दिलेर समाचार, पटना: बिहार के बक्सर में पिछले शुक्रवार को नंदगांव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके क़ाफ़िले पर ग्रामीणों द्वारा पथरबाज़ी को घटना पर राजनीति तेज़ हो गई हैं. हर दिन किसी ना किसी राजनीतिक दल का एक प्रतिनिधि उस गांव और ख़ासकर उस टोले का निरीक्षण ज़रूर करता है जहां ये घटना घटित हुई थी.
अभी तक की शुरुआती जांच में दो बातें साफ़ हैं. उस गांव में प्रशासन के कैम्प करने के बावजूद स्थानीय लोगों में कुछ मुद्दों को सुलझाने या उनके अंदर के आक्रोश का आकलन करने में ज़िला अधिकारी से लेकर ग्रामीण स्तर के अधिकारी नाकामयाब रहे. दूसरा हमला और उस जगह के पिछड़ेपन से कोई लेना-देना नहीं है. इसका आधार यह है कि गांव के जिस वार्ड में ये हमला हुआ वहां सरकार के तीन निश्चय जैसे बिजली, हर घर नल का जल और नाली गली पर काम या तो संपन्न हो चुका था या पूरा होने को था. चाहे सरकार की जांच हो या कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल, इसमें एक बात सामान्य है कि हमला या पत्थरबाज़ी एक साज़िश का परिणाम है. इसके मास्टरमाइंड गांव के बाहर के लोग हैं जिन्होंने ग्रामीणों ख़ासकर महिलाओं को मोहरा बनाया है. वहीं राजद इसे गांववालों के बीच सरकार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति ग़ुस्से का प्रतिक्रिया मान रही है.
लेकिन शायद पहली बार होगा जब मुख्यमंत्री पर हमला हुआ हो और उस घटना की निंदा करने से भी राजद बची है. अभी तक इस घटना के पूर्व राजद नेता भी मानते रहे हैं कि पार्टी सुप्रीमो लालू यादव भले नीतीश कुमार के साथ घुरविरोधी रहे हों, लेकिन हिंसा का कभी समर्थन नहीं किया. लेकिन विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे पर बयान तो कई दिए. ट्वीट भी ख़ूब किया लेकिन निंदा नहीं की. हां, उन्होंने महादलित कार्ड ज़रूर खेला कि अगर महादलित समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई होती है तो उनकी पार्टी चुप नहीं बैठी रहेगी. एक विपक्ष का नेता जो हर ऐसी घटना के बाद जाकर स्थिति का ख़ुद जायज़ा लेता है उस परिपाटी को भी तेजस्वी ने फ़िलहाल तिलांजलि दे दी है.
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