यों बढ़ जाता है। इसमें कोई संदेह  नहीं कि उत्तर पूर्वी राज्यों के लोग अपनी संस्कृति, भाषा और अपनी अलग पहचान बनाए रखने को लेकर काफी संवेदनशील हैं। लेकिन असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद के ऐतिहासिक और संवैधानिक पहलु हैं। अलग-अलग सोच और समझ को लेकर अक्सर राज्य आमने-सामने आ जाते हैं। असम संवैधानिक सीमा के पालन की बात करता है लेकिन असम से अलग हुए दूसरे राज्य मिजोरम, अरुणाचल, नगालैंड और मेघालय ऐतिहासिक सीमाओं के पालन की बात करते हैं। इस सीमा विवाद की शुरूआत ब्रिटिश काल में ही हो चुकी थी, जो आज तक हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा। अंग्रेजों ने 1824-26 में एंग्लो-बर्मी युद्ध में असम को पराजित कर पूर्वोत्तर भारत में प्रवेश किया था। युद्ध के बाद अंग्रेजी सरकार ने इस क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया और 1873 में ब्रिटिश सरकार ने बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन अधिनियम के रूप में अपनी पहली प्रशासनिक नीति लागू की थी। इस नीति का मकसद स्वदेश जनजातियों की संस्कृति और पहचान को सुरक्षित करना था। अंग्रेजी सरकार ने इसी नीति के माध्यम से पूर्वोत्तर के प्राकृतिक संसाधनों का जमकर दोहन किया।
अंग्रेजों की सरकार ने प्रशासनिक जरूरतों को देखते हुए अंदरूनी सीमाओं में बदलाव किया था। असम-मिजोरम सीमा विवाद अंग्रेजों के राज में जारी दो अधिसूचनाओं से उपजा। पहली अधिसूचना 1875 को जारी की गई, जिसने लुशाई हिल्स को कंधार के मैदानी इलाकों से अलग किया। दूसरी अधिसूचना 1933 को जारी की गई जिसने लुसाई हिस्स और मणिपुर के बीच सीमा तय की गई। मिजोरम का मानना है कि सीमा का निर्धारण 1895 की अधिसूचना के आधार पर होना चाहिए। मिजोरम के नेता 1933 की अधिसूचना को स्वीकार ही नहीं करते। असम और मेघालय में भी हिंसक झड़पें होती रही हैं। इसके पूर्व की  1979 और 1985 में हुई दो हिंसक घटनाओं में कम से कम सौ लोगों की मौत हुई थी। असम और अरुणाचल में वर्ष 1992 में हिंसक झड़प हुई थी। तभी से दोनों पक्ष एक-दूसरे पर अवैध अतिक्रमण और हिंसा करने के आरोप लगाते रहते हैं। अगस्त 2014 में असम के गोला घाट जिले उरियाधार में नगालैंड सीमा पर जबर्दस्त  हिंसा हुई थी जिसमें 11 से अधिक लोग मारे गए थे।

इनर लाइन परमिट भी असम के साथ कम से कम चार राज्यों के सीमा विवाद का मुख्य कारण है। अरुणाचल, नगालैंड, मिजोरम और मेघालय में इनर लाइन परमिट प्रणाली लागू है। इसके बिना बाहर का कोई भी व्यक्ति इन राज्यों में नहीं पहुंच सकता। लेकिन इन राज्यों के लोग बिना किसी रोक-टोक के असम में आवाजाही कर सकते हैं। मिजोरम-असम सीमा पर तनाव तो जून से ही जारी था, जब असम पुलिस ने गांव से करीब पांच किलोमीटर दूर स्थित एक इलाके पर कब्जा कर लिया था और अतिक्रमण हटा दिया था। तब अज्ञात लोगों ने आईआईडी से पुलिस पर हमला कर दिया था। असम का कहना है कि यह जमीन उसकी है जबकि मिजोरम का कहना है कि असम ने उनके लगभग 509 वर्गमील इलाके पर कब्जा किया हुआ है। असम में भाजपा सरकार है तो मिजोरम में मिजोरम नेशनल फ्रंट की सरकार है। सीमा विवाद में अपने ही देश के 5 पुलिस जवानों की शहादत होना कोई शुभ  संकेत
नहीं है। पूर्वोत्तर राज्यों के सीमा विवाद का स्थाई समाधान केन्द्र और राज्य सरकारों को निकालना ही होगा, अन्यथा लोगों का खून बहता ही रहेगा। इन राज्यों को अतीत की घटनाओं से मुक्ति पानी ही होगी। अब विवाद को उपयुक्त ढंग से हल करने की ठोस प्रक्रिया तो अविलंब शुरू होनी ही चाहिए, सोमवार को हुई झड़प की निष्पक्ष और विश्वसनीय जांच भी होनी चाहिए। यह पता लगाया जाना चाहिए कि इस हिंसा के दोषी कौन हैं। जिन लोगों ने अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह नहीं किया है, उनके खिलाफ समुचित कार्रवाई होनी चाहिए। इससे यह संदेश दिया जा सकेगा कि इस तरह की गलती आइंदे बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

 

ये भी पढ़े: एक ही इंसान को जल्द लग सकेगी दो अलग-अलग वैक्सीन

Related Articles

Popular Posts

Photo Gallery

Images for fb1
fb1

STAY CONNECTED