दिलेर समाचार, धरती के अलावा हमारी आकाशगंगा में और भी जगह जीवन है. इस बात की संभावना तलाशने के लिए वर्षों से दुनियाभर के खगोलविद खोज कर रहे हैं. इसी चरण में बंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आईआईए) के खगोलविदों ने बिट्स के गोआ स्थित संस्थान के साथ मिलकर एक नया तरीका खोज निकाला है. यह एक तरह की विसंगति प्रक्रिया है, जिसके जरिए ऐसे ग्रहों की पहचान की जा सकती है जहां जीवन की असीम संभावना है.
इसके लिए इन्होंनें आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस आधारित एल्गोरिद्म का इस्तेमाल किया. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अकेले हमारी आकाशगंगा में अरबों की संख्या में ग्रह हो सकते हैं. यहां तक कि हमें जितने सितारे नजर आते हैं उनकी संख्या भी इससे कहीं अधिक हो सकती है.
विज्ञान एवं तकनीकी विभाग जिसके तहत ‘आईआईए’ काम करती है उनका कहना है कि क्या ऐसे दूसरे ग्रह है जहां जीवन संभव हो और अगर हैं तो वह कौन सा ग्रह होगा जहां जिंदगी मौजूद है. यह सवाल हमेशा से उठता रहा है. वर्तमान में ‘आईआईए’ और ‘बिट्स पिलानी’ के खगोलविदों ने एक नई तरीके के आधार पर यह माना है कि धरती एक अनियमितता से घिरा हुआ ग्रह है. इन्हीं तरह की अनियमितताओं के मौजूदगी वाले हजारो बिंदुओं को आधार बनाकर यह नजरिया तैयार किया गया है.
यह अध्ययन रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के मासिक नोटिस (MNRAS) पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. इस अध्ययन के मुताबिक़, करीब 5000 ग्रहों की पुष्टि हुई है जिसमें से 60 में जीवन की असीम संभावनाएं देखी गई हैं. वहीं, 8000 ग्रह प्रस्तावित है. इन ग्रहों का मूल्यांकन इनकी धरती से समानता के आधार पर किया गया है. आईआईए दल का कहना है कि संभावित रहने योग्य एक्सोप्लेनेट (ऐसा ग्रह जो सौरमंडल के बाहर किसी तारे की परिक्रमा करता है) का विचार औद्योगिक तंत्र की देखरेख के दौरान भविष्य में होने वाली विसंगतियों को आधार बनाकर रखा गया है.
दरअसल, विसंगति को पकड़ने वाली तकनीक जो औद्योगिक तंत्र की भविष्य की देखरेख में काम आती है वह रहने योग्य ग्रहों को पता लगाने में भी इस्तेमाल हो सकती है. विसंगति डिटेक्टर अंसतुलित डाटा को संभालने का काम करता है, जहां विसंगतियां एक्सोप्लेनेट या औद्योगिक घटकों में होने वाले असमान्य व्यवहार बाहरी होते हैं.
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