दिलेर समाचार, नई दिल्ली। तमाम सरकारी योजनाओं में आधार की अनिवार्यता को लेकर सवालों और संदेहों का दौर जारी है. विरोध करने वालों का डर ये है कि इसके ज़रिए किसी की भी निजता यानी प्राइवेसी ख़तरे में पड़ सकती है. कुछ ऐसे वाकये लगातार सामने भी आते रहे हैं. आंध्रप्रदेश हाउसिंग कॉरपोरेशन की वेबसाइट का मामला ताज़ा है. इस वेबसाइट से राज्य के क़रीब सवा लाख लोगों के आधार नंबर और उससे जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक हो गईं. राज्य सरकार ने इस मामले में मीडिया रिपोर्ट को ग़लत ठहराने की कोशिश की लेकिन साथ ही जांच की बात भी कह दी.
एक क्लिक और मिनटों के अंदर आप आंध्रप्रदेश के 51 लाख, 66 हज़ार 698 लोगों के बैंक एकाउंट नंबर और उनकी जाति धर्म के आंकड़ों तक पहुंच सकते हैं. आंध्रप्रदेश स्टेट हाउसिंग कॉर्पोरेशन ने ये सारा ब्योरा आधार से जोड़ा हुआ है. यही नहीं राज्य के 1.3 लाख लोगों के आधार नंबर उसने अपनी वेबसाइट के ज़रिए सार्वजनिक भी कर दिए हैं. मंगलवार को जब हैदराबाद स्थित साइबर सिक्योरिटी रिसर्चर श्रीनिवास कोडाली की नज़र इस डेटा लीक पर पड़ी तो उन्होंने कॉर्पोरेशन को इसकी जानकारी दी, तब जाकर अधिकारियों ने आधार नंबरों को छुपाने की कोशिश की.
नीति विशेषज्ञ ने कहा कि इस डेटा लीक का ज़्यादा ख़तरनाक पहलू है इसका सर्च फीचर है, जिससे धर्म और जाति के आधार पर लोगों की लिस्ट तैयार की जा सकती है और जियो टैगिंग की वजह से उनके रहने की जगहों का भी पता लग सकता है. जानकारों का कहना है कि इस तरह का डेटा लीक अल्पसंख्यक समुदायों के लिए काफ़ी ख़तरनाक साबित हो सकता है.
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