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May 17 2024 09:30 AM

भारत के बुरे वक्त का साथी-रूस

Posted at: Aug 28 , 2023 by Dilersamachar 9270

दिलेर समाचार,नीरज शर्मा। आज भारत को विश्व में एक बड़ी सैन्य ताकत के रूप में देखा जाता है। सामरिक दृष्टि से देखें तो आज विश्व का कोई भी देश भारत के साथ युद्ध की स्थिति सोच कर ही थर्रा जाता है।भारत को विश्व में सैन्य ताकत की दृष्टि से चौथा स्थान प्राप्त है।भारत ने बंटवारे में बहुत कुछ खोया। बंटवारे के बाद भारत एक गरीब और कमजोर देश के रूप में सामने आया।कई जंगे भारत पर थोंपी गई। भारत ने इस दौरान बहुत कुछ खोया पर इस कठिन समय में भारत ने कभी हिम्मत नहीं हारी।भारतीय लोगों ने अपनी मेहनत और दृढ़ संकल्प के बल पर आज विश्व में एक शक्तिशाली देश कहलाता है।भारत ने विश्व  पटल पर बहुत से देश मित्र बनाए।परन्तु रूस से मित्रता वरियता क्रम में शीर्ष स्थान पर आती है।इस के बहुत से कारण है परन्तु मुख्य कारण भारत को विश्व में एक महत्वपूर्ण सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित करने में रूस का महत्वपूर्ण योगदान देना है।भारतीय सेनाओं के पास प्रमुख अत्याधुनिक हथियार,लडाकूविमान, युद्धपोत, टैंक,पनडुब्बीयां,मिसाइलस सहित बहुत से और सैन्य उपकरण ज्यादातर रूस से ही खरीदे हुए हैं।यानि भारतीय सेनाओं की नभ,धरा और समुद्र की ताकत को धार देने का काम रूस या कहें सोवियत रूस ने पुरी शिद्दत से किया।इसके साथ ही रूस ने यू एन ओ में समय-समय पर भारत के हितों की खातिर भारत के पक्ष में वीटो पावर तक का इस्तेमाल करता रहा है।सामरिक समय में भारत के खातिर सीधा अमरीका के साथ टकराने से भी रूस कभी पिछे नही हटा।रूस की भारत के प्रति दोस्ती पर एक अंग्रेजी कहावत एकदम सटीक बैठती है।

'A real friend is one who walks in when the rest of the world walks out'।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद के सालों में पूरी दुनिया धीरे धीरे दो हिस्सों में बंटती जा रही थी। एक ओर सोवित रूस के समर्थन वाला सामजवाद गुट और दूसरा अमेरिका की अगुवाई में पूंजीवादी देशों का समूह। भारत को उस वक्त नई-नई आजादी मिली थी। भारत शीत युद्ध के वक्त में सोवियत संघ और अमेरिका दोनों के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखना चाहता था। हालांकि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू सोवियत संघ से अधिक प्रभावित थे। भारत की आजादी के बर्षों से ही दोनों देशों के बीच के संबंध हैं।भारत की रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और औद्योगिक तकनीक जैसे कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में रूस का बड़ा योगदान रहा है। देश में विकास के लिए बुनियादी ढांचा खड़ा करने और उद्योग स्थापित करने के इरादे से 1955 में पंडित जवाहर लाल नेहरू सोवियत रूस की यात्रा पर गए। नेहरू जी ने सोवियत रूस की यात्रा 7 जून 1955 को शुरू की थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सोवियत रूस के इस शहर में बड़े पैमाने पर लोहा गलाकर स्टील बनाया जा रहा था। नेहरू जी द्वारा की गई सोवियत रूस की इस महायात्रा ने भारत-रूस के बीच दोस्ती के एक ऐसे रिश्ते की गांठ जोड़ी, जिससे भारत और रूस आज तक खुशी खुशी बंधे हुए हैं।1955 में साम्यवादी रूस ने आजाद भारत के पहले पीएम का दिल खोलकर स्वागत किया। जबरदस्त खेमेबंदी के दौर में रूस को अपने साथ भारत जैसा विशाल देश का जुड़ना बहुत फायदेमंद लगा।जो साम्यवाद की विचारधारा के साथ चलने को तैयार था। तब भारत और सोवियत रूस के बीच दोस्ती इस कदर परवान चढ़ी थी कि नेहरू जून में सोवियत रूस गये, तो नवंबर में निकिता क्रुश्चेव रूस के प्रधानमंत्री निकोलाई बुलगैन के साथ भारत दौरे पर आ पहुंचे। 

