दिलेर समाचार, कोलकाता: पश्चिम बंगाल में 621 जिला परिषदों, 6,157 पंचायत समितियों और 31,827 ग्राम पंचायतों के चुनाव के लिए वोटिंग शुरू हो गई है. पंचायत चुनावों में कई जगहों पर परिवार के लोग एक-दूसरे को शिकस्त देने के लिए चुनावी मैदान में खड़े हैं और ऐसी जगहों पर मुकाबला काफी रोचक दिखता है. राज्य में 58,000 सीटों पर त्रिस्तरीय चुनाव हो रहा है. ऐसी कई जगह हैं जहां बाप के खिलाफ बेटा और मां के खिलाफ बेटी चुनाव लड़ रही है. दामाद ससुर के खिलाफ चुनाव लड़ रहा है और भाई बहन के खिलाफ मैदान में है. तृणमूल कांग्रेस, भाजपा और वाम दलों ने संबंधित क्षेत्रों में किसी परिवार की लोकप्रियता के चलते परिवार के सदस्यों को एक-दूसरे के खिलाफ अपने चुनाव चिह्न पर मैदान में उतारा है.
बाप-बेटा सामने सामने
अलीपुरद्वार जिले में एक सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षक भोगनारायण दास तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर अपने बेटे अमाल के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं. बेटा भाजपा उम्मीदवार है. दास (68) ने अपने बेटे से चुनाव से दूर रहने को कहा था क्योंकि इससे परिवार में खटास पैदा हो सकती है. बेटे ने पिता की सलाह मानने से इनकार कर दिया. अमाल ने कहा, ‘‘मैंने अपने पिता से कहा कि राजनीति विचारधारा और राजनीतिक विश्वास का मामला है और हमारी राजनीतिक जंग से हमारे संबंधों को कोई नुकसान नहीं होगा.’’
एक ही परिवार की दो बहूएं भिड़ीं
उत्तरी 24 परगना जिले की जगुलिया ग्राम पंचायत में एक ही परिवार की दो बहूएं एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रही हैं. रीमा दास तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं तो उनकी जेठानी बुलबुल दास निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में हैं. देवरानी-जेठानी दोनों का कहना है कि इससे उनके पारिवारिक संबंधों में कोई खटास नहीं आएगी. नदिया जिले की तलडाहा-मझदिया ग्राम पंचायत में एक ही परिवार के तीन लोग एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.
पति को सबक सिखाने के लिए पत्नी मैदान में
पूर्वी मिदनापुर जिले से तृणमूल कांग्रेस के जिला परिषद उम्मीदवार पार्थ प्रतिम दास इस बात से नाराज हैं कि उनकी पत्नी लिपिका एक नजदीक की सीट पर भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ रही हैं. वहीं, लिपिका ने कहा कि उन्होंने पति से कई साल तक राजनीति छोड़ने का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने बात नहीं मानी इसलिए वह अपने पति को सबक सिखाना चाहती थीं. उन्होंने कहा, ‘‘हम पिछले कुछ साल से अलग रह रहे हैं.’’ राज्य में इस तरह के कई उदाहरण हैं जहां परिवार के लोग एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी जंग लड़ रहे हैं.
क्या कहते हैं राजनीतिक दल
तृणमूल कांग्रेस के नेता निर्मल घोष ने कहा, ‘‘जब आप राजनीतिक लड़ाई लड़ते हैं तो आपके संबंध मायने नहीं रखते। केवल जीत ही मायने रखती है. इससे राजनीतिक लड़ाई परिवार में प्रवेश कर जाती है.’’ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि चुनाव हजारों सीटों पर हो रहे हैं. ऐसे में ज्यादातर मामलों में राजनीतिक दलों के पास एक ही परिवार के सदस्यों को टिकट देने के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं होता.
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