दिलेर समाचार, नई दिल्ली। बैंकों का कर्ज लौटाने में नाकाम रहने वाली यानी डिफॉल्टर कंपनियों के उच्च प्रबंधकीय अधिकारियों के वेतन पैकेज निर्धारण के नियम सख्त किए गए हैं। सरकार ने कहा है कि ऐसी कंपनियों को निश्चित सीमा से उच्च स्तर प्रबंधकीय अधिकारियों के वेतन पैकेज के लिए अनुमति लेनी होगी।
सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों, नॉन-कन्वर्टिबल डिबेंचर (एनसीडी) और दूसरे सिक्योर्ड क्रेडिटर्स को पैसा लौटाने में नाकाम रहने वाली कंपनियों पर भी यही नियम लागू होंगे। पिछले महीने संसद से पारित कंपनी एक्ट में संशोधन करके इस तरह के प्रावधान किए गए हैं।
एक सरकारी बयान में कहा गया है कि संशोधित कानून के कुछ प्रावधानों की अधिसूचना तीन जनवरी को जारी की गई है। ये प्रावधान इंसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) प्रभावी होने के बाद काफी अहम हैं। कंपनी एक्ट-2013 के सेक्शन 197 के तहत प्रबंधकीय पदों पर बैठे लोगों का वेतन पैकेज कंपनी के शुद्ध मुनाफे के मुकाबले 11 फीसद से ज्यादा है तो उन्हें साधारण बैठक में निवेशकों से अनुमति लेनी होती है।
लेकिन नए प्रावधान के अनुसार अगर कंपनी कर्ज लौटाने में डिफॉल्टर हो जाती है तो उसे प्रबंधन में बैठे लोगों के वेतन पैकेज के लिए पहले मंजूरी अनिवार्य रूप से लेनी होगी। कंपनियों को इससे पहले कर्जदाताओं से भी मंजूरी लेनी होगी।
संशोधिन कानून के मुताबिक वैधानिक रूप से रिजोल्यूशन प्लान मंजूर होने पर कर्ज के बदले हिस्सेदारी देने के लिए कर्जदाताओं को डिस्काउंट पर शेयर आवंटित करने की कंपनियों को अनुमति होगी।
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