दिलेर समाचार,आयुर्वेद कहता है कि खाना पकाते समय उसका संपर्क हवा और सूर्य के प्रकाश से हो तभी भोजल ज्यादा फायदेमंद तैयार होता है। स्टील आदि के बर्तनों में खाना पकाते वक्त ऐसी स्थितियां नहीं बन पातीं। ऐसा सिर्फ मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से संभव हो सकता है। एल्युमिनियम आदि के बर्तनों में पकने वाले भोजन से टीबी, डायबिटीज, अस्थमा और पैरालिसिस जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा आयुर्वेद का मानना है कि भोजन को हमेशा धीरे-धीरे पकना चाहिए। इससे न सिर्फ भोजन स्वादिष्ट बनता है बल्कि पोषक तत्वों के ठीक से पकने की वजह से यह काफी पौष्टिक भी बनता है। जल्दी पकने वाले भोजन स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी नुकसानदेह होते हैं।
इंसान के शरीर में 18 विशेष प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। ये पोषक तत्व हमें मिट्टी से ही प्राप्त होते हैं। एल्युमिनियम के बर्तन में खाना पकाने से भोजन के तकरीबन 87 प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, जबकि पीतल के बर्तन में खाना पकाने से केवल 7 प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं। धातु के बर्तनों में तांबे के बर्तन में सबसे कम 3 प्रतिशत पोषक तत्व ही नष्ट होते हैं। मिट्टी के बर्तन अकेले ऐसे बर्तन होते हैं जिनमें भोजन पकाने पर शत प्रतिशत पोषक तत्व सुरक्षित होते हैं। मिट्टी के बर्तन में पकने वाले भोजन न सिर्फ स्वास्थ्यप्रद होते हैं बल्कि खाने में भी काफी स्वादिष्ट और सोंधी खुश्बू वाले होते हैं।
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