1971 का वो साल जब भारतीय जांबाजो ने पाकिस्तान को दो टुकड़े में बांट दिया था।इस युद्ध में पूरी दुनिया के सामने पाकिस्तान के 93000 सैंनिको ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर किया था। लेकिन पाकिस्तान को हराना और उसके दो टुकड़े करना इतना आसान नहीं था। ये वो दौर था जब अमेरिका और दूसरे बड़े देश भारत के खिलाफ खड़े थे। ये वो समय था जब पूरी दुनिया में भारत अकेला पड़ रहा था। तब रूस जैसा मित्र भारत का साथ देते हुए  अपनी दोस्ती निभाई।यह दूसरे विश्व युद्ध के बाद किसी भी सेना का सबसे बड़ा मिलिट्री सरेंडर था जिसमें पाकिस्तान ने भारतीय जवानों के सामने हथियार डाल दिए थे। अमेरिका इस लड़ाई में पूर्ण रूप से पाकिस्तान के साथ था और वहीं वो इस लड़ाई में चीन को भी साथ मिलाकर भारत को दबाना चाहता था। उसे डर था कि यदि ईस्ट पाकिस्तान को आजादी दिलवाने में भारत कामयाब हो गया तो भारत विश्व की बड़ी शक्ति बनकर उभरेगा और इस से एशिया में रूस का प्रभाव भी बढ़ने लगेगा। अमेरिका का पाकिस्तान का साथ देने का एक कारण ये भी था।पाकिस्तान उस समय अमेरिका के बनाए दो मिलिट्री संगठनों का हिस्सा था।अमेरिका चीन के साथ मिलकर ईस्ट पाकिस्तान के मुद्दे पर भारत को दूर रखने के लिए भारत पर दबाव बना रहा था। ऐसे में भारत सरकार ने अपने हितों का ध्यान रखते हुए।एक कठोर कदम उठाया और 9 अगस्त को सोवियत संघ के साथ शांति, भाईचारे और सहयोग की संधि पर हस्ताक्षर किए। जिससे अमेरिका पूरी तरह से भारत के खिलाफ हो गया।  इस संधि के तुरंत बाद सोवियत संघ ने ऐलान किया था कि भारत पर हमला उसके ऊपर हमला माना जाएगा। 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया।  इंदिरा सरकार ने सेना को पाकिस्तान की इस हरकत का मुंहतोड़ जवाब देने को कहा। अमेरिका इस युद्ध में भारत को अलग-थलग करना चाहता था, इसलिए राष्ट्रपति निक्सन ने चीन को भारत से युद्ध के लिए लगातार उकसाया। लेकिन रूस चीन को पहले ही आगाह कर चुका था कि अगर उसने भारत पर आक्रमण किया तो उसे इसके परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा।अमरीका पाकिस्तान को भरोसा दे चुका था कि पाकिस्तान के हमला करते ही चीन भी भारत पर आक्रमण कर देगा।इस स्थित से निपटाना उस समय भारत के लिए  असंभव था।अमरीका ने पकिस्तान की सेना को अत्याधुनिक हथियारों,लड़ाकू जहाजों,टैकों और अन्य उपकरण से सुसज्जित किया था।भारत पर हमला कर पाकिस्तानी सेना इस आस में लड़ रही थी कि दूसरी तरफ से चीन हमला बोलेगा। लेकिन चीन ने रूस के डर से लड़ाई में कभी भाग नहीं लिया। 9 दिसंबर को अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन ने समुद्र में अपनी सबसे बड़ा अत्याधुनिक एयरक्रॉफ्ट कॉरियर यूएसएस इंटरप्राइजेज जिसे 7वां बेड़ा भी कहा जाता है को बंगाल की खाड़ी में पकिस्तान की मदद के लिए भेज दिया। उस समय तक अमेरिका को लग रहा था कि चीन भारत पर अटैक करेगा। लेकिन चीन रूस की धमकी की वजह से युद्ध में नहीं कूदा। 10 दिसंबर को ब्रिटेन का एयरक्रॉफ्ट कॉरियर ईगल भी भारत को घेरने के इरादे से चल पड़ा। तब रूस भी अपने समुद्री  जहाजों के बेड़े के साथ बंगाल की खाड़ी में उतर आया। ब्रिटेन के एयरक्रॉफ्ट ईगल को रोकने के लिए रूस ने अपनी न्यूक्लिर सबमरीन जो की मिसाइलों से लैस थी को भी उतार दिया। रूस को हमलावर होता देख ब्रिटिश सेना पीछे हट गई। रूस अपने समुद्री जहाजों से अमेरिका के एयरक्रॉफ्ट कॉरियर को घेर उसका रास्ता भी पूरी तरह रोक दिया था।रूस का एक ही लक्ष्य था कि अमेरिकी जहाज किसी भी भारतीय मिलिट्री बेस को निशाना ना बना सके। रूस की हर मिसाइल के निशाने पर अमेरिकी एयरक्रॉफ्ट कैरियर था।रूस के मिलिट्री कमांडर अपनी सबमरीन और समुद्री जहाजों को अमेरिकी एयरक्रॉफ्ट के बिल्कुल करीब ले गए ताकि अमेरिकी सैटेलाइट आदि से उन्हें अच्छे से देख लें और उन्हें अंदाजा हो जाए कि रूस अपने न्यूक्लियर सबमरीन के साथ उनके सामने है। इस तरह अमेरिका भी रूस के आक्रमक रवैये को देखकर वापस लौटने को विवश हो गया।

