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क्यों होती है जिंदगी को खत्म करने की जंग

Posted at: Jul 1 , 2020 by Dilersamachar 9738

श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

बिहार के पटना में जन्मे सुशांत राजपूत का फिल्मी करियर काफी अच्छा चल रहा था। अपने करियर में उन्होंने एमएस धोनी जैसी हिट फिल्म दी थी। फिल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले सुशांत थिएटर और टेलीविजन धारावाहिकों में लोकप्रिय चेहरा बन चुके थे। अवसाद के कारण उनके द्वारा आत्महत्या से सभी अचंभित हंै।

जाने माने चिंतक यशपाल सिंह के शब्दों में,  उन्होंने चांद पर फ्लैट खरीद लिया। टीवी पर आए तो छा गए, बड़े पर्दे पर महज सात साल में वो हासिल किया जो लोग दशकों तक नहीं कर पाते। क्या नहीं था सुशांत सिंह राजपूत के पास। मायानगरी में एकाकीपन का कोई साथी नहीं, लाक डाउन के चलते अटकती फिल्मों की रिलीज, रिश्तों की आधी अधूरी बनावट से उपजा दर्द और उसके बाद छह माह से अवसाद के काले साए। अंजाम जो हुआ, वह बेहद दर्दनाक। अपने किरदारों में जिंदगी की सीख देने वाला एक उदीयमान सितारा अपने हाथों जिदंगी की लकीरें मिटा बैठा।

कोई ऐसा कदम भूख से बेहाल होकर उठाए, कर्ज से उत्पीड़ित अपनी जिंदगी से हार मान ले तो सहजता लगती है परंतु जब कोई धनदौलत से परिपूर्ण, यश कीर्ति से लबरेज व्यक्ति ऐसा कदम उठाए तो सवाल उठने स्वाभाविक हंै कि ऐसा कम से कम उनके द्वारा क्यांे किया गया?

क्यों उन्होंने भरी जवानी में अपने कैरियर को उड़ान देने के बजाए,जीवन की असफलताओं को सफलता में बदलने के लिए धैर्य को धारण करने के बजाए जिंदगी से हार मानना ही बेहतर समझा? दरअसल यह एक ऐसा अवसाद है जो मनुष्य को सुनहरी जिंदगी से मौत के खौफनाक अंधेरे की तरफ ले जाता है जिसका कारण जरूरत से ज्यादा पाने की चाह, जीवन मे अधीरता अर्थात धैर्य की कमी, हार स्वीकार न करने की बेतुकी जिद्द, प्यार में असफलता को ही जीवन की अंतिम असफलता का वहम जैसे अनेक कारण अच्छे खासे इंसान की जिंदगी में अंधेरा कर देते हैं। काश! ऐसे लोग ‘अध्यात्म‘ की तरफ जरा भी देख लेते, आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए श्रीमद्भागवत गीता जैसे ग्रन्थों से जीवन जीने की कला सीख लेते।

अपनी सोच को धन दौलत भोग विलास से हटाकर थोड़ा सा अध्यात्म की ओर मोड़ लें तो  संतोष और धैर्य स्वतः प्राप्त हो जाएंगे। धन के लालच में प्रतिस्पर्धा, ईष्र्या, द्वेष जैसे विकार  आध्यात्मिक ज्ञान से स्वतः समाप्त हो जाते हंै। अहंकार का कचरा भी खुद ब खुद खत्म हो जाता है।वास्तविकता यह है कि जब हम, ‘वह मुझसे कम योग्य है, फिर भी उसे मुझसे ज्यादा मिल गया।‘ इसी प्रकार, ‘पीठ पीछे वह मुझे बुरा भला कहता है। सब मतलब के यार हैं, कोई मेरा सच्चा दोस्त नहीं। वह मेरा दुश्मन है, मुझे उसे मजा चखाना है।‘ जैसे नकारात्मक विचार ही हमंे अवसाद की ओर धकेल देते हैं।

अगर ये विचार मन में नहीं आते तो आप सकारात्मक सोच के धनी हैं। अच्छा यही होगा कि ये विचार मन में आते ही उन्हें अपने से दूर कर दें अर्थात मन से परे हटा दंे। वस्तुतः जिंदगी का उद्देश्य है  खुश रहना। स्वयं के बजाए सामने वाले के गुणों की प्रशंसा करना। फिर जो शांति व सुख आपको मिलेगा, वह ही सुखद जिंदगी का आधार है।

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