अशोक गुप्त
जबसे प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी ने ंिसंगल यूज प्लास्टिक को समाप्त करने की घोषणा की है, तबसे पूरे देश में इसे गंभीरतापूर्वंक लिया जाने लगा है। जहां एक ओर राज्य सरकारें और जनता इस प्लास्टिक और पॉलिथिन को दैनिक जीवन से हटाने के तरीकों पर विचार कर रही है वहीं कुछ हलकों में इस उद्योग से जुड़े व्यापारियों और कर्मियों की कठिनाइयों के बारे में चर्चा की जा रही है।
कई सरकारी विभागों ने इस ओर गंभीरतापूर्वक काम शुरू कर दिया है। 2 अक्तूबर से रेलवे प्लेटफार्म और गाडि़यों में सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग बंद हो रहा है। इस सबंध में रेलमंत्राी द्वारा दिशा निर्देश जारी कर दिए गए हैं। पर्यावरण मंत्रालय ने सब राज्यों और दफ्तरों को पत्रा लिखा है कि वे इस दिशा में गंभीरतापूर्वक कार्य प्रारंभ कर दें।
सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग हमारे जीवन का बहुत महत्त्वपूर्ण अंग बन चुका है। हर घर में दूध प्लास्टिक की थैलियों में आता है जिन्हें प्रयोग के बाद फेंक दिया जाता है। सब्जी वाले पतली पालिथिन थैलियों का प्रयोग करते हैं जिन्हें डस्टबिन में फंेक दिया उजाता है और उनसे या तो सीवर जाम होते हैं या उन्हें गाय आदि जानवर खा जाते हैं।
सरकार कुछ चीजों के प्रयोग और निर्माण पर प्रतिबंध लगा रही है और कुछ चीजों को रिसाइकिल करने की योजना बना रही है। जिन चीजों पर पूर्ण पाबंदी लगने की संभावना है उनमें सभी तरह के प्लास्टिक के कैरी बैग, प्लास्टिकं कटलरी के तहत आने वाली प्लेट,प्लास्टिक कप, गिलास, स्ट्रा व स्ट्रिरर्स और थरमाकोल से बनने वाली कटलरी और डेकोरेटिव आयटम शामिल हैं।
आंकड़ों के अनुसार हर भारतीय सालाना 11 किलो प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है। देश में प्लास्टिक की सालाना खपत 1 करोड़ 70 लाख टन से ज्यादा है। हमारे देश में रोज 26 हजार टन प्लास्टिक का कचरा निकलता है जिसका 60 प्रतिशत ही रिसाइकिल हो जाता है। इसके अतिरिक्त डेढ़ लाख टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा विदेशों से आता है।
सीएसआई के प्रवक्ता दिनेश राज बंधेला के अनुसार सिंगल यूज प्लास्टिक का निपटान सही तरीके से नहीं हो सकता, इसलिए यह जमीन या डंप साइट पर पड़ा रहता हे। वहां से बायो डिग्रेबल वेस्ट के साथ मिलकर मीथेन गैस छोड़ता है जो कार्बन डायआक्साइड की तुलना में 30 गुना हानिकारक है। मीथेन गैस जलवायु परिवर्तन के लिए बहुत हद तक जिम्मेवार है। हर वर्ष लगभग साढ़े 5 लाख टन प्लास्टिक नदी नालों से होते हुए समुद्र में मिल जाता है जिसके कारण समुद्र में प्लास्टिक की मात्रा बहुत बढ़ गई है। वैसे इस तरह के प्लास्टिक उपयोग को रोकना सरकार के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द होने वाला है।
सबसे अधिक प्रयोग पालिथिन थैलियों और पानी की बोतलों का किया जाता है। पॉलिथिन की थैलियों का प्रयोग तो रोका जा सकता है किंतु इसके लिए सरकार को बहुत सख्ती बरतनी पड़ेगी कि इनके निर्माण पर सख्त प्रतिबंध रहे। जब बाजार में ये मिलेंगी ही नहीं तो लोगों को मजबूरन कपड़े के थैले से काम चलाना पड़ेगा। इस दिशा में कई प्रयास चल रहे हैं और सस्ती थैलियां बनाने के प्रयास जारी है और बाजार में एक रूपये प्रति थैली की दर से छोटी थैलियां उपलब्ध होना भी प्रारंभ हो गया है। दूध की थैलियां और छोटे पाउच बनाने में लगने वाली प्लास्टिक फिल्म का क्या विकल्प ढूंढा जाएगा, यह देखना अभी बाकी है।
पानी की बोतलें भी बहुत बड़ी समस्या बनने वाली हैं। हर स्थान पर पानी की बोतलों या गिलासों की उपलब्धता से इनका प्रयोग बढ़ गया है और इनका विकल्प ढूंढा जाना बहुत आवश्यक है। कुछ स्थानों पर तो प्लास्टिक की बोतलों के स्थान पर शीशे की बोतलें प्रयोग की जा सकती हैं। पहले हमारा दूध और कोल्ड ड्रिंक शीशे की बोतलों में आता था। अभी भी कुछ कोल्ड ड्रिंक शीशे की बोतलों में आते हैं। इनके प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जा सकता है।
पैकिंग और रैपिंग में भी पतला पालिथिन बहुत प्रयोग होता है। इस प्रयोग को हत्तोसाहित करना होगा। खाने की होम डिलीवरी सेवाएं प्लास्टिक के डिब्बों में खाना पैक कर खाना सप्लाई करती हैं। इसका विकल्प ढंूढ़ा जाना भी शेष है।
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जनता ने अपने अपने स्तर पर इस हेतु कार्य शुरू कर दिया है। कुछ लोग कपड़े की थैलियां सिल कर उन्हें लोगों को मुफ्त बांट रहे हैं तो कुछ संस्थाएं लोगों से पुराने बैडशीट,पर्दे आदि लेकर उनकी थैलियां निःशुल्क बांटने के लिए बनवा रही है। कई फूड चेन खाना भिजवाने के लिए पतले पालिथिन की बजाय पतले कपड़े की थैली बनाने की योजना बना रही हैं। पैकेजिंग उद्योग ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है किंतु उनका वास्तविक स्वरूप घोषणा के बाद ही सामने आ पाएगा लेकिन इसके कारण जो लोग प्लास्टिक के कारोबार से जुड़े हैं, वो परेशान हैं। इनकी समझ में नहीं आ रहा कि वे अब आगे क्या करें। उम्मीद है कि उनकी समस्याओं का भी कुछ न कुछ हल निकल आएगा।
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