 रूस ऐसा पहला देश था जिसने कश्मीर पर भारत के पक्ष में वीटो किया था। 1957 में जब कश्मीर पर पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पास कराने की कोशिश की तो रूस ने अपने वीटो का इस्तेमाल कर भारत का साथ दिया था। फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस ने 22 जून 1962 को अपने 100वें वीटो का इस्तेमाल कश्मीर मुद्दे पर भारत के समर्थन में किया था। दरअसल सुरक्षा परिषद में आयरलैंड ने कश्मीर मसले को लेकर भारत के खिलाफ एक प्रस्ताव पेश किया था। जिसका अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन (सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य) के अलावा अमरीकी पिछलग्गू देशों आयरलैंड, चिली और वेनेजुएला ने पाकिस्तान का समर्थन किया था। इससे पहले साल 1961 में भी रूस ने 99वें वीटो का इस्तेमाल भी भारत के लिए किया था।इस बार रूस का वीटो गोवा मसले पर भारत के पक्ष में था।अब वर्तमान में कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान हर मुल्क के दरवाजे पर अपनी याचिका लेकर पहुंचा था। रूस के यहां से उसी दुत्कार के सिवा कुछ हासिल नहीं हुआ।रूसी नेताओं और सुरक्षा अधिकारियों ने पाकिस्तान को उत्तर में कहा कि हमें भारत की नीतियों पर कोई शक नहीं, जिन्हें है वे कश्मीर का दौरा करें। यह वक्तव्य रूस की ओर से तब आया है जब पाकिस्तान चीन के जरिये कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाने की लगातार कोशिश कर रहा था। 

भारत ने भी बखूबी निभाई दोस्ती

1979 में जब रूस ने अफगानिस्तान पर हमला किया तो भारत ने रूस की आलोचना करने से इनकार कर दिया। भारत के इस कदम पर पश्चिम में बहुत हाय-तौबा भी मचा।पश्चिम देशों ने भारत की यह कहकर आलोचना की कि लोकतंत्र का समर्थक होने के बावजूद भारत का दक्षिण एशिया देश पर हमले से दूरी बनाए रखना दोहरेपन के अलावा कुछ नहीं है।सोवियत संघ के बाद नई दिल्ली ने यूक्रेन और सीरिया संकट के समय यूएस और ई.यू प्रतिबंधों को समर्थन देने के बजाए मॉस्को का साथ दिया।

रूस और भारत के बीच दोस्ती दशकों पुरानी है। इस दमदार दोस्ती ने कई देशों की नींद भी उड़ाकर रख दी। रूस और भारत के बीच दुकानदार और खरीदार का रिश्ता नहीं है बल्कि एक सहयोगी और दोस्ती का रिश्ता है। रूस के साथ मिलकर भारत हथियारों का निर्माण कर रहा है। रूस हिन्दुस्तान को ऐसे-ऐसे विध्वंसक मुहैया करवा रहा है जिसकी काट दुनिया में किसी मुल्क के पास नहीं है। 

