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भगवान शिव की तीसरी आंख तो देखी होगी क्या जानते है इसका रहस्य

Posted at: Sep 15 , 2017 by Dilersamachar 9955

दिलेर समाचार,पुराणों में भगवान शिव एक ऐसे देवता के रूप में उल्लेखित हैं जिनकी अराधाना देवता, दानव और मानव सब करते हैं। मिथकों में शिव की जो छवि पेश की जाती है उसमें एक तरफ तो वे सुखी दांपत्य जीवन जीते हैं तो दूसरी तरफ कैलाश पर्वत पर तपस्यारत कैलाश की ही तरह निश्चल योगी की।

पर शिव की छवि की सबसे विचित्र बात उनके माथे पर तीसरी आंख का होना है। आखिर शिव के माथे पर तीसरी आंख के होने का क्या निहितार्थ हैं? दरअसल शिव की तीसरी आंख कोई अतरिक्त अंग नहीं है बल्कि यह प्रतिक है उस दृष्टि की जो आत्मज्ञान के लिए आवश्यक है। शिव जैसे परम योगी के पास यह दृष्टि होना बिलकुल भी अचरज की बात नहीं है।

संसार को देखने के लिए दो आंखे प्रयाप्त है जो हर किसी के पास उपलब्ध है पर संसार और संसारिकता से पर  देखने के लिए तीसरी आंख का होना आवश्यक है और वह शिव जैसे योगी के पास ही हो सकती है। अर्थ यह है कि तीसरी आंख बाहर नहीं अपने भीतर देखने के लिए है। तीसरी आंख प्रतीक है बुद्धिमत्ता का- शुद्ध, विवेकशील प्रज्ञा का

सबसे पुराने वेद ऋग्वेद का सारतत्व है ‘प्रज्ञानाम ब्रह्म’ अर्थात ब्रह्म ही परम चेतना है। वहीं अथर्वेद कहता है ‘अयम आत्म ब्रह्मा’ अर्थात यह आत्म ही ब्रह्म है। सामवेद का कथन है ‘तत्वमसि’ अर्थात वह तुम हो जबकि यजुर्वेद का सार है ‘अहम ब्रहास्मि’ अर्थात मैं ब्रह्म हूं।शिव उसी परम ब्रह्म के प्रतीक हैं। शिव का अराधक ‘हर हर महादेव’ का उद्घोष करता है। जानकार बताते हैं कि ‘हर-हर महादेव’ का अर्थ है हर किसी में महादेव अर्थात शिव हैं। संस्कृत में ‘हर’ का अर्थ नष्ट करना भी होता है यानी ‘हर- हर महादेव’ का एक अर्थ यह भी हुआ कि शिव का अराधक शिव की तरह ही अपने भीतर के सारे दोषों को नष्ट करते हुए परम चेतना को प्राप्त करने का प्रयत्न करे। ऐसा ज्ञान चक्षु यानी तीसरी आंख के खुलने पर ही संभव है।

साधारण भक्त ईश्वर को खुद से अलग समझता है। वह कर्मकांड के माध्यम से ईश्वर को प्रसन्न कर अपने लिए संसारिक सुखों की अपेक्षा करता है पर ज्ञानी भक्त अपने आराध्य में अपना आदर्श देखता है। उसकी आराधना का लक्ष्य अध्यात्मिक उत्थान होता है। वेदों के अनुसार भी उपासना का यही लक्ष्य होना चाहिए।

शिव की तीसरी आंख के संदर्भ में जिस एक कथा का सर्वाधिक जिक्र होता है वह है कामदेव को शिव द्वारा अपनी तीसरी आंख से भष्म कर देने की कथा। कामदेव यानी प्रणय के देवता ने पापवृत्ति द्वारा भगवान शिव को लुभाने और प्रभावित करने की कोशिश कर रहा था। शिव ने अपनी तीसरी आंख खोली और उससे निकली दिव्य अग्नी से कामदेव जल कर भष्म हो गया। सच्चाई यह है कि यह कथा प्रतिकात्मक है जो यह दर्शाती है कि कामदेव हर मनुष्य के भीतर वास करता है पर यदि मनुष्य का विवेक और प्रज्ञा जागृत हो तो वह अपने भीतर उठ रहे अवांछित काम के उत्तेजना को रोक सकता है और उसे नष्ट कर सकता हैं।

भारतीय संस्कृति में अनेक देवताओं का वर्णन मिलता है। हर देवता का चरित्र, रंग-रूप और वेश-भूषा एक दूसरे से भिन्न। यहां एक उपासक के पास यह सुविधा है कि वह अपने व्यक्तिगत पसंद और क्षमता के अनुसार उस देवता का चुनाव करे जिनका चरित्र उसे सर्वाधिक आकर्षित करता है और जिसे वह आत्मसात करना चाहता है। दरअसल संस्कृत शब्द ‘उपासना’ का अर्थ ही है ‘पास बैठना’ यानी अपने आराध्य के निकट से निकट पहुंचना। इस रूप में देखा जाए तो शिव की तीसरी आंख उनके उपासकों के लिए आमंत्रण है कि वे भी अपनी तीसरी आंख यानी आत्मज्ञान को प्राप्त करे।

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