दिलेर समाचार, नई दिल्ली. प्रधानमंत्री अब तक स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिल्ली के लाल किले (Red Fort Delhi) से देश को संबोधित करते आए हैं. लेकिन गुरुवार, 21 अप्रैल की शाम को पहली बार इस परंपरा में अहम मोड़ आ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) इस दिन गुरु तेगबहादुर (सिख पंथ के 9वें गुरु) जयंती पर लाल किले से अपना संबोधन देने वाले हैं. ऐसे में, किसी के मन में भी सवाल हो सकते हैं. जैसे- आखिर ऐसा क्या हुआ है कि प्रधानमंत्री ने लाल किले के उद्बोधन से जुड़ी परंपरा में नया सिलसिला जोड़ा? और इसकी पृष्ठभूमि (Background) में क्या-कुछ हो सकता है?, आदि जानते हैं इनके जवाब बस, 4-पहलू (The 4-Aspects) में.
प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार, लाल किले पर गुरु तेग बहादुर से जुड़े कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (DSGPC) के सहयोग से हो रहा है. भारत सरकार कार्यक्रम में सहभागी है. दरअसल, 2021 में गुरु तेगबहादुर (Guru Teg Bahadur) के जन्म (21 अप्रैल 1621 में) को 400 साल पूरे हुए हैं. इसी मौके से जुड़े कार्यक्रमों का सिलसिला गुरुवार को होने वाले कार्यक्रम तक आ पहुंचा है. लाल किले पर यह आयोजन रात करीब 9.15 पर होगा. इसमें प्रधानमंत्री गुरु तेग बहादुर की याद में एक सिक्का और डाक टिकट जारी करेंगे. साथ ही उपस्थित जनसमूह को संबोधित करेंगे. हालांकि यह संबोधन स्वतंत्रता दिवस की तरह लाल किले की प्राचीर से नहीं होगा. लेकिन प्रसारित देशभर में किया जाएगा.
गुरु तेग बहादुर की जयंती से जुड़े समारोह के लिए लाल किले का चुनाव करने के पीछे खास वजहें हैं. दरअसल, यह लाल किला ही वह जगह है, जहां से हिंदुस्तान के तत्कालीन मुगल शासक औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर का सिर धड़ से उतार देने का हुक्म सुनाया था. उनका गुनाह क्या था? वे मुगलों के अमानवीय अत्याचारों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्त्व करते थे. तिस पर, उन्हें जब गिरफ्तार किया गया और इस्लाम कुबूल कर लेने की शर्त में जान बख्श देने का विकल्प दिया गया, तो उन्होंने वह भी ठुकरा दिया. गुस्साए बादशाह ने उन्हीं के सामने उनके साथी भाई मती दास को टुकड़ों में कटवा दिया. दूसरे साथी भाई दयाल दास को उबलते पानी के कड़ाहे में फिंकवा दिया. जबकि तीसरे साथी भाई सती दास को जिंदा जला दिया गया. इतने पर भी जब गुरु तेगबहादुर ने औरंगजेब की बात नहीं मानी तो चांदनी चौक (Chandni Chowk) पर सरेआम उनका सिर धड़ से अलग करवा दिया. वहां आजकल गुरुद्वारा शीशगंज साहिब (Gurudwara Shish Ganj Sahib) स्थापित है. जानकारों की मानें तो कार्यक्रम के लिए लालकिले के चुनाव की एक और वजह हो सकती है, पिछले साल के एक मामले से जुड़ी हुई. बीते साल 26 जनवरी को लाल किला ही वह जगह थी, जहां कुछ उत्पाती सिख युवकों ने उपद्रव और हिंसा (Lal Kila Violence) की थी. इससे सिख समुदाय की छवि और प्रतिष्ठा को पूरी दुनिया में धक्का लगा था. ऐसे में, गुरु तेगबहादुर से जुड़ा यह कार्यक्रम उस दाग को साफ करने और प्रतिष्ठा की फिर स्थापना का सांकेतिक-माध्यम बन सकता है.
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