एस 400- जिसकी काट दुनिया के पास नहीं है।

ब्रह्मोस की रफ्तार का कोई तोड़ नहीं।

टी-90 भीष्म टैंक का विध्वंसक वार से बचना आसान नहीं ।

रॉकेट लॉन्चर बीएम-21 ग्रैंड गुस्ताखी करने वालों को खाक में मिला देता है।

मिग,सुखोई छीन लेता है दुश्मनों की सांसे।

भारतीय सेना के ये वो हथियार हैं जिनके आगे दुश्मन के होश उड़ जाते हैं। ये वो हथियार हैं जो दुश्मन के लिए काल है। रूस से भारत को ये जांबाज मिले हैं जो हर नापाक हरकत पर माकूल जवाब देने की ताकत रखते हैं। रिश्तों के नए दौर में हिन्दुस्तान नई ऊंचाईयों को छू रहा है। रक्षा क्षेत्र में दोनों देशों के बीच रिश्ता खरीदार और विक्रेता से बदलकर एक सहयोगी के रूप में हो चुका है। रूस अब भारत के साथ मिलकर हथियारों का निर्माण भी करने में लगा है।  रक्षा क्षेत्र में भारत-रूस सहयोग को ‘मेक इन इंडिया’ पहल से जोड़कर द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊर्जा देने वाले कदम के रूप में देखा जा रहा है। 2018 में रूसी राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे में साढ़े सात लाख एके-203 राइफलें भारत में बनाने का सौदा हुआ।  सत्तर हजार एके-203 राइफल रूस से सीधी खरीदी जा रही हैं। वहीं भारत और रूस संयुक्त उपक्रम उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले में एक उत्पादन इकाई में 10 साल के भीतर 6 लाख से ज्यादा ‘एके 203’राइफलों का निर्माण किया जाएगा।  भारत के 80 प्रतिशत से ज्यादा सैन्य उपकरण रूस से ही खरीदे जाते हैं। रूस के साथ भारत का रक्षा सौदा एस-400 और एके-203 राइफल तक ही सीमित नहीं है। रूस की तरफ से भारत की तीनों सेनाओं के लिए रक्षा उपकरण मुहैया कराई जाती है। भारतीय वायु सेना के रूसी मिग-29 और सुखोई-30 इसके कुछ जीवंत उदाहरण हैं। नौ सेना की बात करें तो रूसी जेट और पोत भी उसके बेड़े में शामिल हैं। हालिया वक्त में रूस से परमाणु शक्ति से लैस सबमरीन का भी ऑर्डर भारत की तरफ से दिया गया है। कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत और रूस के बीच एक मजबूत रक्षा सहयोग है। स्‍टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक, 2010 से 2019 तक रूस ने अपने हथ‍ियार निर्यात का एक-तिहाई हिस्‍सा भारत को बेचा है। वर्तमान दौर में जल, थल और आसमान में हिन्दुस्तान की ताकत का कोई सानी नहीं है। भारतीय जवानों के साथ कदम से कदम मिलते हैं तो  दुश्मन के दिल हिलते हैं। सेना के ये हथियार जब रणभूमि में उतरते हैं तो दुश्मन थर्र-थर्र कांपने लगता है। आज भारत की सेना और उसकी ताकत पर हर देशवासी अभिमान करता है। 

हालांकि अतीत की भावुकता से किसी देश की विदेश नीति नहीं चल सकती है। भारत खुद को वैश्विक ताकत के तौर पर स्थापित करना चाह रहा है और ऐसे में यूएस,रूस औऱ चीन के साथ रिश्तों में संतुलन बनाए रखना भारत की जरूरत है। वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरणों के बदलने के बावजूद भारत ने युक्रेन से युद्ध के दौरान अमेरिका और युरोपीय देशों के रूस पर लगाए प्रतिबद्धों को दर किनार कर ना सिर्फ रूस से तेल खरीद रहा है बल्कि रूस से खरीद पश्चिम देशों को बेच भी रहा है।यदि भारत अमेरिकी दबाव में रूस से तेल ना खरीदता तो रूस का अर्थिक मोर्चे पर कमजोर होना और रूस का हारना लगभग तह था परन्तु भारत ने रूस से दोस्ती का दम भरते हुए अपनी दोस्ती कायम रखने के साथ साथ निभाई भी है। रूस भी भारत के साथ भावनात्मक रिश्ते को अपने पक्ष में जारी रखना चाहेगा।आज भारत का यह अजय दोस्त युक्रेन के साथ नाटो के षडयंत्रों की वजह से युद्ध में उलझ विश्व में बिल्कुल अकेला पड़ गया था। युक्रेन पर हमला कर रूस ने विश्व में युरोपीयन देशों और अमरीका की दादागिरी को सिधी चुनौती दी है।जब सोवियत संघ टूटा और रूस को बहुत कुछ खोना पड़ा तो विश्व के लगभग हर देश ने रूस की कहानी खत्म समझ रूस का साथ छोड़ अमरीका का दामन था परन्तु भारत लगातार रूस की स्थितियां ठीक करने के लिए रूस का सहयोग करता रहा।बुरे समय को पिछे छोड़ रूस फिर उभरा और फिर से विश्व की प्रमुख सैन्य शक्ति बना।आज भी भारत सभी विरोधियों को अंगूठा दिखा रूस का पूरा साथ दे रहा है।

नोट : उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार है. दिलेर समाचार इससे सहमति नहीं रखता. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

 

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