दिलेर समाचार,भगवान, भाव को भूखे होते हैं। उन्हें दिव्य आहार, महंगे सूखे मेवे का भोग लगाने से वह प्रसन्न नहीं होते। वह तो चावल के आधे दाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं। महाभारत में उल्लेखित है कि एक बार जब ऋषि दुर्वासा वनवास में रह रहे पांडवों के यहां आए, तो घर में सिर्फ कुंती ही थीं।
लेकिन घर में अन्न का दाना नहीं था। ऋषि कुछ स्नान करने के लिए नदी की ओर निकल गए। दुर्वासा ऋषि अपने क्रोध के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में कुंती को भय लग रहा था कहीं ऋषि क्रोध में श्राप न दे दें। तब उन्हें चावल का आधा दाना मिला, जिसे उन्होंने वासुदेव कृष्ण को अर्पित किया।
कुछ समय बाद जब ऋषि दुर्वासा और उनके शिष्य स्नान करके पुन: आए तो उनके पेट जरूरत से भी ज्यादा भरे हुए थे। और वह कुंती को ढेर सारा आशीर्वाद देकर चले गए। तभी से चावल को दिव्य अन्न की संज्ञा दी गई। चावल जिसे अक्षत भी कहते हैं। भगवान के दिव्य आहार के रूप में जाना जाता है। चावल से बनी खीर, चावल से बने अन्य भोज्य पदार्थ भगवान को अर्पित करने पर वह प्रसन्न होते हैं।
लेकिन सबसे जरूरी बात एकादशी के दिन चावल खाना और चावल का भोग लगाना नहीं चाहिए। इस दिन चावल को कीट की संज्ञा दी गई है। इसलिए एकादशी के दिन चावल नहीं खाए जाते हैं।
इसलिए नहीं खाते एकादशी के दिन चावल
पद्म पुराण के अनुसार चावल का संबंध जल से किया गया हैं और जल का संबंध चंद्रमा से है। पांचों ज्ञान इन्द्रियां और पांचों कर्म इन्द्रियों पर मन का ही अधिकार है। मन और श्वेत रंग के स्वामी भी चंद्रमा ही हैं, जो स्वयं जल, रस और भावना के कारक हैं, इसीलिए जलतत्त्व राशि के जातक भावना प्रधान होते हैं, जो अक्सर धोखा खाते हैं।
एकादशी के दिन शरीर में जल की मात्र जितनी कम रहेगी, व्रत पूर्ण करने में उतनी ही अधिक सात्विकता रहेगी। आदिकाल में देवर्षि नारद ने एक हजार साल तक एकादशी का निर्जल व्रत करके नारायण भक्ति प्राप्त की थी।
वैष्णव के लिए यह सर्वश्रेष्ठ व्रत है। चंद्रमा मन को अधिक चलायमान न कर पाएं, इसीलिए व्रती इस दिन चावल खाने से परहेज करते हैं।
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