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जहां नहीं पहुंच पाया दुनिया का कोई देश,वहां अपनी पहचान बनाएगा भारत

Posted at: Jul 13 , 2019 by Dilersamachar 10186

दिलेर समाचार, नई दिल्ली। भारत का चंद्रयान -2 (Chandrayaan-2) मिशन श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपण होने के बाद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के करीब लैंडिग करेगा. इस जगह पर इससे पहले किसी भी देश का कोई यान नहीं पहुंचा है. विक्रम लैंडर के अलग हो जाने के बाद, यह एक ऐसे क्षेत्र की ओर बढ़ेगा जिसके बारे में अब तक बहुत कम खोजबीन हुई है. ज्यादातर चंद्रयानों की लैंडिंग उत्तरी गोलार्ध में या भूमध्यरेखीय क्षेत्र में हुई हैं. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की ओर से एक अधिकारी ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के करीब स्थान चुनने के बारे में बताया "... इस बार हम एक ऐसे स्थान पर जा रहे हैं जहां पहले कोई नहीं गया है."

ISRO प्रमुख के. सिवन ने कहा, "विक्रम का 15 मिनट का अंतिम तौर पर उतरना सबसे ज़्यादा डराने वाले पल होंगे, क्योंकि हमने कभी भी इतने जटिल मिशन पर काम नहीं किया है..."

लैंडिंग के बाद, रोवर चांद की मिट्टी का रासायनिक विश्लेषण करेगा. वहीं लैंडर चंद्रमा की झीलों को मापेगा और अन्य चीजों के अलावा लूनर क्रस्ट में खुदाई करेगा.

2009 में चंद्रयान -1 के बाद चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की मौजूदगी का पता लगाने के बाद से भारत ने भारत ने चंद्रमा की सतह पर पानी की खोज जारी रखी है.  चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी से ही भविष्य में यहां मनुष्य के रहने की संभावना बन सकती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 तक मानव को अंतरिक्ष में भेजने की बात कही है. अधिकतर विशेषज्ञों का कहना है कि इस मिशन से मिलने वाला जियो-स्ट्रैटेजिक फायदा ज़्यादा नहीं है, लेकिन भारत का कम खर्च वाला यह मॉडल कमर्शियल उपग्रहों और ऑरबिटिंग डील हासिल कर पाएगा.

बता दें 'चंद्रयान 2' का ऑरबिटर, लैंडर और रोवर लगभग पूरी तरह भारत में ही डिज़ाइन किए गए और बनाए गए हैं, और वह 2.4 टन वज़न वाले ऑरबिटर को ले जाने के लिए अपने सबसे ताकतवर रॉकेट लॉन्चर - GSLV Mk III - का इस्तेमाल करेगा. ऑरबिटर की मिशन लाइफ लगभग एक साल है.

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