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क्या रही वजह GDP में गिरावट की ,नोटबंदी या जीएसटी?

Posted at: Sep 2 , 2017 by Dilersamachar 9789

दिलेर समाचार,बीते एक साल में आर्थिक मोर्चे पर लगातार नई चुनौतियों से जूझती भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार पटरी से उतरती नजर आ रही है।

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी की दर गिरकर 5.7 फीसदी हो गई, जो पिछले 3 साल का निम्नतम स्तर है। अर्थव्यवस्था में गिरावट के लिए GST को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं होगा।

देश का सबसे बड़ा कर सुधार माना जाने वाला GST देश में 1 जुलाई से लागू हुआ और अर्थव्यवस्था में इसका असर अगली तिमाही में सामने आ पाएगा। मौजूदा स्थिति के लिए नोटबंदी को सीधे-सीधे जिम्मेदार ठहराया जाना ही उचित होगा।

साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी केंद्र में बीजेपी की सरकार में यह सबसे कमजोर आर्थिक विकास दर है। चालू वित्त वर्ष की जून में खत्म हुई तिमाही में जीडीपी 5.7 फीसदी दर्ज की गई जो 2016-17 की चौथी तिमाही में 6.1 फीसदी थी।

साल 2015-16 तक भारत की विकास दर 7.6 फीसदी की गति से तेज़ आगे बढ़ते हुए दुनिया की अन्य आर्थिक शक्तियों के लिए चुनौती बन रही थी, लेकिन इसके बाद साल 2016-2017 में हुई 'आर्थिक सुधारों' ने ही अर्थव्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ कर रख दिया, जिसके संकेत पहले से ही मिलने लगे थे।

हालांकि सरकार इन संकेतों को जानबूझकर नजरअंदाज कर रही थी। 

नोटबंदी के झटके से उबरी भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर बीते वित्तीय वर्ष 2016-2017 में 7.1 फीसदी दर्ज की गई। जबकि इससे पहले यह आंकड़ा 7.9 प्रतिशत था। 

जीएसटी लागू होने के बाद जुलाई महीने में देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट दर्ज की गई थी। निक्केई इंडिया मैन्युफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) जुलाई में 47.9 पर रहा, जबकि यह जून माह में 50.9 पर था। पीएमआई मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की स्थिति को बयां करता है।

इंडेक्स में 50 से ऊपर का अंक आर्थिक गतिविधियों में तेजी की तरफ इशारा करता है जबकि 50 से कम का मतलब आर्थिक गतिविधियों में मंदी से होता है। जुलाई में दर्ज यह गिरावट साल 2009 के फरवरी महीने के बाद सबसे बड़ी गिरावट थी।

जीएसटी लागू होने से पहले ही जून महीने में देश के 8 बुनियादी उद्योगों जिन्हें कोर सेक्टर कहा जाता है, की विकास दर में तेज़ सालाना आधार पर तेज़ गिरावट दर्ज की गई थी।

जून महीने में कोर सेक्टर 0.4 फीसदी दर्ज की गई थी जोकि जून 2016 में 7 फीसदी थी। इन आठ बुनियादी सेक्टर में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफायनरी प्रॉडक्ट्स, फर्टिलाइजर, इस्पात, सीमेंट और बिजली उत्पादन शामिल है।

 

मंहगाई में दर्ज गिरावट हालांकि इस बीच थोड़ा सुकून देती है लेकिन इसे लेकर जानकार संतुष्ट नहीं है। बीते जून महीने में खुदरा महंगाई दर 1.54 फीसदी दर्ज की गई जो कि 1999 के बाद से सबसे कम थी। इससे पहले पिछले साल समान अवधि में देश की खुदरा महंगाई दर 5.77 फीसदी रही थी।

लेकिन जानकारों की मानें तो वो इसे आर्टिफिशियल कॉन्ट्रेक्शन करार देते हैं। जानकारों का मानना है कि नोटबंदी के बाद अभी तक लोग ख़रीदादारी के लिए तैयार नहीं है लिहाज़ा बिक्री में गिरावट की वजह से मंहगाई दर में कमी आई है।

जुलाई महीने में थोक महंगाई दर सूचकांक (WPI) 1.88 फीसदी दर्ज की गई थी। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक, 

संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में सरकाल ने माना कि चालू वित्त वर्ष में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर 6.75 फीसदी से 7.5 फीसदी तक होने का अनुमान है।

सरकार ने माना, नोटबंदी का ग्रोथ पर पड़ेगा असर 

संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने माना कि नवंबर में की गई नोटबंदी से अर्थव्यवस्था में ठहराव आया और इस साल मार्च में खत्म हुई चौथी तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में तेज गिरावट दर्ज की गई थी।

मार्च में ख़त्म वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में विकास दर सात फीसदी से घटकर 6.1 फीसदी पर आ गया, जबकि समूचे वित्त वर्ष 2016-17 में भी गिरावट दर्ज की गई है।

 

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