दिलेर समाचार, तराकेश सैन। कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर मान-सम्मान की जंग लड़ने का एलान किया है। गुजरात चुनाव के दौरान मणिशंकर अय्यर के घर पूर्व पाकिस्तानी मंत्राी और मनमोहन सिंह के बीच हुई जीमनवार का विषय उठाने को भी कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्राी का अपमान बताते हुए जंग छेड़ी थी हालांकि यह अलग बात है कि दो-तीन दिनों बाद ही मनमोहन जंग-ए-मैदान में अकेले नजर आए। कांग्रेस ने अब वैसी ही जंग का ऐलान कांग्रेस पार्टी ने राज्यसभा सदस्य रेणुका चौधरी को लेकर फिर से कर दिया है। पार्टी ने मांग की है कि प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी को पूर्व केंद्रीय मंत्राी रेणुका चौधरी से माफी मांगनी चाहिए।
असल में मोदी ने राज्यसभा में 7 फरवरी को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर अपनी बात रखते हुए विपक्ष पर निशाना साधा। एक समय ऐसा आया जब माहौल गर्म भी हो गया लेकिन मोदी ने उस माहौल को भी तंज मार कर ठंडा कर दिया। प्रधानमंत्राी की बात पर कांग्रेस की रेणुका चौधरी ने बहुत जोर से ठहाका लगाया। इस पर सभापति वेंकैया नायडू गुस्सा हो गए लेकिन प्रधानमंत्राी ने यह कह कर सबको हंसाया ‘सभापति जी, आप रेणुका
जी को कुछ नहीं कहें। रामायण सीरियल के बाद पहली बार ऐसी हंसी सुनी
है।’
रोचक बात है कि मोदी ने रामायण के किसी पात्रा का नाम नहीं लिया परंतु कांग्रेस ने स्वतः ही इसका अर्थ शूर्पनखा या रावण से लगा लिया। रही सही कसर सोशल मीडिया ने पूरी कर दी जिसमें रेणुका चौधरी व रावण की बहन शूर्पनखा को मिला कर प्रस्तुत किया जाने लगा। केंद्रीय मंत्राी किरण रिजिजू ने भी सोशल मीडिया में इसी तरह का विवादित फोटो डाल दिया जिससे कांग्रेस को हमला करने का अवसर मिल गया।
प्रश्न उठता है कि जब मोदी ने रामायण के किसी पात्रा का नाम नहीं लिया तो कांग्रेस किस आधार पर उस हंसी की उदाहरण का अर्थ शूर्पनखा या रावण की हंसी से लगा रही है। रामायण में अनेकों पात्रा हैं जो समय-समय पर हंसे व मुस्कुराए। क्या कांग्रेस खुद ही अपनी नेता को शूर्पनखा या रावण नहीं बता रही है? कभी जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स बताना तो कभी पकौड़ा राजनीति करना और अब रेणुका चौधरी के बहाने महिला सम्मान की बातें कहीं न कहीं इशारा कर रही हैं कि कांग्रेस पार्टी के पास गंभीर राजनीतिक मुद्दों की कमी है।
जिसने रामायण पढ़ी या रामलीला व टीवी पर देखी होगी, जानता है कि बाल रूप में राम व चार पुत्रों को पा कर तीनों माताएं व राजा दशरथ कितने मुस्कुराए। राम की बाल लीलाओं पर दशरथ कितनी ही बार ठहाके लगाते हैं। मिथिला की वाटिका में राम-सीता मिलन के समय दोनों मंद-मुंद मुस्कुराए और मन ही मन परस्पर चाहने भी लगे। राम को देख शबरी किस कदर अपने आप को भुला बैठी। इस तरह और भी अनेकों अवसर आए जब रामायण के चरित्रों को मुस्कुराने व ठहाके लगाने का अवसर मिला लेकिन क्या कारण है कि कांग्रेस को केवल शूर्पनखा और रावण के ठहाके ही याद रहे। लगता है कि असल में कांग्रेस की अंतरात्मा भी मान रही है कि संसद में रेणुका चौधरी का व्यवहार सीता और शबरी की तरह शालीन नहीं था। यही कारण है कि सभापति वेकैंया नायडू को उन्हें सख्ती से टोकना पड़ा।
मोदी के इस बयान को महिलाओं का अपमान बताने वाली रेणुका चौधरी ने इसके खिलाफ संसद में विशेषाधिकार लाने की बात कही है परंतु वे व उनकी पार्टी भूल रही हैं कि समाज में सम्मान पाने के लिए खुद का व्यवहार भी शालीन होना चाहिए। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान लोकसभा में प्रधानमंत्राी के अभिभाषण के दौरान शुरू से अंत तक हल्ला कर कांग्रेस ने आखिर किस संसदीय मर्यादा का पालन किया? क्या संसद का नेता प्रधानमंत्राी किसी दल का नेता होता है? क्या कांग्रेस का व्यवहार संसद की राजनीति को सड़क की राजनीति में परिवर्तित करता नहीं दिख रहा?
प्रताडि़त महिला होने का दिखावा कर सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रही कांग्रेस नेत्राी रेणुका चौधरी का खुद का रिकार्ड देखा जाए तो बहुत से अवसर ऐसे आए हैं जब वे बोलने के मामले में विवादों में रहीं। उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत जिस टीडीपी से हुई लेकिन साल 1998 का दौर था जब रेणुका को किनारे कर दिया गया। इस दौरान उनके दो बयानों ने काफी सुर्खियां बटोरीं। उन्होंने चंद्रबाबू नायडू को बस स्टैंड के पास खड़ा जेबकतरा बताया। इस बयान के कुछ समय पहले ही रेणुका ने राज्यसभा सांसद जयप्रदा को बिंबो कहा था जिसका एक अर्थ कमअक्ल खूबसूरत औरत भी है।
साल 2011 में रेणुका ने कहा था, ‘मैं तो अपने पति को धोती में देखना चाहती हूं लेकिन वो धोती पहनते नहीं। अब चूंकि मैं स्वास्थ्य मंत्राी रह चुकी हूं तो मेरे पास ये तथ्य हैं कि धोती से प्रजनन क्षमता बढ़ती है।’ रेणुका के इस बयान पर जमकर हंगामा हुआ था। वर्णनीय है कि रेणुका यूपीए सरकार में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्राी भी रह चुकी है। साल 2015 में एयर इंडिया की एक फ्लाइट केवल इस कारण समय पर उड़ान नहीं भर पाई क्योंकि रेणुका खरीदारी में व्यस्त थीं।
असल में सरकार के खिलाफ हर आवश्यक व अनावश्यक छोटे-बड़े विषय को जीवन मरण का प्रश्न बनाने वाली कांग्रेस केवल विरोध के लिए विरोध व संसद ठप्प करने को ही विपक्ष का काम मान बैठी है। यही कारण है कि वह विपक्ष के रूप में भी असफल दिखने लगी है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस के दौरान विभिन्न सरकारी योजनाओं पर अपनी वैकल्पिक योजनाएं, सरकारी योजनाओं का तथ्यात्मक खामियां निकालने, नए सुझाव, सरकार की कमियां पेश कर वह सरकार को सफलतापूर्वक घेर सकती थी परंतु शोर शराबे के चलते कांग्रेस ने यह मौका गंवा दिया। कीचड़ फेंक राजनीति करने वाले दलों को स्मरण रखना चाहिए कि ऐसा करते समय हाथ उनके भी मलिन होते हैं और कुछ छींटे तो उनके अपने दामन पर भी पड़ते ही हैं।
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