दिलेर समाचार, नई दिल्ली। शोपियां फायरिंग मामले में जम्मू कश्मीर और केंद्र आमने सामने आ गई है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान जम्मू कश्मीर सरकार ने कहा कि एफआईआर पर जांच अनिश्चितकाल तक नहीं रोकी जा सकती है. वहीं केंद्र ने कहा कि राज्य को सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का अधिकार नहीं है. मेजर आदित्य व अन्य सेनाकर्मियों के खिलाफ एफआईआर पर जांच पर रोक जारी रहेगी. सुप्रीम कोर्ट अब ये तय करेगा कि क्या एएफएसए की धारा सात के तहत सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले केंद्र की इजाजत जरूरी है या नहीं. इस मामले की अगली सुनवाई में ये भी तय होगा कि कर्मवीर सिंह की याचिका सुनवाई योग्य है या नही? सुप्रीम कोर्ट इस मामले में 30 जुलाई को सुनवाई होगी.
जम्मू-कश्मीर सरकार की तरफ से कहा गया कि इस मामले में याचिकाकर्ता को राहत मिली हुई है. इस मामले में सुनवाई को न टाला जाए हम बहस करने के लिए तैयार है. जम्मू-कश्मीर सरकार की तरफ से कहा गया कि याचिकाकर्ता का इस मामले में कोई लोकस नहीं है. जम्मू-कश्मीर सरकार ने सभी राज्य सरकारों को पार्टी बनाने की मांग की, जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया. इससे पहले जम्मू-कश्मीर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर कर कहा है कि सेना के जवानों के खिलाफ जांच और एफआईआर दर्ज करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है.
वहीं जम्मू कश्मीर सरकार ने हलफनामा दाखिल कर कहा कि सीआरपीसी में ये प्रावधान है कि अपराध की शिकायत मिलने पर एफआईआर दर्ज की जाए. इसके लिए किसी भी व्यक्ति या वर्ग को छूट नहीं दी जा सकती. ये FIR संविधान पीठ के उस फैसले के मुताबिक दर्ज की गई जिसमें कहा गया था कि कोई भी संज्ञेनीय शिकायत आने पर एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है. केंद्र का ये रवैया संविधान पीठ के फैसले के खिलाफ है.
इस मामले में कोई भी फैसला करने से पहले कोर्ट सभी राज्यों से बात करे क्योंकि कानून व्यवस्था राज्यों की जिम्मेदारी है. अगर केंद्र की मांग मानी जाती है तो ये राज्यों में पुलिस के वैधानिक अधिकार पर असर डालेगी. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि शोपियां फायरिंग केस मामले में 16 जुलाई तक जम्मू-कश्मीर पुलिस की जांच पर रोक रहेगी. जम्मू-कश्मीर सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए वक्त मांगा था. इससे पहसे सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कि सेना के मेजर आदित्य व अन्य के खिलाफ दर्ज एफआईआर पर फिलहाल जांच पर रोक लगा दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में राज्य पुलिस फिलहाल जांच नहीं करेगी. चीफ जस्टिस ने कहा था कि ये मामला सेना के अधिकारी का है किसी सामान्य अपराधी का नहीं. इससे पहले केंद्र सरकार सेना के मेजर आदित्य के समर्थन में दाखिल की अर्जी दाखिल की थी. केंद्र सरकार ने कहा कि जम्मू कश्मीर सरकार के पास ये अधिकार नही कि वो बिना केंद्र सरकार की अनुमति के सेना के अफसर खिलाफ FIR दर्ज कर सके. केंद्र सरकार ने कहा कि इस विषय पर गहन विचार किया गया और ये पाया कि केंद्र सरकार की इजाजत के बिना राज्य सरकार इस मामले में कोई भी आपराधिक करवाई सेना के अफसर के खिलाफ नहीं कर सकती. इस मामले में राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को कोई इजाजत नहीं ली है. केंद्र सरकार ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी और देश विरोधी ताकतें कानून का उल्लंघन कर रही है इससे सुरक्षा व्यस्था प्रभावित होती है.
ऐसे लोगों के पास आधुनिक हथियार भी है और उन्हें सीमा पार के देशों का समर्थन भी है, जो पुलिस और सुरक्षा बल उनका विरोध करते है उन पर हमले हो रहे है. देश की हिट में देश की सुरक्षा और एकता को बनाने रखने के लिए सेना को सुरक्षा देने वाले AFPSA के धारा 7 की व्याख्या करनी जरूरी है. इसकी जांच आगे नही होनी चाहिए और FIR की आगे की करवाई पर रोक लगनी चाहिए. वहीं जम्मू कश्मीर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा मेजर आदित्य का नाम FIR में बतौर आरोपी नाम नहीं है. सिर्फ ये लिखा गया है कि वो बटालियन को लीड कर कर रहे थे. कोर्ट ने पूछा था कि क्या नाम लिया जाएगा? राज्य सरकार ने कहा कि ये जांच पर निर्भर करता है. कोर्ट को मामले की जांच जारी रखने की इजाजत देनी चाहिए. वहीं सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्य सरकार इस मामले में आमने सामने दिखे. AG के के वेणुगोपाल ने कहा था कि एक्ट 7 के तहत राज्य सरकार इस तरह FIR दर्ज नहीं कर सकती. इसके लिए केंद्र की अनुमति लेना जरूरी है वहीं राज्य सरकार ने इसका विरोध किया. कहा कि FIR दर्ज करते वक्त इसकी जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट अब ये तय करेगा कि ये FIR वैध है या नहीं.
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