दिलेर समाचार, अहमदाबाद। एक ऑटो चालक ने गुजरात हाई कोर्ट से अपील की है कि उसे नास्तिक होने का दर्जा दिया जाए। नियम के अनुसार धर्म परिवर्तन के लिए जिला कलेक्टर की इजाजत जरूरी होती है, जो ऑटो चालक राजवीर उपाध्याय को नहीं मिली है। कलेक्टर की इजाजत नहीं मिलने के बाद राजवीर ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इस मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सवाल किया है। कोर्ट ने पूछा है कि एक नागरिक को नास्तिक होने का दर्जा क्यों नहीं दिया जा सकता।
दरअसल, अहमदाबाद का एक ऑटो ड्राइवर लंबे समय से नास्तिक होने का दर्जा मांग रहा है। ऑटो ड्राइवर राजवीर उपाध्याय ने जुलाई 2018 में उस वक्त हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उपाध्याय के अनुसार अहमदाबाद जिला कलेक्टर ने धर्म-परिवर्तन निरोधी कानूनी के तहत हिंदू धर्म से नास्तिक किए जाने की उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट जाने से दो साल पहले उपाध्याय ने कलेक्टर के सामने आवेदन दिया था। उपाध्याय के आवेदन पर दो साल तक विचार करने के बाद 16 मई 2017 को कलेक्टर ने उनका आवेदन खारिज कर दिया था।
इस मामले में कलेक्टर का कहना है कि धर्म-परिवर्तन निरोधी कानून के तहत एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित होने का प्रावधान तो है, लेकिन नास्तिक होने का नहीं। अब हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस एएस दवे और जस्टिस बीरे वैष्णव वाली पीठ ने राज्य सरकार और अहमदाबाद के जिला कलेक्टर को उपाध्याय की याचिका के जवाब में नोटिस जारी किया है। उपाध्याय ने कोर्ट को बताया था कि उनका जन्म एक हिंदू गरोडा ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इस वजह से उन्होंने जातिगत भेदभाव झेला है और वह धर्म छोड़ना चाहते हैं।
उपाध्याय ने हाईकोर्ट से यह अपील की है कि राज्य सरकार को धर्म की आजादी कानूनी में संशोधन करने के निर्देश दिए जाएं। बता दें कि, साल 2003 में गुजरात सरकार ने एक कानून लाकर धर्म बदलने के लिए राज्य अधिकारियों ने इजाजत लेना जरूरी कर दिया था। हाई कोर्ट ने कानूनी सेवाएं देने वाली अथॉरिटी से उपाध्याय को केस लड़ने में मदद करने के लिए कहा है।
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